लुगाई और सावन

बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
दुसरा सप्ताह
दिनांक - 16/6/2020
दिन - मंगलवार
विषय - सावन में लग गई आग
विधा - कविता
शीर्षक - लुगाई ओर सावन

उसकी बोली जैसे सावन में आग
बारीश में बड गई है लुगाई की मांग

बहार निकल ने की कोशिश करे तो बारिश आ जाती है
घर में रहे तो लुगाई बरतन साफ करवाती है

उसकी नहीं सुने तो पल में रूठ जाती है
सुनों तो सहला के सिर पे सड जाती है

जब भी रोमांटिक बनने की कोशिश करते हैं
तब वो कुछ ना कुछ लेती है मांग
उसकी बोली जैसे सावन में आग

पकोड़े खाने की जिक्र करें तो मुझसे बनवाती है
प्रेम की बात करें तो वो नऐ पुराने कपडों की बात करती है

बोर होके टीवी देखे तो वो सिरियल निकालने बोलतीं है
फोन पर टाईमपास करे तो वो शक करतीं हैं

जब भी बारिश आती है
लुगाई खा जाती है मेरा दिमाग
उसकी बोली जैसे सावन में आग

- मेहुल दाहोदी
दाहोद, गुजरात
मोबाइल नंबर - 9099264908

आयोजन बदलाव मंच (बन)

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