बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय-सावन में लग गई आग
विधा - पद्य
दिनांक-19-06-2020
दिन -शुक्रवार
शीर्षक:"सलोना सावन"
सावन में सलोनी वर्षा
आ गई देखो बन ठन के
शीतल बयार इतराती आई
गिरी फुहारें छन छन के।
मानुष तो मानुष
पेड़ पौधे भी हैं बौराए
बूढ़ा बरगद भी ताके
गरदन उचक उचक के।
सावन में आग लगी कुछ ऐसी
बुढ़ऊ को छाई जवंक
तांक झांक करते फिरते हैं
बब्बा झूम झूम के।
पनघट पे खड़ी गोरी
राह सजन की देखे
सौतन संग न आँख लड़ाना
कहती है धमका के।
आग लगी है जियरा में
प्रेम नदी उफन रही
भागी धूल सिर पे पाँव धरे
गोरी का घूँघट सरके।
साहब के घर तले पकोड़े
उधर गरीब के घाव
उसका छप्पर छलनी है
टपके अरमान रिस रिस के।
निंदियारी आँखे हैं फिर भी
सावन की करे अगवानी
कोने कोने खाट घूमती
रखी बाल्टी भर भर के।।
टूटा बाँध कटु बंधन का
हर्षाये ताल तलैया
क्षितिज अटारी गई दामिनी
मिलन अश्रु आँखों मे ढरके।।
*वंदना सोलंकी मेधा*©स्वरचित
नई दिल्ली
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