आज सगरो झुरा के विरान हो ग इल।
सभ्यता, सुख स्वारथ में बरबाद बा,
सांच सपना झूठ सभके ईमान हो ग इल।
जे मरद दुख -दरद सभके टारत रहे,
नेक नियत ओहु के बेईमान हो ग इल।
जवना औरत पर गरब सब दुनियां करे,
आज ऊहो धरम से अनजान हो ग इल।
बेटा-बेटी के आसरा माई -बाप के रहे,
उहे जिनिगी में जोखिम तुफान हो ग इल।
भाई -भाई के रिश्ता रतन सा रहे,
उहे मुद ई अजब शैतान हो ग इल।
कबो नेता चहेता सभका दिल में बसे,
आज उहे देखी दुइजी के चान हो ग इल।
जगत गुरु पद सुन्दर मास्टर के बनल,
शिक्षके से शिक्षा लहुलूहान हो ग इल।
अब समझदार सज्जन के मोल कहाँ बा,
लोग बिगडा़, बवाली महान हो ग इल।
कबो बोली में सभका झरत रहे फूल,
चारु ओर आजु कडुआ जुबान हो ग इल।
भूलल करम -धरम सब भक्ति -भरम,
आज प इसे सभकर भगवान हो ग इल।
अइसन कलि के कमाल बा "कवि बाबूराम "
निन्दा सुने बदे सभके आगे कान हो ग इल।
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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)
जिला -गोपालगंज (बिहार)
पिन -८४१५०८
मो०नं०-९५७२१०५०३२
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