स्त्री मन ....✏

नमन मंच🙏
साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु मेरी रचना
विधा- काव्यात्मक कहानी
दिन- शुक्रवार
दिनांक - 26/06/2020

स्त्री मन ....✏

सोचो बलम , जरा सोचो । 

शादी में घूँघट का रिवाज निभाते हो 
ससुराल में बेइज्जत होने पर कितना बचा पाते हो ? 
सोचो बलम .............

तेरे घर सदा रहती तेरे माँ -बाप की बेटी बनकर 
मेरे माँ -बाप से दो दिन भी मिल क्या बेटा बन पाते हो ? 
सोचो बलम ...............

तेरे घर में नौकर - बहू में फर्क नहीं है 
मेरे घर आकर तुम भगवान बन जाते हो । 
सोचो बलम ...............

तेरे घर गई ब्याही नहीं भात -रोटी के वास्ते 
थोड़ा भी मान -सम्मान कहाँ दे पाते हो ? 
सोचो बलम .................

मेरे साथ होने का सुख क्या तुम्हें नहीं मिलता ? 
फिर क्यों गर्भवती होने पर मायके भिजवाते हो ? 
सोचो बलम .................

बीमार पति की सेवा फर्ज है मेरा 
मेरे बीमार होने पर क्यों पल्लू झाड़ जाते हो ? 
सोचो बलम ..................

सुख -दुख में साथ होंगे कसमें थीं खायी 
पर कितना निभा पाते हो .....
सोचो बलम ......................

जानती हूँ स्तनपान की क्षमता नहीं तुममें 
पर क्या सात दिन में एक दिन भी अपने बच्चे का 
मैला धो पाते हो ?  सोचो बलम ........

नहीं ....नहीं ....नहीं .....फिर क्यों , 
छोटी -छोटी बातों पर बवाल मचाते हो ? 
सोचो बलम ,  जरा सोचो । 

प्रतिभा स्मृति 
दरभंगा ( बिहार )

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