बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय -: मुक्त
विधा -: कथात्मक कविता
दिनांक -: 26/06/2020
दिन -: शुक्रवार
शीर्षक -: अब समय है फैसला लेने का
अब समय है फैसला लेने का
एक अम्मा के दो थे बेटे
दोनों ही थे आंख के तारे
दोनों भाई में प्यार अपार था
दोनों ही पर एक दूजे के प्यारे।
अम्मा दोनों भाइयों को देख
मन ही मन खुश होती थी
और दिल ही दिल में दोनों को
भर-भर कर आशीष देती थी।
बचपन था तब सब ठीक था
बड़े हुए तो सयाने हो गए
अम्मा ने सोचा चलो दोनों
अब ब्याह के लायक हो गए।
दोनों भाइयों का ब्याह हुआ
आए सभी सगे - संबंधी
सभी ने बहुओं को आशीष दिया
पूरी हुई शादी की रस्म सभी।
अम्मा ने सोचा कि अब मैं
निश्चिंत होकर चारों धाम हो आऊंगी
दोनों बेटे बहुएं तो घर पर है
वही घर की जिम्मेदारी संभालेगी।
पर जब चारों धाम से लौटी अम्मा
घर पर जैसे ही प्रवेश हुआ
आंगन का सूनापन देख
अम्मा को मन ही मन शंका हुआ।
फिर अम्मा ने आवाज लगाकर
दोनों बहुओं को बाहर बुलाया
लेकिन केवल बड़ी बहू ही आई
छोटी बहू का कोई आहट ना आया।
अम्मा ने पूछा कि बेटी
घर आंगन क्यों सुना है
तो बहू ने कहा सास से
आपके बड़े बेटे का ही यहां रहना है।
छोटे ने तो बहू के साथ
शहर में रहने को गया
कहा कि अम्मा जब आएगी
तब इस झगड़े का फैसला होगा।
अम्मा ने यह सब सुनकर
स्तुब्ध होकर वहीं बैठ गई
और सोची कि यह क्या हुआ
क्यों मैं चारों धाम यात्रा पर गई।
अम्मा लौट आई यह सुनकर
छोटा बेटा गांव लौट आया
आकर अम्मा से कहने लगा
अब तो अलग रहने का फैसला हो गया।
अम्मा ने दोनों बेटे के बीच
झगड़े को सुलझाने के लिए
दोनों में पुरखों की संपत्ति को
बराबर - बराबर बांट दिए।
जैसे ही संपत्ति आई हाथ में आई
बहुओं ने भी अपना रंग दिखलाया
जैसे आज बुजुर्गों की दशा है
वही दशा अम्मा का भी हो गया।
कुछ दिन छोटे बेटे के घर तो
कुछ दिन बड़े बेटे के घर
कभी नहीं सोची थी अम्मा
कि बुढ़ापा कटेगी इस कदर।
जिस उम्मीद से पुरखों की संपत्ति को
अम्मा ने दोनों भाइयों में बांटा
अब तो दोनों में प्यार ही नहीं
अम्मा का हुआ बहुत बड़ा घाटा।
अम्मा तो पछताने लगी कि
इनके बापू सही कहते थे
पूरा संपत्ति कभी ना देना
कुछ बुढ़ापे के लिए भी पूंजी रख लेना।
अब अम्मा सोचने लगी
दूसरों की बेटियों पर क्या दोष लगाएं
जब अपना ही सिक्का खोटा हो
परायो से क्यो उम्मीद लगाएं।
लेकिन आज भी हर बुजुर्ग
यह गलती कर बैठते हैं
बच्चों की मोह माया में आकर
अपने जीवन की पूंजी दे देते हैं।
बच्चों को जब लायक बना दिया
अब अपना कमाए और अपना खाए
जी चाहे तो साथ रहे
वरना अपने अलग घर बनवाए।
क्यों हम बुढ़ापे में ठोकर खाए
आज इस दर तो कल उस दर जाएं
ऐसी गलती कोई बुजुर्ग ना करें
और ना ही कोई वृद्धा आश्रम जाए।
नाम-: डॉ. अपराजिता सुजॉय नंदी
पता -: रायपुर छत्तीसगढ़
ईमेल आईडी-: aparajitajoynandi11@gmail.com
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