मलाल,माधवी गणवीर

माधवी गणवीर छत्तीसगढ़
बदलाव  मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय - मुक्त
विधा -  काव्यात्मक शैली
दिनांक - 24/06/2020
दिन - बुधवार
     *मलाल*

जब से छोड़ गई,
बालेंदु की अम्मा,
 मन मेरा फिर कहीं
और नहीं जमा
बड़े से बंगले में घर का कोना मिला,
फिर भी नहीं था मुझे कोई गिला,
 बेटे की अफसरी थी।
बाल किशन भट्टाचार्य नाम की
तख्ती उसके बगले की शान बढाती थी,
पर मेरे लिए वो अब भी बालेंदु था, बी.के. साहब से सब थर्राते थे,
अफसर बेटा था तो,
पर...घर में बहू की अफसरी चलती थी 
बड़ी कठिन दिन देखे थे हमने 
बेटे ने समझा था,पैसों की तंगी जी-जान से की पढ़ाई, नाम ओहदा,पैसा कमाया, 
पर वक्त ना कभी दे पाया, 
 बड़े से घर में पुराना चरमराता  फर्नीचर जम नहीं रहा था उनको
स्थिति में भाप गया 
भारी मन से निकल गया 
दो साल से खोजता हूं 
अख़बार के पन्नों में 
खोजते होंगे क्या....?
गुमशुदा लोगों में, खुद को ना पाकर हताश हो जाता हूं
बचपन में उसके थोड़ा लेट घर आने पर, परेशान सा निकल पड़ता,दूर गली- गली खोजने।
आज बहुत है मन में मलाल
 बस...दुआ है मेरी....
तुझे जरूर ढूंढे तेरा लाल।

*माधवी गणवीर*
राजनादगांव
छत्तीसगढ़

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ