विषय तुम बिन मेरी शाम नहीं

काव्य सृजन 
  विषय तुम बिन मेरी शाम नहीं --

मेरे मन के आँगन में ,
रुप सलोना लाई तुम!
ललित,ललाम,लावण्या ,
रुत बंसती बन छाई तुम !

अद्भुत,अप्रतिम सौन्दर्य ,
मन उपवन महकाई तुम!
कजरारे नैना कटार से ,
घायल कर मुस्काई तुम!

मम ह्रदय के उपवन में,
कंगना खनकाती आई तुम !
संदली विरहाग्नि तडपाती,
 श्वांसों में मद्धम सुर लाई तुम !

 तुम बिन मेरी शाम नहीं ,
 एक पल को आराम नहीं!
 मन के मन्दिर की आराध्या,
रूप मनोहर लाई तुम !

पूर्ण चंद्र की शुभ्र चंद्रिका ,
चांद चकोरी सजनी हो तुम!
तुम बिन मेरी शाम नहीं,
नयनों को आराम नहीं!

कांधे सिर रखकर बैठे हम,
दिल की धड़कन है गुमसुम !
खामोशी के मृदुल साये है ,
बोलेगी तेरी मेरी धडकन!!

✍ सीमा गर्ग मंजरी
 मेरी स्वरचित रचना
 मेरठ

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