जुल्म और जुल्मी
जब इंसानों के ही सामने इंसान का कत्ल होने लगे
तो समझ लेना वो जिन्दा रहकर भी वो मर चुका है।
जब जुल्म के खिलाफ कोई आवाज ना उठाए तो
समझ लेना उस इंसान का खून,खून नहीं पानी हो गया।
जब जुल्म सर पर चढ़कर ज्यादा तांडव करने लगे तो
समझ लेना सभी जिंदा रहकर भी जिंदा लाश बन गया।
जब बेबस लाचार का कत्ल सरेआम होने लगे तो
समझ लेना उस दरिंदा के सभी गुलाम बन गया।
जब इंसानों के सामने ही इंसान का कत्ल होने लगे तो
समझ लेना सभी आंख रहते हुए भी अंधा हो चुका है।
जब खून की चीख किसी को भी सुनाई ना दे तो
समझ लेना वो जिंदा रहकर भी यहां मर चुका है।
जब उस बेबस,लाचार कानून भी रक्षा न कर पाए तो
समझ लेना कानून भी उसका ही गुलाम हो चुका है।
किस न्याय पर भरोसा किया जाय जो उसका ही
गुलाम बन चुका है और उस बेबस और लाचार का
मौत हो जाता है और वो दरिंदा खुला ही घूमता हो।
जब उसी भगवान के संतान पर वह दरिंदा इतना जुल्म
ढाता हो और भगवान उसकी रक्षा नहीं कर सकता है ।
अगर वो है तो फिर उसके रहने का क्या फायदा !
जब इंसानों के सामने ही इंसान का कत्ल होने लगे
तो समझ लेना वो जिंदा रहकर भी वो मर चुका है।
©रूपक
भागलपुर
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