#पिता पर एक कविता
मैं कर्ज़ कैसे चुकाऊंगा,
जीते जी मर जाऊंगा।।
लिया जो किसी से पैसे उधार,
उसे नगद कर जाऊंगा,
उधार के संग जो मिला उधार,
सहानुभूति, जज्बात, एहसास, निस्वार्थ प्यार,
लेकर सातों जन्म भी कोई,
नही कर सकता उसका श्रृंगार,
रिश्ते हो जब जज्बाती मेरे यार,
दूं क्या और कितना दूं,
दिल मे रहता एहसास ए खुमार,
रिश्ते हैं कितने ही यहाँ बेसुमार,
पर ना हीं वो नजरिया,
नही वो संसार,
कर्ज मैं कैसे चुकाऊं यार,
ले लो मेरी जिंदगी उधार,
मैं कर्ज़ कैसे चुकाऊंगा,
जीते जी मर जाऊंगा।।
रिश्तौं मे जो रिसता है,
रिस रिस कर वो पिसता है,
रिश्तौं के जज्बात को कहो दिखाऊँ कैसे,
ऐसे निस्वार्थ प्रेम को दोस्तों बतलाऊँ कैसे,
कहे *भास्कर* मानवता का कर्ज चुकाऊँ कैसे,
एहसास ए जज्बात को झूठलाऊं कैसे,
मैं कैसे कर्ज़ चुकाऊंगा,
जीते जी मर जाऊँगा।।
डॉ सत्यम भास्कर भ्रमरपुरिया ✍
डायरेक्टर आयुस्पाईन हास्पिटल दिल्ली
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