प्यार का मंदिर -लघुकथा

प्यार का मंदिर -लघुकथा 

नीलू की डबडबाई आंखों को देख मांजी सब समझ गई , आज बड़ी बहू ने फिर मेरी छोटी बहू का दिल दुखाया है !
क्या करु बडी बहुरियां का जबान ही चलती है , काम धाम होता नही है । बस सब को बाते सुनाती रहती है । 
और नीलू चुपचाप सब सहती है कहती हूं दो बहुएं अलग हो गई तुम भी हो जाओ तो कहती है।
क्यों आप लोगो के साथ जो आनंद है वह अकेले नहीं ...
मां जी जानती थी नीलू से पूछुगी तो भी वह कुछ कहेगी नही ! 
मां जी ने मन में कुछ सोचा व हल्की हो गई 
शाम को सब लोग खाने पर एकत्रित हो गये , 
नीलू ने सबका खाना लगाया। 
मांजी नीलू एक थाली और लगाव और तुम भी आज से हमारे साथ ही खाना खाएगी और बात नही माननी है तो कल से अलग जा कर रहो। 
तुम्हारे लिए मैने प्लैट देख लिया है । 
सब हैरान ...क्या हो गया ...? 
"कुछ नही यह घर के अंदर का मामला है , सिर्फ मैं ही निर्णय ले सकती हूं और कोई नही ..
बड़ी "बहू मां जी क्या हुआ नीलू चली गई तो।घर का काम कैसे होगा ...
" चुप बिल्कुल चुप..काम की चिंता है ..तो प्यार से रहो मिल कर काम करो ...
वह बेचारी कुछ कहती नही तो क्या ...? 
मुझे दिखता , नही वह चुपचाप आंसू बहाती रहती है ...और काम करती रहती है ..
तुम बताओ बड़ी बहू सुबह तुमने क्या ....कहां ? 
नीलू से क्यो रो रही थी नीलू ... बोलो ..
बडी बहु को जरा भी आशा नही थी मां जीसबके सामने मुझ से सवाल करेगी ..खिसियाते हुए बोली कुछ नही मां जी वो ...
मैं कुछ सुनना नहीं चाहती सबके  सामने नीलू से माफी मांगो और गले मिलकर सारी कटूता दूर करो । 
" नीलू मां जी कोई बात नही .. 
सब चुप मैं सबकी मां हूं 
जरा भी अन्याय बर्दाश्त नही करुंगी , नही करुंगी ...सब सुन लो , दो बहुएं चली गई कारण बड़ी बहू की ज्यादती , पर नीलू बहुत संस्कारी बच्ची है वह सब सह  लेगी पर घरनही छेड़ेगी । 
तो क्या मैं उसकी मां हो कर उसे दुखी देखती रहू.....
मेरा घर प्यार का मंदिर है जो प्रेम से नहीं रह सकता उसके लिए बहार का रास्ता ...
मां ने बडी बहू की तरफ देख हाथो के ईशारे से समझा दिया ..
घर में घोर सन्नाटा ....
पर घर की खुशीयों की आहट 

डॉ अलका पाण्डेय

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