अनोखी लिखित सह वीडियो प्रतियोगिता
ज़िन्दगी के हाल कैसे हो रहे हैं
बढ़ रहे हैं पांव ,जीवन जल रहे हैं।
नीड़ उजड़े हैं बहुत इस दौर में
लोग कितने घर से बेघर हो रहें हैं।
एक सुबह ,एक सांझ सी है जिंदगी
जल रहे मन दीप राहें मिल रही हैं
एक तिनका फिर उठाया आशियाने के लिए
बंध रही है आस, सांसें चल रही हैं।।
डॉ.अनीता तिवारी
भोपाल
0 टिप्पणियाँ