गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर । गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: ॥



।। *गुरु और ईश्वर*।। 

गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर ।
गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: ॥
एक सद्गुरु में ही ब्रह्म बसा हुआ है, विष्णु बसा हुआ है, ईश्वर बसा हुआ है। भारतीय संस्कृति में, सनातन धर्म में गुरू को ईश्वर से भी ऊँचा स्थान दिया जाता है। यह हमारी संस्कृति का मूलमंत्र है, सद्गुरु की कृपा से ही हमे अपने और समस्त के रहस्यों का पता चलता है, वो ही कार्य कारण को समझने की बुद्धि और करने योग्य का विवेक प्रदान करते हैं।
गुरु ही हमारा जीवन सार्थक बनाते हैं, गुरु से हमारा जीवन सन्मार्ग पर चलता है। गुरु के जरिए ही हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं, भगवान का अनुग्रह गुरु के माध्यम से ही मिलता है। सद्गुरु की संगति और कृपा से बड़ा कोई भी आनंद और धन नहीं इस संसार में नहीं है। भटके हुए राही को और दिशाहीन को एक राह दिखाते हैं, दिशा देते हैं। गुरु की महिमा अनंत है, अपरंपार है।
गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् ।
गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
गुरु ही प्रथम है, गुरु ही परम दैवत है। गुरु से बढकर इस दुनिया कुछ भी नहीं। ईश्वर ने ही गुरु की रचना की है । गुरु ईश्वर का प्रतिनिधि है जो कि मनुष्य और ईश्वर के बीच कड़ी का काम करता है । गुरु वह है जो परमात्मा तक पहुचने का सही रास्ता बताता है। हमारे ग्रंथो में गुरु को परमात्मा से भी बड़ा बताया गया है। गीता में लिखा है कि गुरु का नाम लेकर भक्ति कर के ही मोक्ष प्राप्त होगा।
संत कबीर कहते हैं:
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोबिंद दियो मिलाय।।
हम मानते हैं कि ईश्वर ही सर्वमान्य है, हमारा सृष्टिकर्ता है, कण - कण में बसा हुआ है। ईश्वर की आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। तो इसका ज्ञान हमें कहाँ से मिला ? गुरु से ही हमें इश्वर का एहसास होता है, गुरु से इश्वर का भाव मन में पैदा होता है। इसलिए गुरु बहुत श्रेष्ठ होता है। यह वास्तविकता भी है कि गुरु हमारे जैसा ही है, हमारे साथ ही रहता है। किन्तु सदैव हमें स्मरण रहना चाहिए कि गुरु परमात्मा का प्रतिनिधि है। परमात्मा का बोध कराने के लिए ही गुरु अवतरित हुए हैं।
’अहं ब्रह्मास्मि’ का रुप किसी के पास है तो सिर्फ गुरु हो सकता है। ब्रह्म (ईश्वर) अनंत है, उसी अनंत में गुरु की सृष्टि होती है। उसी अनंत में मिलने के लिए, मोक्ष प्राप्ति के लिए हमें गुरु के सानिध्य में जाना ही पडता है। यह संसार नश्वर है, यह सब संपत्ति नश्वर है। चाहे राजा हो या रंक, चाहे अमीर हो या गरीब सबको मोक्ष चाहिए। संपत्ति से कोई अमीर नहीं बनता, दुबलेपन से कोई दुर्बल नहीं बनता। सद्गुणों से इंसान बडा बनता है, सद्गुणों से एक सद्गुरु बनता है और उसी सद्गुरु की मोक्षछाया में आये बिना हमे मुक्ति नहीं मिलती। गुरु आत्मज्ञानी होता है, गुरु हमारा मार्गदर्शक होता। गुरु सबकी भलाई चाहते हैं। गुरु अपने लिए ये यज्ञ या पूजा आदि नहीं करते, निस्वार्थ भाव से विश्वकल्याण के लिए करते हैं। गुरु का स्वभाव सहज और सरल होता है, गुरु की दृष्टि करुणामयी होती है, गुरु अपने भक्तों के लिए समर्पित होता है। गुरु की कृपा से, गुरु के अनुग्रह से हमारा जीवन सँवर जाता है। इसलिए गुरु के बिना तो जिंदगी में कोई दूसरा मार्ग ही नहीं।
सामान्यता कहा जाता है कि गुरु शब्द का अर्थ ही है अज्ञान से और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना ज्ञान की ओर ले जाना। असल में मनुष्य या एक कोई जीवी पत्थर की तरह होता है उस अज्ञान रूपी मनुष्य को क्या पत्थर को ज्ञानी बनाना उसे प्रकाश की ओर ले जाना यह महत्व काम सिर्फ गुरु ही कर सकता है। गुरु बिन हमें कोई सन्मार्ग दिखा ही नहीं सकता गुरु बिन हम स्वर्ग की ओर नहीं जा सकते। जो स्वर्ग की कल्पना है या ईश्वर की कल्पना है उसे हम में गुरु ने ही भरा है उसका ज्ञान हमें गुरु से ही प्राप्त हुआ है। अगर हमारे जीवन में गुरु न होता तो हम भटक जाते हमारा जीवन एक कटी पतंग की तरह होता। गुरु निस्वार्थ भाव से   दूसरे के या अपने शिष्यों के जीवन को  सॅंवर देता है।गुरु का महत्व हर एक के जीवन में अपार है अपरंपार है।
 *गुरु बिन कौन दिखाएगा मार्ग
गुरु बिन कौन देगा ज्ञान ।
गुरु बिन हमें पत्थर माना
गुरु से पाता मान सम्मान ॥* 

 *डॉ. सुनील कुमार परीट* 
बेलगांव कर्नाटक
मो. 8867417505

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