मछली माँ, लक्ष्मी करियारे

बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता 
विषय - मुक्त 
विधा - काव्यात्मक कहानी 
दिनांक - 24. 06. 2020
दिन - बुधवार 

       🍃" मछली माँ "🐟🍃
रिमझिम बूँदें देख वर्षा ऋतु का आगमन 
खुश बहुत है एक मछुआरे का हर्षित मन 
ज्यो ज्यो नदी की धार चढ़ेगी 
अधिक मछलियाँ और कमाई बढ़ेगी 
सोचता मछुआरा चल पड़ा लिये अपनी पाल 
जल्दी पहुँचा नदी किनारे और फेंकी अपनी जाल 
फिर फँसती गई मछलियाँ छोटी बड़ी अनगिन 
जब जाल से निकालने बैठा मछलियाँ तभी लेकिन 
एक मछली माँ बोल पड़ी त्राहिमाम त्राहिमाम 
चौका मछुआरा सुनने लगा आवाज दिल थाम 
आई आवाज कहाँ से ये कौन बोल रहा है 
मानवता मेरी लिये तराज़ू ये कौन तौल रहा है 
मछली माँ फिर बोली सुनो हे मछुआरे 
जानती मै हूँ साधन परिवार पालन तुम्हारे 
पर आज मुझे ममता मेरी रोक रही ये फर्ज निभाने से 
बीच नदी होंगे भूखे तरसते बच्चे मेरे जाल में फँस जाने से 
माँ बिन बच्चे का जीवन होता कैसा तुमने भी जीकर देखा है 
बचपन में माँ खो देने की तुम्हारे हाथों में भी रेखा है 
कर स्वीकार यह विनती मेरी मुझे अपने बच्चों के पास जाने दो 
यह जीवन खोने से पहले मुझे मेरे माँ होने का फर्ज निभाने दो 
मछली माँ की बातों ने  यूँ अंतर्मन झकझोर दिया 
माँगी क्षमा मछुआरे ने वापस पाल नदी की ओर किया 
कहा अब तक जीवन यापन के बहाने बस मै पाप ही कमाता रहा 
करता रहा मासूम जीवों की हत्या और राग फर्ज के गाता रहा 
करूँगा न अब ये कार्य कभी भी वचन तुम्हें मै देता हूँ 
मेहनत से ही अब परिवार पलेगा मेरा मै शपथ लेता हूँ 
आज एक क्षुद्र प्राणी ने सृष्टि के सर्वोच्च मानव की आँखें खोल दी 
ज़िंदगी के सभी मायने एक ही पलड़े पर रखकर इंसानियत तौल दी 
"जियो और जीने दो" अब से ये हम नियम बनाये 
दृढ़ संकल्पित हो यह जीवन पालनहारी प्रकृति बचाये...

         📖🖋️लक्ष्मी करियारे
( शिक्षिका लोक गायिका कवियत्री )
छत्तीसगढ़ जाँजगीर 
मो,whatsaap no 8959678264

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