बदलते रिश्ते
इसे रिश्तों में खटास या फिर रिश्तों का पतन कहिए !
पारिवारिक रिश्तों का भी खुलकर अब लोग ज़िक्र नहीं करते !!
यह कैसा दौर आ गया है बदलते परिवेश में सोचो !
दो सगे भाई भी शहर में मिलते हैं रिश्तेदार की तरह !!
बीते दिनों रिश्तों की बहुत बड़ी श्रृंखला हुआ करती थी !
मगर हम दो हमारे दो की संस्कृति में सीमित हुए रिश्ते सारे !!
पहले वाली मिठास दिखती नहीं अब रिश्तों में !
भौतिकवाद की चमक में बिखर गए रिश्ते-नाते !!
तरक्की की राह पर ज्यों-ज्यों दुनिया बढ़ती गई !
आपसी रिश्तों में भाईचारा और प्रेम घटता गया !!
तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !
0 टिप्पणियाँ