सेवा सुचि सत्कर्म और सदज्ञान से बढ़कर।कुछ भी नहीं है इज्जत ईमान से बढ़कर।


गजल
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सेवा सुचि सत्कर्म और सदज्ञान से बढ़कर।
कुछ भी नहीं है इज्जत ईमान से बढ़कर।

सुख -दुख का फेरा तो दिन -रात जैसा है,
परहित, परमार्थ जीवन में मुस्कान से बढ़कर।

चरित्र चाऱुता सभी को मित्र बनाता,
शान -संपदा नहीं है गुरुज्ञान से बढ़कर।

सत्य -धर्म सुरक्षा है पावन कार्य जगत में,
है शरणागत अतिथी भगवान से बढ़कर।

संतोष त्याग राग और अनुराग अनूठा,
मानव मर्यादा धरती और असमान से बढ़कर।

काले कुकर्म छोड़ सभी अंतः से जागिये,
अन्र्त दृष्टी आलोक सूरज चाँद से बढ़कर।

उत्कर्ष हर्ष प्रगति होअपने वतन में,
मातृभूमि मातृभाषा है प्राण से बढ़कर।

चरणों में श्रेष्ट जनों के तीर्थ -धाम है सुधा,
माता -पिता सद्गुरु सर्व सम्मान से बढ़कर।

योनियाँ लखे चौरासी "बाबूराम कवि "अहा,
कोई योनी नहीं जग में इन्सान से बढ़कर ।

*************************बाबूराम सिंह कवि
ग्राम -खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508
मो0नं0-9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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               1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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