पितृ दिवस पर एकता कुमारी जी की रचना

**"Father's Day "**की हार्दिक शुभकामनाएं। पिता, सिर्फ पिता ही नहीं, माँ - पिता के बारे में जो कुछ भी कहा जाए बहुत कम है। फिर भी मैंने अपने जज्बात प्रस्तुत  पंक्तियों के माध्यम से पिता के लिए समर्पित कर रही हूं-- 

आज हूँ अग़र मैं इस जमीं पर,
तो तुम ही हो इसके आधार।
तुम्हारे स्नेह, लाड का, बाबुल,
नहीं है कोई दूजा प्रतिकार।
तुम्हारी मेहरबानी से सजा है,
यह मेरे सपनों का संसार।
पतझड़ में भी ऐसा लगता है,
जैसे आ गई हो मानो बहार।

जब भी मेरे कदम लड़खड़ाए,
अँगुली थाम कर चलना तुमने सिखाया।
मेरी तोतली भाषा को भी, 
अलंकृत छंद बद्ध कर तुमने ही बनाया।
भूलूं नहीं कभी कर्तव्य-मार्ग को,  रामायण का ज्ञान तुमने मुझे कराया।
विचलित न होऊँ अपने कर्म-धर्म से, 
इसलिए, बाबुल, गीता का सार तुमने पढ़ाया।

मेरी रेशमी चूनर के खातिर,
हमेशा पहने तुमने फटे ही कपड़े। 
रह न जाएं मेरे ख्वाब अधूरे,  
किये तुमने अपने सपनों के टुकड़े। 

मेरी एक शिकायत है तुमसे, 
क्यों किया आज मुझे खुद से पराया। 
दुनियाँ का है यही दस्तूर ,
ये कह कर मुझे समझाया।
ये कैसी कठिन रीति है समाज की, 
 फिर क्यों मुझे अपनी बाहों के झूले में झुलाया?
आंसू बनेंगे जुदाई में भी महकते फूल,
सहला कर मुझे बार - बार दुलराया।
कहाँ मिलेगी ऐसी ये बरगद की छांव।
भूल गए अब थिरकना अब मेरे पांव।
कोई भी मेरे असहनीय दर्द को न जान पाये।
बिछड़ने का ग़म दिल में अब जो रहा न जाए ।।
हर पल तुम्हारी याद है सताती।
छुप-छुप कर मेरी आंख भर आती।।
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         ** एकता कुमारी * *

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