मेरीअनु, नेहा जैन

मेरी अनु
वो मेरे बचपन की सहेली थी स्वभाव से शरमीली थी
बहुत देखे थे सपने उसने
डॉक्टर उसको बनना था
माँ बाप की दुलारी थी
सखियों की प्यारी थी
नाम था उसका अनुराधा
पढ़ाई में देती थीं ध्यान ज्यादा
थी सुंदर उसकी मुस्कान
घरवालों की थीं वो शान
एक शाम वो काली आई
अनुराधा ने चीख़ लगाई
बूँद बूँद तेज़ाब की पी गई सारे सपनें उसके
एक दरिंदे ने फेका तेज़ाब मेरी सहेली पर
झुलस गई वो
बिखर गई वो
उसने दम तोड़ दिया
पर मरते देखा मैने रोज उसके घरवालों को
लड़ी लड़ाई लंबी मैंने
उसे इंसाफ दिलाने की
आज जीती जंग है
दरिंदा जेल में बंद है
आजीवन कारावास उसका दंड है
याद अनु की फिर आई है
कैलेंडर ने वहीँ तारीख  दिख लाई हैं
ली थीं जिस दिन उसने दुनियां से बिदाई है
कर रही हूं पूरा उसका हर सपना
उसके परिवार मे ही दिखता है हर अपना
आज की मैंने वकालत की पढ़ाई हैं
औऱ जीती अनु की लड़ाई हैं

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