बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय - मुक्तक
विधा - काव्यात्मक कथा
दिनांक - २६ जून,२०२०
दिन - शुक्रवार
शीर्षक - नदी की आत्मकथा
इक कहानी पढ़िये ज़रा किसी की,
आंसू ला देती है आत्मकथा नदी की।
कूड़ा-करकट हवन-कुंड, पशु धुलाई व गंदगी
स्वार्थ में डूबे इंसानों को परवाह नहीं उसकी।।
व्यथित होती है आत्मा भी उसकी,
जब गंदे जल व रोगों से भरती है मटकी।
पीड़ा होती है उसे भी हर दिन,
जब इंसान ही करते सिर्फ़ अपने मन की।।
©® जितेन्द्र विजयश्री पाण्डेय "जीत" प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
1 टिप्पणियाँ
Nice bro
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