साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय- मुक्त
विद्या - काव्य(कथात्मक)
दिन- मंगलवार
दिनांक - २३-६-२०२
शीर्षक - झकझोरते सवाल
हरे भरे दरख़्त की छाया में वो,
बैठकर देखता सोचता वो,
लहलहाते हुए चन्ने मूंग मोठ..
बाजरा गेंहूं सरसों..
सजीव हो उठते स्वप्न..,
इस बार लल्ली का ब्याह..
कल्लू की फीस..
सुगना की साङी..
छुटकन के कपङे..
बनिये का ब्याज..
सब हो जायेगा,
मन हर्ष से भर जाता..
पीङा थकान पल मे छूमंतर..
आंखों मे चमक..
होठों पे मस्ती भरा गीत मचल उठता..
पर ये क्या..?
आंधी तुफान वर्षा.. औले,
क्षण में सारे सपने जमीन पे लेट गये..
पानी अपनी गती से बह रहा..
साथ मे तैर रही..
लल्ली के ब्याह की रस्में,
छुटकन के कपङे..
सुगना की साङी..
कल्लू की उमिद..
आह्ह..!
बचपन से जिस पेङ की छांव में पला बढा,
जिस डाली में कभी लल्ली का झुला था..
उसी डाली पर झूल गया वो,
बस छोड़ गया.. कुछ सवाल।
ब्रह्मानंद गर्ग "सुजल"
भाडली,जैसलमेर(राज)
३४५०२७
मेल - bngarg81@gmail.com
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