जियान करता $

 
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🌾जियान  करता   🌾
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ताडी़ सराब पी जे खाता मांस -मछरी जियान करता। 
जनम जिनीगी सगरो गतऱी जियान करता। 

अन्न अइसन मन होला पानी अइसन बानी 
भगती भजन के निमन भाव उ का जानी। 
गियनवा के बाति सुनि अइंठे जेकर अंतरी। जियान0।
जनम जिनीगी सगरो गतरी जियान करता।। 
करमे महान हवे करमे शुभ कमाई
करम का फल से केहू बचि नाही पाई
करमे बढा़ई आगे करमे कुल कतरी। जियान0।
जनम जिनीगी सगरो गतरी जियान करता।। 

करम में चूक होई नरक में जइब 
आदमी के देह हई नाहके गंव इब
लोक -परलोकवा के करमे ह छतरी। जियान0।
जनम जिनीगी सगरो गतरी जियान करता।। 

आन्हर अभिमान में बा ओकरा का बुझाई 
 निमन -बाउर सच आ करम के गहिराई 
मन के मनाइ रोज धइ -धइ के रगरी। जियान 0।
जनम जिनीगी सगरो गतरी जियान करता।।

नाहक में जात अहा! एक-एक सांस बा, 
चेत करी नाही एइमें कवनो विकास बा ।
"बाबूराम कवि" नइया लागी कवना कगरी। जियान 0।
जनम जिनीगी सगरो ग़तरी जियान करता।। 

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बाबूराम सिंह कवि 
खुटहाँ, विजयीपुर, गोपालगंज स
(बिहार) पिन-841508
मो0नं0-9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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