शीषर्क - अधीर -
अपनो की पीर से
मन बहुत अधीर है
सुख दुख का खेल है
एक का आना
दूजे का जाना है ।
अमीरी ग़रीबी की टक्कर है
प्यार मोहब्बत का चक्कर है ।
बिन रोये ही आँखें लाल है ।
ये क्या जमाने का कमाल है ।
नये जमाने का आकर्षण है
मोबाईल का सारा गणित है ।
चम्मचागीरी चौमुखी है
आदमी बहुमुखी है ।
साहित्य मौन है
कबाड़ का मोल है
सच्च लिखना बंद है
साहित्य सहमा सा बेदम है
भविष्य में अंधकार है
जिंदगी सब बेकार है ।
सिसक रही संवेदना है
रोती कलपती वेदना है ।
माँ बाप लाचार है ।
बहू बेटे चार चार है ।
बचपन की यादें है
जवानी के वादे है
जिंदगी की शाम है
मौत का आगमन है
बाक़ी सब व्यर्थ है
यही एक यथार्थ है
मौत के बाद फिर जन्म है
नये सफ़र का आगमन है
पिछले का सारा गमन है
सत्य का उजाला है
झुठ का मूंह काला है
महकता बचपना है
सुरक्षित लड़कपन है
ममता का आंचल है
जीवन मेरा सफल है ।
प्यार का दामन है
पिता का साथ है।
दर्जनों खिलौने है
मेरे सपने सलौने है
पिता का दुलार है
शिक्षक की मार है
मन संकल्प बध है
शिक्षा के विकल्प है ।
इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांत है
रिमोट कंट्रोल सिमांत है
मातृ भाषा हमारी हिंदी है
माथे पर सजी उसके बिंदीहै ।
सत्य की जीत है
असत्य की मौत है
सत्य वचनवद्ध है
झुठ समृद्ध है
शब्दों के नये नये अर्थ है
शंकाएँ कुशकाऐ व्यर्थ है
विकास का आगमन है ।
नये नये किर्तीमान है ।
असीमित कल्पनाऐ है
सीमित विकल्प है
अपनो की पीर से
मन बहुतअधीर है ।
बचपन सलोना है
बाक़ी सब रोना है।
जन्म से आना है
मौत से जाना है
यही सत्य है बाक़ी ..
अलका पाण्डेय
Badlavmanch
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