सोनम कुमारी जी की रचना 'पिता'

"पिता"
पृथ्वी हैं माता तो
गर आसमान पिता हैं।
रहने को पाव खड़ा तो
सोचने को मन-मस्तिष्क धरा हैं।
ईश्वर तेरी रचना विचित्र
एक से स्नेहिल छाव मिला तो
एक से जीवन-जीने का पैगाम मिला हैं।
कोमल रहो से थककर
जब उदास हो कठोर रहो पर
पिता के अमूल बातों से
जीवन गुजारने के परिणाम मिला हैं।
माना स्नेहिल नही हैं उनका शब्द
केवल क्लिष्ट, कठिन दौर में
हमे संभालता तेरा वजूद।
धन्य हे ईश्वर!पिता बनाया
ना हो जग में कोई पिता विहीन
मिले छाया दोनों को जिसको
करे वो कुल को और नवीन।
-सोनम कुमारी(झारखंड)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ