धर्मनिरपेक्षता:धर्म या लोकतंत्र की दृष्टि में

सर्वविदित सुनियोजित संविधान के प्रस्तावना में अंकित धर्मनिरपेक्ष(पंथनिरपेक्ष) 
क्या वास्तव में ,मैं निरपेक्ष हूँ या केवल एक शब्द संयोजन मात्र हूँ
निरंकुश लोकतंत्र में धर्मान्धता की बचकानी हरक़तें देख 
मैं हतप्रभ और खिन्न हूँ
अपनी अभिव्यक्ति मैं कैसे अभिव्यक्त करूँ
मैं एक अब शब्द मात्र हूँ ,जो क्या धरा पर धरी की धरी रह जायेगी या धरातल पर अपनी विश्वव्यापी पहचान बना पाएगी

कमलेश कुमार गुप्ता भोरे गोपालगंज बिहार
 


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