जन्नत
जन्नत है मॉं के कदमों में
जन्नत है प्यार बढ़ाने में,
जन्नत कभी नहीं मिलती,
दर-दर की ठोकर खाने में
जन्नत है सात्विकता में
ना किसी का दिल दुखाने में
मन्नत भी माँगो तुम यही
स्थान मिले पिता के श्रीचरणों में
जन्नत है मात-पिता के आशीष में
सेवा कर जीवन सफल बनाने में
यह जीवन है क्षणभंगुर कॉंच सा
कुर्बान करो खुशियां बाँटने में
प्रसन्नता नहीं चीज़ें संजोने में
मिले हर जीव का दुख बाँटने में
क्या लाए थे क्या ले जाएंगे
जन्नत का सार छुपा इसी में
हीरल कवलानी
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