अनेक मिथ्याओं के गोल घेरे में बंद स्त्री,सच इसलिए नहीं बोलती !

स्त्री
अनेक मिथ्याओं के गोल घेरे में बंद स्त्री,
सच इसलिए नहीं बोलती !
क्योंकि वो हिदायतों में आज भी जीती है,
परोक्ष रूप से रेत पर बनी,
अपनी छाया को निहारती स्त्री,
अपने भीतर की तृष्णा को बटोरती स्त्री,
हथेली के बीच से रेत में खोई खुशी को निहारती स्त्री,
अपने अबोध मन को वात्सल्य रस से सींचती स्त्री,
विकास का अनुकरण कर मुक्ति की राह को झांकती स्त्री,
वासना की समाधि पर कराहती स्त्री,
प्रेम मार्ग  को पाने की जिजीविषा से आतूर स्त्री,
क्यों जीत कर भी !
हारती प्रतीत होती है स्त्री।
कल्पना झा
बोकारो, झारखंड

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