बेटा बेटी एक समान

बदलाव मंच चित्राधारित काव्य के साथ वीडियो सृजन 

चित्र -- संख्या ८

विषय-- बेटा

शीर्षक -- बेटा बेटी एक समान 


सास कहे मुझे पोता जन दे,

पति कहे देना बिटिया रानी!

इन दोनों के बीच फंसी मैं,

डूबी लुटिया मेरी बिन पानी !


बेटा होता घर का दीपक,

तर्पण करता पितरों का!

स्वर्गधाम मिल जायेगा जब ,

देगा अंजुरी भर कर पानी!


सिर को जब वो फोड़ेगा ,

कपाल क्रिया पूर्ण होगी!

जग से आवागमन छूटेगा,

तभी प्राप्त मुक्ति होगी!


सारी बातें ये वेद शास्त्र कहें ,

बेटे बिन जीवन निष्फल रहे !

बुढापे की लकुटि होता बेटा,

मां बाप की चिन्ता हर लेता!


पर ये भी तो अब सोचो जरा ,

कलियुगी बेटों से है जग भरा !

जीते जी घर को नरक बनाये,

तनमन की यंत्रणा कांटे दे जाये!


मातपिता को वृद्धाश्रम भेजे,

उन्हें बुढापे में बोझ समझे!

सदाचारी विनीत नहीं हैं बेटे ,

कुपुत्र अधिक अब होते बेटे !


मां बेटा-बेटी में फर्क न करती,

प्रसव पीड़ा एक समान सहती!

कलियुगी सौ बेटों से बढकर हैं,

सद्गुणी सुलक्षणा एक बेटी!


ये दोनों मां की आंखों के तारे,

दुआओं से मां उनपे जीवन वारे !

आज हैं बेटा बेटी एक समान ,

हाथ पकड़ रखें मान सम्मान !


शराबी,कुकर्मी,व्यसनी, लती,

ऐसे बेटे से माता निपूती भली !

पुत्र हो यदि धुन्धुकारी जैसा 

आंसू में बहते हैं सारे अरमान ,

गोकर्ण सा पुत्र ईश का वरदान!!


✍ सीमा गर्ग मंजरी

 मेरी स्वरचित रचना

मेरठ

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