ससुराल में मेरा पहला दिन


साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय : हास्य
दिनांक: 24 जून 2020
दिन: बुधवार 
शीर्षक: ससुराल में मेरा पहला दिन

ससुराल में मेरा पहला दिन था बड़ा निराला
क्या सोच कर रखा था और क्या कर डाला 
लेकिन उस दिन ने मेरे जीवन को बदल डाला 
और जीवन का सबसे बड़ा सबक सिखा डाला
घर से जाते समय मां ने दिया था यह इंस्ट्रक्शन 
बेटा रोज सवेरे जल्दी उठना और बना लेना इंप्रेशन।
मैंने रोते रोते हां में सिर हिलाया था मुझे क्या पता था आगे क्या होने वाला था।
सवेरा हुआ नींद नहीं खुली अलार्म भी नहीं बजा 
जब सासु मां ने आकर नाक किया तब पता चला
तब पता चला कि घड़ी में बज गए थे आठ 
जब बाहर निकले तो किसी ने कमेंट किया 
जरा देखो तो बहू के ठाट।
मैं थोड़ा घबराई पर हिम्मत ना कमाई 
मैंने सोचा अभी तो पूरा दिन बाकी है 
अभी भी काम बन सकता है समय काफी है.
थोड़ी देर में ननंद जी आई बोली भाभी हो जाओ तैयार देवी पूजा को जाना है गाड़ी खड़ी है द्वार ।
मैं खुश थी वाह मिल गया चांस इंप्रेशन जमाने का 
देवी पूजा के बहाने रूठों को मनाने का ।
फटाफट पहनकर बनारसी साड़ी हो गई मैं तैयार
पहुंच गई मंदिर में जहां बैठे थे पंडित जी महाराज।
रीति रिवाज के चलते मेरे मुंह पर था लंबा घूंघट
कुछ दिख नहीं रहा था कहां है मंदिर और कहां मंदिर का
पट।
मंदिर में थोड़ा अंधेरा था और पंडित भी था काला
और उस पर से लंबे घूंघट में कर डाला घोटाला ।
पंडित ने कहा बेटी देवी को हार पहनाओ मुझे कुछ सूझा नहीं मैंने पंडित के गले में हार डाला।
कुछ देर के लिए वहां भारी सन्नाटा था .
लेकिन किसी तरह पतिदेव ने सिचुएशन को संभाला था। मैं दुखी थी दूसरी बार भी इंप्रेशन बन न पाया था ।
लेकिन मैंने हिम्मत ना हारी थी मन में विजय होना ठाना था ।
शाम को जेठानी जी कमरे में आई बोली रसोई में चलो एक रस्म निभानी है आज तुम्हें सब के लिए खीर बनानी है।
मैंने उनकी तरफ देखा ,उनके चेहरे पर व्यंग की मुस्कान थी, शायद उन्हें मजा आ रहा था और मैं बेबस लाचार थी।
मैं उत्साह से उठी सोचा ऐसी खीर बनाऊंगी सब उंगलियां चाटेंगे और मैं इतराऊँगी।
फिर पतिदेव धीरे से बोले अगर बनाने आती हो तभी बनाना कृपया करके मेरी नाक ना कटवाना ।
मैंने कहा नहीं मैं बना लूंगी ,आपको बिल्कुल शिकायत का मौका नहीं दूंगी ।
मैंने बड़ी शिद्दत से खीर चढ़ाई ,लेकिन पतिदेव थे सशंकित उन्होंने पीछे की खिड़की से सारी विधि बताई। खीर बनाते बनाते मैं उनके प्यार में खो गई और खीर में भरोसे का मेला विश्वास का चावल और प्रेम की मिठास
घुल गई ।
सासू मां ने कहा बहू खीर देवता को खिलाओ 
बाद में सभी को सिखाओ ।
मैंने सजल आंखों से खीर पतिदेव को खिलाई जिन्होंने मुझे संकट से उबारा था और सबपर मेरा इंप्रेशन जमवाया था ।
आज इतने सालों बाद भी हम खीर वैसे ही पकाते हैं
मैं गलतियां करती हूं और फिर ये आकर संभालते हैं
उस दिन मुझे समझ आया जीवन का सबसे बड़ा सार यदि कोई संभालने वाला हो तो गलतियां करो हजार।।

पूर्णिमा सिंह 
मस्कट ओमान

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