कैसे ? जमा होंगी किश्तें किसान की




कैसे ? जमा होंगी किश्तें किसान की
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दीवारें सज गईं हैं ,
लाग  -ए लगान की ।
कैसे जमा होंगी ?
किश्तें किसान की ।।
हैं कितने परिश्रमी ,
हल को चलाने वाले ।
क्यों?भूखे सो रहे हैं ,
सबको खिलाने वाले ।।
 रातें बड़ी- बड़ी है जमीं आसमां की ------
पढ़ लिख कर नौजवाँ ,
नहीं जीता शान से ।
मिट्टी में मिल रहें हैं,
सभी अरमान से ।।
लड़नी है लड़ाई सम्मान की ------------
मुड़ती है एक कहानी ,
एक ऐसे मोड़ पर ।
जहाँ अबला रो रही है,
तृण शॉल ओढ़कर ।।
नहिं सोचता "अनुज ",ऊँचे मकान की -------'
दीवारें सज गई हैं ,
लाग - ए लगान की ।
कैसे जमा होंगी ?
किश्तें किसान की ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज "
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश )

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