पिता को समर्पित अंशु प्रिया अग्रवाल जी की कविता 'पापा मेरे पापा'

पापा मेरे पापा

आज मेरी आकुलता बढ़ती जा रही है ,
अँखियों से जल की धारा बहती जा रही है।।
आपके स्नेह के बीज पल्लवित हो रहे हैं,
सादर नमन कहने को रोम झंकृत हो रहे हैं।।

आशीर्वाद कि आपकी कोमल छाया में ,
सुखद क्षणों का मानों एहसास हो।
कैसी यह सुनहरी उषा है,
मानो निज जीवन में सर्वत्र प्रकाश हो।।

मैं हूँ कितनी कृतघ्न, 
नहीं कह सकती हूँ कुछ भी।
बस आपके अनुपम वात्सल्य 
धार में बही जा रही हूँ ।।

मन के हर तारों से हूँ कहती, 
मिले अनवरत यह प्यार आपका,
कभी रूठना ना मुझसे, 
चाहे डांटना या फटकारना।।

माना मैं हूँ नटखट, चंचल,
करती हैरान  आपको।
पर दिया आपने यह हक, 
ज्यों वरदान मुझको ।।

कभी होना ना निराश ,
आप मुझसे कदाचित ।
दिया आपने है यह दिव्य, 
अनमोल उपहार सुनिश्चित।।

पापा जी  आपका प्यार, 
हर सपने हुए विकसित।
हर कल्पनाएँ हुई पूरी,
सब आशीष फलित।।


भावों से अभिभूत समर्पण,
किन शब्दों में व्यक्त कर पाऊं?
श्रद्धा सुमन अर्पण कर चरणों में,
मैं नतमस्तक हूँ शीश झुकाऊं ‌।।

मैं आपकी गुड़िया नखरीली ,
सात समंदर से कहती अलबेली।
जन्मों- जन्म के अपने नाते,
पापा आप बहुत याद आते ।।



स्वरचित 
अंशु प्रिया अग्रवाल
मस्कट ओमान
सर्व मौलिक अधिकार सुरक्षित

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