मेरी कमियाँ उनके गुण



बदलाव मंच हेतु गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में काव्य प्रतियोगिता हेतु
विषय: गुरू
दिवस: रविवार (गुरु पूर्णिमा)
दिनाँक: 05.07.2020
प्रकार: स्व:रचित एवं मौलिक
शीर्षक: ''मेरी कमियाँ उनके गुण"

मेरी परम पूज्य गुरु डॉ. साधना सक्सेना को समर्पित..

तुम चाहो तो चली जाओ कहीं और, किसी और के पास
कुछ यूं कहा था रुष्ट भरे शब्दों में, पर न थी वह रुष्ट
क्यूंकि साथ ही साथ यह भी कहा था 
कि मेरे साथ तो पढ़ना पड़ेगा खूब
मैंने भी सोचा एक पल में ही
चूंकि सोचने का समय था ही नहीं 
पढ़ने का शौक तो मुझे है 
तो पढ़ भी लूँगी ही 
सोचा पढ़ तो बहुत लूँगी

पर क्या पता था 
जिस पढ़ने की माँग वह कर रही थीं
वो पढ़ना ही न था
पढ़कर सोचना, समझना, विचारना 
और समालोचना भी करना था
मुझे तो 'पढ़ना' और 'पढ़ने' में फर्क ही नही पता था
समझ को विकसित करने का गुण उन्होंने मुझे दिया
और लेखन भी कहाँ था मेरा उच्च कोटि का..
बिन्दु तक कि तो समझ मुझ में थी नहीं,
कहने को मैं हिंदी की अध्यापिका थी
यह तो वह ही थीं, जिन्होंने
मेरी ध्वनियों में
अनुस्वर, अनुनासिक डाले

साथ ही मुझे सिखाया कि कैसे
मुश्किल हालातों में डटकर खड़े रहना है
विरोधियों के आगे झुकना नही है
और बताया यह भी मुझे कि
सत्य और कर्तव्यनिष्ठा के साथ अड़िग रहने की कीमत 
भारी तो हो सकती है पर
ह्रदय पर कोई बोझ रहता नही कभी

व्यक्तित्व को जाना गहराई से तो समझ आया कि
जिनसे हम प्रेम करते हैं जरूरी नही
उनसे सदैव प्रेम से ही बोले..
प्रेमियों के लिए उत्तरदायित्व 
प्रमुखता लिए होता है

भूलों से भरी मैं, 
जब भी उनके पास गई
भूल,भूल न रही मेरी, एक अनुभव बनकर
सन्दर्भगित हो गई..

ज्यादा चाहने वाले भले ही कम रहे हो उनके
मगर उनसे नफ़रत की वजह भी नही थी किसी को
डर भी तो नही रहा उनसे किसी को कभी
मगर शर्ते कि सत्य के साथ हो आमना-सामना
झूठ को झट से पकड़ लेने की पकड़म-पकड़ाई 
न जाने उन्होंने कितनी बार मुझसे भी खेली
मैं भी ढीठ थी, ड़टी रही मैदान में
शायद मेरे इसी ढीठता से हार मानकर
मुझे तराशने के फिर कई मौके उन्होंने दिए

और क्या-क्या बताऊँ अपनी कमियों और उनके गुणों को
अभी तो बाकी है एक लंबा सफ़र उनके साथ साथियों
सीखने की जगह भले ही बदल जाएगी
पर सीखने-सिखाने का मौका न वह छोड़ेंगी
और न मैं उन्हें ख़ुद को छोड़ने दूंगी...

डॉ. लता (हिंदी शिक्षिका),
नई दिल्ली
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