बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय-मुक्त
विधा - काव्यात्मक कहानी
दिनांक-26-06-2020
दिन -शुक्रवार
शीर्षक:-"हद कर दी आपने"
(हास्य व्यंग्यात्मक)
आजकल हमें लिखने का
कुछ ऐसा शौक चर्राया है
जिसे देख मियां जी का
नन्हा सा दिल घबराया है।
कुछ इस तरह से हम
खोने लगे हैं खयालों में
कि कविता नज़र आने लगी है हमे
रसोईघर के मिर्च मसालों में।
पीतल के पतीले में भी
प्रियतम का मुखड़ा नज़र आता है
कद्दू,लौकी और तोरई में
खुद का दुखड़ा नज़र आता है।
ख्यालआते ही हम
भागते हैं मोबाइल की ओर
तब तक मुआ कुकर सीटी बजाकर
करने लगता है शोर।
हमारे इस जुनून से
हमसे खफा रहने लगे हैं पतिदेव
क्योंकि हम बनने चले हैं लेखिका
वो चाहते हैं हम रति बने और वो कामदेव।
काम काज पर रख
हम उनकी इच्छा का मान रखने चले
उनकी बाहों में सिमटते ही
लिखने के विचार बनने लगे।
वो मुँह विचका कर,चिढ़ कर बोले
अजी!नाहक ही कागज़ कलम घिसती हो!
ऐसी भी क्या बेताबी है
जो हमारे आगोश से फिसलती हो?
घर बार चलाने के लिए
रुपया पैसा चाहिए अपार
लेखक कवियों को मिलता ही क्या है
बस वाहवाही और चंद तालियों का उपहार!'
हमने भी नहले पर दहला मारा,
'नहीं चाहिए हमें धन वैभव सारा
हम बस इतने भर से संतुष्ट हैं
हमें श्रोताओं, सुधि जनों का
प्यार,सम्मान मिल जाता है इतना सारा।
क्या रुपया पैसा,धन दौलत ही
जीवन जीने के लिए पर्याप्त है
अरे यदि दिल की न सुनी तो
समझ लो हम जीते जी समाप्त हैं!
बहुत हुए प्यार मोहब्बत
और मनुहार के चोचले
अब नव जवान तो नहीं हैं
हम तो अधेड़ावस्था की ओर चले।
हद करते हैं आप भी स्वामी!
उम्र का कुछ तो लिहाज कीजिये
आप अपने कर्तव्य निभाइए
हमें लेखन में गोता लगाने दीजिये।'
मुँह बिचकाकर और
हमसे चिढ़ कर वो चलने लगे
मानो हम कविता को
उनकी सौतन बनाने हैं लगे।
फिर हमने बड़े प्यार से
उनका हाथ थाम लिया
आँखो में आंखे डाल
नशीले नैनों का जाम दिया
मैं बड़ी अदा से बोली,
'तुम हो मेरे प्यारे प्रियतम!
क्यों नाहक नाराज़ हुए हो
तुम तो बड़े ही न्यारे हो जानम!'
बस मेरी मनमोहक अदाओं का
जादू प्रियतम पर चल गया
रूठे हुए पिया का दिल
पल भर में ही पिघल गया ।।
*वंदना सोलंकी मेधा*©स्वरचित
नई दिल्ली
संपर्क नम्बर-9958045700
ईमेल-vandna.solanki@gmail.com
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