*बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता*
विधा:- कविता
विषय:-काव्यात्मक कथा
(विवाह से पूर्व सैनिक की पत्नी का वार्तालाप ओर फिर उस सैनिक का बलिदान हो जाना।)
विधा:- कविता
विषय:-काव्यात्मक कथा
(विवाह से पूर्व सैनिक की पत्नी का वार्तालाप ओर फिर उस सैनिक का बलिदान हो जाना।)
दिनांक:- 25/06/2020, गुरुवार
सैनिक विजय
पत्नी वंदना
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*सूचना:- कृपया रचना चोरी न हो इस रचना का रजिस्ट्रेशन है।)*
⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳
शीर्षक:- *सैनिक का बलिदान*
शहीद होने से पूर्व वो भी प्राण प्रिय से बोल उठा।
हाथों में लिए रायफल खून उसका भी खोल उठा।।
ऐसी डोली साजकर लाऊंगा तेरे आँगन में।
जैसे सूरज चंदा निकले हो खुले प्रांगण में।।
ऐसी लहुँ की कहानी लिखूंगा मैं गगन पर।
भारत माँ विजय होगी मन होगा अमन पर।।
चाहे पले रमजान के रोज़े धरती अन्तःकरण में।
मैं विजय प्रतिज्ञा कर बैठा अपनी माँ के चरण में।।
इस भूमि की सेवा खातिर मित्रों से नाता तोड़ लिया।
लहुँ तिलक कर रण भूमि से नाता जोड़ लिया।।
मैंने नही चाहा था तेरी ज़ुल्फो की मुझे छाँव मिले।
नसीब हमारे अच्छे रणभूमि में मां के पांव मिले।।
मां ने मुझे वीरो की कथा सुनाई तब मैं शेर बना हुँ।
शत्रु बड़े एक पग न आगे 56" सीना ले मैं तना हुँ।।
बहना के हाथों का वो बन्धन आज भी सुरक्षित हे।
मैं खड़ा हुँ सरहद पर तब तक भारत माँ सुरक्षित हे॥
आया गोलियां बरसात कहता हे मैं आतंकी खुंखारी हुँ।
वो बोलो मैं पैग़मम्बर का उपासक अल्हा का दरबारी हुँ।।
ये चीनी भेड़िये मत जगा रे सोए हुए बबर शेर को।
मैं उपासक घनश्याम का हनुमान का पुजारी हुँ।।
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*पत्नी के ध्येय वाक्य कहती है सैनिक को*
इतना सुन कर मन से प्राण प्रिय भी बोल उठी।
अपने छोटे मुख से राष्ट्र हित की बातें बोल उठी।।
जरूरत नही मुझे अभी तुम्हारी करो देश की सेवा।
करो गुणगान वन्देमातरम बोलो जय गणेश देवा।।
गढ़ते रहो तुम इतिहास सदा रावण की लंका में।
तुरन्त अस्त्र चलाना मत जीना किसी शंका में।।
ऐ प्रण मेरा सदा दीप की बाती जली रहेगी।
नभ में विजय सुनाई दे अवध में उर्मिला खड़ी रहेगी।।
दिल के टुकड़ों को हाथों में लिए वो मौन खड़ी रही।
बाजार से खरीद,कर लायी थी मैं बिंदिया पड़ी रही।।
कटि बन्ध की खनक हाथों की बिच्छीय कहती हे।
छनछन करती पाज़ेब मांग सिंदूर रेखा खुश रहती हे ।।
तुम लौटकर न आना शरहद की कच्ची दीवारों से।
जमकर युद्ध करना लोहा लेना शत्रु के पहरेदारों से।।
मुझे मिला अवसर तो मैं भी झांसी की रानी हुँ।
मोह टकराए तो समझ लेना मैं ही हाड़ी रानी हुँ।।
मांग में सजा सिंदूर नही ,ओर सीमा की पुकारे बड़ गई।
सेहरा बंधा नही सिर पर ,पहले तिरंगे की पुकारे बड़ गई।।
सीमा की पराजय को विजय तुमने, फिर विजय कर दी।
बलिदान होकर तुमने भारत माता की वन्दना कर दी।।
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कवि कृष्णा सेन्दल तेजस्वी
(वीर रस, हास्य व्यंग्य, श्रृंगार , गीतकार)
*(मंच संचालक, वक्ता ,लेखक)*
*(साहित्यकार ,कवि)*
8435440223,
7987008709,
पता:- राजगढ़ धार मप्र
सैनिक विजय
पत्नी वंदना
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*सूचना:- कृपया रचना चोरी न हो इस रचना का रजिस्ट्रेशन है।)*
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शीर्षक:- *सैनिक का बलिदान*
शहीद होने से पूर्व वो भी प्राण प्रिय से बोल उठा।
हाथों में लिए रायफल खून उसका भी खोल उठा।।
ऐसी डोली साजकर लाऊंगा तेरे आँगन में।
जैसे सूरज चंदा निकले हो खुले प्रांगण में।।
ऐसी लहुँ की कहानी लिखूंगा मैं गगन पर।
भारत माँ विजय होगी मन होगा अमन पर।।
चाहे पले रमजान के रोज़े धरती अन्तःकरण में।
मैं विजय प्रतिज्ञा कर बैठा अपनी माँ के चरण में।।
इस भूमि की सेवा खातिर मित्रों से नाता तोड़ लिया।
लहुँ तिलक कर रण भूमि से नाता जोड़ लिया।।
मैंने नही चाहा था तेरी ज़ुल्फो की मुझे छाँव मिले।
नसीब हमारे अच्छे रणभूमि में मां के पांव मिले।।
मां ने मुझे वीरो की कथा सुनाई तब मैं शेर बना हुँ।
शत्रु बड़े एक पग न आगे 56" सीना ले मैं तना हुँ।।
बहना के हाथों का वो बन्धन आज भी सुरक्षित हे।
मैं खड़ा हुँ सरहद पर तब तक भारत माँ सुरक्षित हे॥
आया गोलियां बरसात कहता हे मैं आतंकी खुंखारी हुँ।
वो बोलो मैं पैग़मम्बर का उपासक अल्हा का दरबारी हुँ।।
ये चीनी भेड़िये मत जगा रे सोए हुए बबर शेर को।
मैं उपासक घनश्याम का हनुमान का पुजारी हुँ।।
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*पत्नी के ध्येय वाक्य कहती है सैनिक को*
इतना सुन कर मन से प्राण प्रिय भी बोल उठी।
अपने छोटे मुख से राष्ट्र हित की बातें बोल उठी।।
जरूरत नही मुझे अभी तुम्हारी करो देश की सेवा।
करो गुणगान वन्देमातरम बोलो जय गणेश देवा।।
गढ़ते रहो तुम इतिहास सदा रावण की लंका में।
तुरन्त अस्त्र चलाना मत जीना किसी शंका में।।
ऐ प्रण मेरा सदा दीप की बाती जली रहेगी।
नभ में विजय सुनाई दे अवध में उर्मिला खड़ी रहेगी।।
दिल के टुकड़ों को हाथों में लिए वो मौन खड़ी रही।
बाजार से खरीद,कर लायी थी मैं बिंदिया पड़ी रही।।
कटि बन्ध की खनक हाथों की बिच्छीय कहती हे।
छनछन करती पाज़ेब मांग सिंदूर रेखा खुश रहती हे ।।
तुम लौटकर न आना शरहद की कच्ची दीवारों से।
जमकर युद्ध करना लोहा लेना शत्रु के पहरेदारों से।।
मुझे मिला अवसर तो मैं भी झांसी की रानी हुँ।
मोह टकराए तो समझ लेना मैं ही हाड़ी रानी हुँ।।
मांग में सजा सिंदूर नही ,ओर सीमा की पुकारे बड़ गई।
सेहरा बंधा नही सिर पर ,पहले तिरंगे की पुकारे बड़ गई।।
सीमा की पराजय को विजय तुमने, फिर विजय कर दी।
बलिदान होकर तुमने भारत माता की वन्दना कर दी।।
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कवि कृष्णा सेन्दल तेजस्वी
(वीर रस, हास्य व्यंग्य, श्रृंगार , गीतकार)
*(मंच संचालक, वक्ता ,लेखक)*
*(साहित्यकार ,कवि)*
8435440223,
7987008709,
पता:- राजगढ़ धार मप्र
ॐमेरे सैमसंग गैलेक्सी स्मार्टफोन से भेजा गया है।
4 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर रचना जयहिन्द
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना 💐 💐
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना 💐 💐
जवाब देंहटाएंअति-सुंदर
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