यशोधरा का सिद्धार्थ से प्रश्न

बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता 
विषय-मुक्त
विधा - काव्यात्मक कहानी
दिनांक-26-06-2020
दिन -शुक्रवार

शीर्षक-"यशोधरा का सिद्धार्थ से प्रश्न"

अर्ध रात्रि में सोती मुझको
तुम छोड़ कर चले गए..!

स्व पत्नी का हित न चाहा
अबोध शिशु
का भी ना सोचा
कातर !!
तुम मुँह मोड़ कर चले गए..!

कह कर जाते
तो,
संभवतः
हँस कर तुम्हें विदा करती
तुम्हारे लिए मन में
कुछ संशय तो न धरती
निज मात-पिता,कुटुंब को
किसके सहारे
तुम छोड़ कर चले गए ..?

सत्य की खोज में
बरसों वन वन भटके
तुम्हारे छोड़े गए कर्तव्यों में
हम रहे जीवन भर अटके
अब आये हो तो क्यों आये हो..?
दायित्वों को भुलाकर
अब तथागत बन
कौन सा ज्ञान संग लाये हो..?

हाँ!!हूँ मैं मानिनी..!!
निज अस्तित्व है मेरा..!
नहीं चाह रही अब
तुम्हारे संग की..!
जब स्वयं ही तुम हाथ
छुड़ाकर चले गए..!!

तुम्हें मिला ज्ञान
नीरव वन में एकाकी रहने में
पा लिया मैंने ज्ञान
स्व कर्तव्य निभाने में
स्व जनों की सेवा करने में
बच्चे के लालन पालन में
एकाकी विरहा जीवन जीने में..!

हूँ समर्थ मैं अकेले
मर्यादित जीवन जीने में
जिसकी इच्छाओं, स्वप्नों को
तुम खण्डित कर के चले गए..!

स्त्री हूँ पर अबला नही हूँ
स्वयं सब कर सकती हूँ
तुम्हारे अधूरे छोड़े कार्य
किये हैं मैंने
आगे भी कर सकती हूँ..!

ज्ञान प्राप्ति की खातिर मुझे
वन जाने की आवश्यकता नहीं
मात पिता गुरुजन का आशीष
उनका ज्ञान क्या पर्याप्त नहीं
सुख दुःख सभी के
बाँटे है मैंने
नहीं भागी मैं इस जहाँ से
जैसे तुम सर्वस्व छोड़ कर चले गए..!!

*वंदना सोलंकी मेधा*©स्वरचित
नई दिल्ली

संपर्क नम्बर-9958045700
ईमेल-vandna.solanki@gmail.com


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