जवन गइल समय उ आइ ना

🌷भोजपुरी कविता 🌷
जवन गइल समय उ आइ ना
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खटपट में जिनगी बित गईल, झटपट सोचब कुछ पा जइब ।
जवन गईल समय उ आइ ना झूठे में साफ बिला जइब ।
मेहरी रूप माया लालच में इ सगरो जग अझुराइल बा। 
ईमान धरम कइसे बांची स्वारथ मन बिच समाइल बा। 
निमन -बाउर जो ना चिन्हब सब कुछ रहते मुरझा जइब ।।जवन0।।
जले हरि से नेह लगइब ना जवन पावे के ह तवन पइब ना। 
जब लागी जाइ मन हरि जी में तब कुछउ पर ललचइब ना। 
इहो मारग तबे मिली जब कच्छ -भच्छ कुछउ ना खइब।जवन0।
जे हरि से नेह लगवले बा आपन इतिहास बनवले बा ।
सच नेकी से मन चंगा कर खुद में भगवान के पवले बा। 
अपने भीतर हरि के खोज, कोशिश करब त पा जइब।जवन।
आदमी के देह उजियार हवे सुख सरग सांच दुआरी हवे। 
मिठा बोलल जग में सबसे वशिकरण मंतर बरियार हवे। 
मिठ बोलब "बाबूराम कवि "इरीषा दुख दरद भुला जइब।
जवन गइल समय उ आइ ना झूठे में साफ बिला जइब ।

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बाबूराम सिंह कवि

On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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