भारत माँ



विषय: भारत माँ
दिनांक: 15/06/2020
शीर्षक: हे! माँ मेरी भारत माँ

हे! माँ मेरी भारत माँ
है हम शर्मिंदा अपने पापमयी कर्मो से
करते हम तेरे ह्रदय को तार तार अपने कर्मो से
तेरे सपूतों ने मुक्त किया गुलामी की जंजीरों से
उस समय थी उन्मुक्त खिलखिलाहट चारों ओर
था स्वप्न आपका कोई लाल भूखा और बेसहारा न होगा
और बेटियां अपने गौरव के मान-सम्मान को पहचानेंगी 
बदलेगा मेरा रूप लौटेगी मेरी गौरवपूर्ण ख्याति
पर ये क्या तेरे कपूतो ने किया अंधकार चुनाव
आदर्शों और संस्कारों को भूल दौड़ पड़े अंधी दौड़ में
कमाना, बंगला, गाड़ी और बैंक बैलेंस बना मापदंड सफलता का 
छीनी मासूमियत आपाधापी के इस युग-संस्कृति ने 
भ्रष्टाचार, और नैतिकता के इस पातळ में सब गिरता जा रहा
लूट रही रोती बिलखती बहु-बेटियां की अस्मिता
तेरे क्रंदन को सुन नहीं पाते तेरे लाडले
काश फिर से हम तेरा वो रूप तुझे लौटा पाते
थी सूंदर सी तेरी महिमा और गाथा सिंह की सवारी पर।

 स्वरचित मौलिक
रचनाकार: डा0 उमेश सिंह
जौनपुर, उत्तर प्रदेश

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