बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय : सावन में लग गई आग
विधा : कविता
दिनांक : 19/06/2020
वार : शुक्रवार
शीर्षक : "रूप निराला"
मैंने जब जब देखा दर्पण,
तेरा चेहरा दिया दिखाई।
चढ़ा इश्क का भूत मुझे ये,
मैं तो डर गया देखो भाई।
बांहों में बांहे उलझी थी,
और आखों में आँखें खोई।
आँखों में समर्पण भरा था,
और लट सुलझी सुलझी थी।
बड़े बड़े थे होंठ रसीले
मुंह चाँद सा गोल मटोल।
हिरनी जैसी चाल कटीली
पहर रही पांवों में रमझोल।
देख देखकर पागल होगा,
रहा पाट रूप का चाला।
हूर परी भी शरमा जाए,
बैरण ले रही रूप निराला।
सावन में रिमझिम वर्षा होती।
बालों पर बून्द पड़े बने मोती।
भीगा भीगा बदन कनक सा,
जला रहा था प्रेम की ज्योति।
तेरे गजब रूप के अंगारे ने,
मेरे मन में लगाई आग।
जलकर मरना नहीं भारती,
जीना चाहे तो भाग।
- भूपसिंह 'भारती',
आदर्श नगर नारनौल (हरियाणा)
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