कविता-सीतामढ़ी..... स्नेह का द्वार

बहुत याद आती हैं मुझको,
ओ प्यारी सीतामढ़ी।
क्या भूलूँ ,क्या याद करू,
मैं तेरी अकथ कहानी को।
दुःख मिला,कुछ कष्ट मिले,
पर सुख की बेला अद्भुत थी।
स्नेह मिला लोगों का मुझकों,
दीदी मिली सखी जैसी,
प्यार मिला,सम्मान मिला,
जीवन का सब सार मिला।
सब उजड़ गया,जब ठौर-ही बदला।
नवीन राह,नव दौर ही बदला।
रह-रहकर वो पल हैं सताते,
बरबस आँखों में आँसू हैं आते।
मैंने तो बस कुछ वर्ष बिताएं,
लगा कि जानकी मैं ही हूँ।
सीतामढ़ी का नाता मुझमें,
लगता बना बहुत ही गुढ़।
मायका तो था ही नहीं,
वह ससुराल भी नही रहा।
सुख-दुःख की राहों का जैसे,
पगडंडी-सा जुड़ा हुआ।
सीतामढ़ी मैं तुमको बहुत याद करती हूँ।
शायद मिलूँगी, फिर-से कभी,
यहीं आस धरती हूँ।
नाम-सोनम कुमारी
राज्य-झारखंड

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