लगी है क्यों तन मन में आग?

विषय "सावन में लग गयी आग "
विधा  हास्य कविता 
दिनांक  16 06 2020
दिन मंगलवार 
शीर्षक "लगी है क्यों तन मन में आग?"
(पद्य भाग)
नाम डा अजीत कुमार सिंह 
पता  11/343आ वि कालोनी योजना 3झूसी प्रयागराज मोबाइल नं 8765430655
कविता 
रिमझिम बरस रहे सावन से, लगी है क्यों तन मन में आग?
प्रणय निवेदन की ज्वाला से, दिल में जलने लगा चिराग ।
नारि पतिव्रता जिसको समझा, बोला उससे कर श्रृंगार ।
धक,धक-धक तो करता होगा, नाजुक दिल तेरा भी यार।
पत्नी ने क्रोधातुर होकर, ऐसा सबक सिखाया ।
भूल गया पति प्रेम पिपासा, सर अपना खुजलाया ।
फूटी कौड़ी नहीं जेब में, कैसे पेट भरेगा ।
यारों की महफिल में अब, कैसे साथ रहेगा?
फक्कड पति ने तब पूछा, सती नारियाँ गयीं कहाँ?
जिसने जीता था भगवन को, याद करें हम उन्हें यहाँ ।
दिवास्वप्न भौतिक युग में है, पतिव्रता नारि बनकर रहना ।
सीख लिया है उसने भी अब, प्यार में जीना मरना ।
चलती है इतरा इठला कर,कर कुटिल नयन, चंचल चितवन ।
नवयुग के परिधान निराले, करते फूहड़ अंग प्रदर्शन ।
अत्याधुनिक नारियों को झुक, करते सौ सौ बार प्रणाम ।
देश के धनपतियों की अब तो, कर दी है नीद हराम।
मंत्रमुग्ध हो ये धनपति अब, धनावृष्टि ऐसी करते हैं ।
जैसे पतझड़ के मौसम में, पेडो से पत्ते गिरते हैं ।
नैतिकता के घोर पतन की, लगी भयंकर आग ।
राख हो गयी जलकर उसमें, दिव्य प्रेम की बाग ।
पति-पत्नी सम्बंधों का भी, धन वैभव यदि मापदण्ड ।
मानवता का लोप सन्निकट, सद्गुण का होगा पाखंड ।

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