संघर्षमय वैवाहिक जीवन,रूपा व्यास जी

बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता  
विषय  : मुक्त
विधा  : काव्यात्मक कथा
दिनांक  :  26/6/2020
दिन      :    शुक्रवार

शीर्षक:'संघर्षमय वैवाहिक जीवन'

जिनसे विवाह  की बात चली।
फिर किसी कारण वश बार-बार टली।।
पुनः एक दिन उनका फेसबुक पर संदेश आया।
जीवन में उनसे मिलन होगा,इस बात की खुशी लाया।।
फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ।
फिर सगाई व विवाह तक सम्पन्न हुआ।।
जीवन में सिर्फ सुख ही सुख होगा,ये सपने लेकर मैं चली।
ममता की छांव-पिता के दुलार में पली।।
ससुराल पक्ष ने उलाहना देना शुरू किया।
मानसिक यातना झेलती रही,लेकिन तुमने साथ न दिया,पिया।।
हक पर हक छीन लिए।
तुमने मुझ पर क्या-क्या अत्याचार न किए।।
शादी को छः माह बीत गए।
बच्चा क्यों न हुआ,अब तक,इस बात के ताने शुरू हुए।।
सोचा बच्चे के आने से सब-कुछ अच्छा होगा।
विचार न आया,कभी इस बार भी धोखा होगा।।
गर्भधारण करते हुए,सारा घर का काम किया।
गृह-कार्य करते हुए,मेरा पैर फिसल गया।।
भर्ती उस दिन अस्पताल में हुई।
बच गई,संतति लेकिन उस दिन में खूब रोई।।
बच्चे के जन्म-खर्च को हम नहीं उठाएंगे,कहकर,मुझे पीहर भेज दिया।
इस बार भी मेरी बहन ने भाई का फर्ज़ पूर्ण किया।।
ईश्वर मेरे जीवन में पुत्री-रत्न का सौभाग्य लाया।
खुश हुई मैं देखकर उसकी निर्मल काया।।
मैं खुश,मेरा पीहर पक्ष खुश हुआ।
लेकिन ससुराल पक्ष बेटे की आस में दुखी हुआ।।
मैं समझ न पाई कुछ दिन इसको।
बोलूं,क्या कहूं किसको?
सास कहती,"बेटा होता,तेरे लिये   दस  किलो दूध मंगवाती।"
वे कहतीं,"बेटी के लिए मैं क्यों अपना धन,लुटवाती।।"
यहाँ तक तो ठीक था।
लेकिन तुम भी मेरा साथ न दोगे, ये कहाँ तक उचित था।
एक दिन बेटी को मारने की ,उनके द्वारा कोशिश की गई।
उस दूधमुँही बच्ची के दूध में छिपकली डाली गई।।
एक माँ सब-कुछ सहन कर सकती है।
लेकिन अपने बच्चे का जीवन बचाने के लिए कुछ भी कर सकती है।।
अब मन-मस्तिष्क ने उनको न कहने की ठानी।
लेकिन पतिव्रता नारी कह न सकती ऐसी बानी।।
एक वर्ष की नन्ही परी हो गई।
वो छोड़ गए,हमको पापा के घर,ग्यारह मई।।
फिर धीरे-धीरे फ़ोन उठाना भी उन्होंने बंद किया।
पापा,"छोड़ कर आओ हमें क्योंकि विवाह-प्रण मैंने लिया।।"
मुझे क्या पता था,उनकी पूर्ण योजना होगी ही।
लांछल लगाकर,मुझे ही खड़ा करेंगे,वे पुलिस के यहाँ निर्मोही।।
पीहर आकर अपने बचाव में मैंने पुलिस-केस दायर किया।
पता नहीं फिर उन्होंने पुलिस को कहाँ पैसा दिया।।
भ्रष्ट शासन व्यवस्था से पाला पड़ा।
लेकिन मेरी हिम्मत का कभी खाली नहीं हुआ घड़ा।।
यहाँ आकर घटने चलती बच्ची को देखा।
खींच गई,मेरे चेहरे पर फिर से जीने की जीवन-रेखा।।
कई बार आत्महत्या की भी सोची।
क्यों तुमने मेरे जीवन(पति)की ज्योति नोंची।।
लेकिन बच्ची के लिए मुझे,जीना है।
दुख है,आज जीवन में तो उसे भी पीना है।।
कुछ दिन बाद ही पुनः स्कूल में आवेदन किया।
फिर से शिक्षिका का पद प्राप्त किया।।
लेकिन समस्या तो अब प्रारंभ हुई।
दुबारा मानसिक यातना शुरू हुई।।
उनके द्वारा गलत संदेश विभिन्न माधयम से  प्राप्त हुए।
मुझे गलत ठहराने में वे नाकाम हुए।।
एकल माता का जीवन कैसा होता है?
जीवन-संघर्ष,समाज के ताने में बीतता है।।
लेकिन आत्मविश्वास है,मुझमें कूट-कूट कर।
कितनी ही बार खड़ी हुई हूँ,टूट-टूट कर।।
विवाह का अंत विच्छेद होगा।
पर किस्मत के आगे कोई भी रुका न था।
आज समाज-सेविका,साहित्यकार व शिक्षिका के रूप में ज़माना जानता है।
'आयरन लेडी' के नाम से मुझे पुकारता है।।

नाम-रूपा व्यास
पता-'परमाणु नगरी',रावतभाटा,जिला-चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)
मेल आईडी- rupa1988rbt@gmail.com
व्हाट्सएप न.9461287867
                 
                   -धन्यवाद-

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