बचपन

बचपन


 बहुत उमंग थी जिंदगी में
 ना कोई चीज की दिक्कत 
 ना ही कुछ ज्यादा करने की इच्छा 
 हमें लगा कि बड़ा होकर
 बहुत मस्ती करूंगा 
 लेकिन बचपन ही अच्छा था
 अब मालूम पड़ा ।

 घर के दोनों छोड़ो पर
 हमारी दादागिरी थी
 कोई आ जाए हमारे यहां 
 उसकी हिम्मत तक ना थी
 बहुत रुला देती है हमें, यह याद
 जिससे की दादागिरी 
 उससे मिलने को तरस जाते हैं आज।

 बचपन में की थी जिनसे झगड़े
 आज उसका फोन आते रो देता हूं
 पहले माफी मांगता 
 फिर बात आगे बढ़ता है
 कुछ देर बाद वह भी रो देता
 गजब की थी बचपन में दुश्मनी।

 शिक्षक को परेशान करना
 चलती क्लास में हल्ला करना
 पिछली बेंच पर टीम जुटाना
 कोई किसी को कुछ बोल दे
 उसको घर तक जाकर धमकाना।

  शिक्षक को जब तंग करते 
  तो पीटने लगते थे वह हमको 
  झूठ में हम और रोते थे
  फिर बाद में टॉफी देकर
  हमको मना लेते थे वो।

  कैसी थी यह बचपना
 जिनको था हमने उस समय धमकाया 
 आज वह जिगरी यार है
 लेकिन जब से हुए सब बड़े
 मिलने को तरस जाते हैं हम।

         -------- रंजन कुमार

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