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🌷हरि -हरि बोल 🌷
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निमन जे करी उहे अग -जग से तरी हरि -हरि बोल।
आखिर देहिया अगिये में जरी हरि -हरि बोल।
आदमी के देहीया सबसे ह उवे अनमोल हो।
सभका से निमन जग में बोलल मीठ बोल हो।
अपने क इलका अपना जिनीगी में फरी हरि-हरि बोल।
आखिर देहीया अगीये में जरी हरि -हरि बोल।।
सांच में ना आंच लागी सांचे में समाइ जा।
बिना ही बोलवले दोसरा के दुख में धाइ जा।
हरि के गोहराल आठो याम हर घरी हरि-हरि बोल।
आखिर देहीया अगीये में जरी हरि -हरि बोल।।
प्रेमवा से सभही से बोली -बतिआइ ल।
जनम -जीवन आपन सुफल बनाइल।
सुख चयन इहे जिनीगी में भरी हरि -हरि बोल।
आखिर देहीया अगिये में जरी हरि -हरि बोल।
करम करत रह हरदम शुबहो -शाम हो।
करमे महान ह उवे "कवि बाबूराम "हो।
लिख सिख निमन भव से पार इहे करी हरि - हरि बोल।
आखिर देहिया अगिये में जरी हरि -हरि बोल।।
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बाबूराम सिंंह कवि, खुटहाँ, विजयीपुर, गोपालगंज (बिहार)
मो०-९५७२१०५०३२
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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