गुरू पूर्णिमा स्‍पेशल



गुरू पौर्णिमा स्‍पेशल
बदलाव मंच के प्रतिनिधि मंडल को अंजली खेर का प्‍यार भर अभिवादन ।
आज गुरूपौर्णिमा के शुभ अवसर पर जिंदगी जीने का फलसफ़ा सिखाने वाली मेरी नन्‍ही गुरू, मेरी बेटी को मेरा सादन नमन ।
जी हां, बेटी भी गुरू हो सकती हैं भला,,, सुनकर सबको आश्‍चर्य हो रहा होगा, शायद बेटी सुनेगी तो उसे भी आश्‍चर्य होगा क्‍योंकि मैने उससे यह बात कभी कही ही नहीं ।
मुझे याद हैं दशक पहले जब मेरे पति अक्‍सर टूर पर बाहर ही रहा करते थे, और मैं अकेले ही ऑफिस, घर-परिवार व नन्‍हीं बेटी की परवरिश में शायद थक सी गयी थी, अपनी सारी थकान, झुंझलाहट अपनी नन्‍हीं बेटी पर ही उतारा करती, पर वो थी कि मेरी कितनी ही डांट खाने के बाद भी प्‍यार से अपनी नन्‍हीं बाहों में मुझे थाम किस करती और सॉरी मम्‍मा कहकर चली जाया करती ।
उस दिन भी ऐसा ही हुआ था, ऑफिस में ऑडिट के चलते मैं कुछ फाइलें घर पर ही निपटाने के लिए ले आई थी, डिनर के बाद जब बेटी आदतन सोने के पहले कहानी सुनाने की जिद करने लगी तो मैने उसे सिर दर्द की बात कहकर अपने कमरे मे जाकर सोने को कहा । वो रूआंसी होती अपने कमरे में चली गई । मैं फाइल पलट ही रही थी कि वो फिर मेरे कमरे में आ गई ।
मेरा गुस्‍सा सातवे आंसमां पर था, मैरे उसे फिर डांट लगाना शुरू कर दिया, पर डांट सुनकर भी वो आगे बढ़ती मेरे पास आ ही गयी और अपने हाथों में पीठ की ओर छिपाई अपने ड्राइंग मेरे हाथों में थमा, मेरे चेहरे को अपनी ओर खींच प्‍यार कर सॉरी मम्‍मा कहकर दौडती हुई अपने कमरे की ओर चली गई ।
ड्राइंगशीट देखते ही मेरी आंखों से झरझर आंसूं बह निकले । उसने ड्राइंगशीट पर मम्‍मा की ड्राइंग बना कर लिखा था –‘’दुनिया की सबसे प्‍यारी मेरी मम्‍मा,,,,, आप हंसते हुए बहुत अच्‍छी लगती हो,,, सॉरी मम्‍मा, अब गलतियां नहीं करूंगी,,,,,’’
पढ़कर मेरा मन चीख-चीख कर रोने लगा,,, आखिर मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्‍य अपनी लाड़ली के चेहरे पर मुस्‍कान देखना और घर-परिवार की खुशियां बनाना ही तो हैं न,,, यदि मेरे व्‍यवहार से मेरी बेटी के चेहरे की मुस्‍कान छिन जाये तो मेरी इस जद्दोजहद का कोई उपयोग नहीं,,,,,
इतना सोचते ही मैं फाइलें बंद कर बेटी के कमरे में जाकर उसके पास लेटी तो देखा उसकी आंखों से झर-झर बहते आंसुओं से तकिया पूरी तरह भींग गया था,, मैने उसे बाहों में भरते हुए पूछा-‘’अंशी, कहानी सुनोगी,,,, वह बोली –‘’नहीं मम्‍मा, आपका सिर दुख रहा हैं ना,,, कहानी मैं कल सुन लुंगी ।
तत्‍क्षण मैने निर्णय लिया कि अपनी जिम्‍मेदारियों के बोझतले अपनी लाड़ली बेटी की मुस्‍कान को असमय मुरझाने नहीं दूंगी, उसको उसके हिस्‍से का प्‍यार दूंगी,,,
इस प्रकार जिंदगी को जीने का अंदाज सिखाने वाली, अपने अपनों के साथ जीवन के हर क्षण को आनंदी बनाने की सीख देने वाली, अपने स्‍वभाव में शहद सा माधुर्य घोल खुश रहने और अपने आस-पास के वातावरण को खुशनुमा बनाये रखने की सीख देने वाली मेरी बेटी,,, मेरी गुरू को आज गुरू पौर्णिमा पर सादर नमन’’
बदलाव मंच का आभार जिसने मुझे अपने मन की बात आप सबसे और मेरी नन्‍हीं गुरू से सांझा करने का मौका दिया ।
अंजली खेर
सी 206, जीवन विहार
अन्‍नपूर्णा बिल्डिंग के पास
पी एंड टी चौराहा, भोपाल
462 003

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