फूल सा परिवार सजल रहे प्यार से, आज सगरो झुरा के विरान हो ग इल।

फूल सा परिवार सजल रहे प्यार से, 
आज सगरो झुरा के विरान हो ग इल। 
सभ्यता, सुख स्वारथ में बरबाद बा, 
सांच सपना झूठ सभके ईमान हो ग इल। 
जे मरद दुख -दरद सभके टारत रहे, 
नेक नियत ओहु के बेईमान हो ग इल। 
जवना औरत पर गरब सब दुनियां करे, 
आज ऊहो धरम से अनजान हो ग इल। 
बेटा-बेटी के आसरा माई -बाप के रहे, 
उहे जिनिगी में जोखिम तुफान हो ग इल। 
भाई -भाई के रिश्ता रतन सा रहे, 
उहे मुद ई अजब शैतान हो ग इल। 
कबो नेता चहेता सभका दिल में बसे, 
आज उहे देखी दुइजी के चान हो ग इल। 
जगत गुरु पद सुन्दर मास्टर के बनल, 
शिक्षके से शिक्षा लहुलूहान हो ग इल। 
अब समझदार सज्जन के मोल कहाँ बा, 
लोग बिगडा़, बवाली महान हो ग इल। 
कबो बोली में सभका झरत रहे फूल, 
चारु ओर आजु कडुआ जुबान हो ग इल। 
भूलल करम -धरम सब भक्ति -भरम,
आज प इसे सभकर भगवान  हो ग इल। 
अइसन कलि के कमाल बा "कवि बाबूराम "
निन्दा सुने बदे सभके आगे कान हो ग इल। 

*************************
बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) 
पिन -८४१५०८
मो०नं०-९५७२१०५०३२
************************


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ