नन्हीं चिड़िया की व्यथा

बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता  
विषय-मुक्त
विधा - काव्यात्मक कहानी
दिनांक-25-06-2020
दिन -गुरुवार

शीर्षक:""नन्हीं चिड़िया की व्यथा"

एक चिड़िया चहक चहक कर
घोंसला अपना बना रही थी
डाल डाल पात पात जा
तिनके चुन चुनकर ला रही थी

एक दिन तिनके की खोज में
वो घर तुम्हारे आ गई
उसके रंग बिरंगे पर,लाल चोंच
उसकी चपलता,उसकी सुंदरता
तुमको थी बस भा गई

तुमने उसको जब पकड़ा था 
उसकी चोंच में कुछ तिनके थे
कैद में आते ही उस बेचारी के
सारे सपने टूटे थे

दूर लटका रहा पेड़ पर घोंसला
उसका, जो अभी अधूरा था
तुम्हें उसकी पीड़ा से क्या लेना
तुम्हारा मकसद तो हुआ पूरा था

जब चिड़िया पिंजरे में कैद हुई थी
तब से अब बहुत कुछ बदल गया था
आंगन में खिली धूप होती थी
वो वृक्ष भी  दिखाई देता था

जिस पर उस चिड़िया ने 
सपना एक बुना था
खुश थी चिड़िया कि वो उसके
परिवार का एक सुरक्षित ठिकाना था

पर अब आज का मंज़र कुछ
और ही हो गया था
अब उस घर के सामने
गगनचुंबी इमारत खड़ा हो गया था

नहीं दिखता था अब 
उसका अधूरा घोसला
दूर से जिसे वो देख
दिल बहला लिया करती थी
देख देख कर आहें भरा करती थी

पिंजरे में दाना पानी सर्वसुलभ था 
बिन प्रयास सब मिल जाता था
फिर भी उस नन्ही चिड़िया का
दिल बड़ा घबराता था

फिर वो अहर्निश अनथक 
परिश्रम करने लगी
कैद से आजाद होने की 
भरसक प्रयास करने लगी

एक दिन उसकी मेहनत रंग लाई
पिंजरे की सलाख उसने काट गिराई
डरी सहमी चिड़िया ने
इधर उधर अपनी नज़र घुमाई
अपनी आजादी से खुश होकर
उसने एक उड़ान लगाई

मायूस हो गई वो ये देख कर 
दूर दूर तक न पेड़ न थे जंगल
चारों ओर कंक्रीट के जंगल उगे पड़े थे
पानी को भी तरस गई वो
कूप ,सरोवर सब शुष्क पड़े थे

इतने समय तक कैद में रह कर
वो ऊँची उड़ान भरना भी भूल गई 
साथी, संगी, हमसफ़र,बच्चों बिन
वो तन्हा मायूसी के झूले में झूल गई 

व्यथित चिड़िया घूम घाम कर
वापस पिंजड़े में आ बैठी
चाह नहीं रही अब आज़ादी की
परिस्थितियों से समझौता
वो कर बैठी..!!

 *वंदना सोलंकी*©स्वरचित
नई दिल्ली

संपर्क नम्बर-9958045700

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