*मुक्तक*
*दिखावा*
फर्जी लोगो से भी मैं बहुत कुछ सीख लेता हूँ।
जो बीतता है दिल पे मैं झट से लिख लेता हूँ।
ये दुनिया का रीत है सीख के सिखाते चलो
अहित ना इस दरमियां यही तहजीब रखता हूँ।
तुम चाहो तो मुझको थोकड़ मारते रहना।
पैर खीचना मेरा या मनोबल बिगाड़ते रहना।
मैं हर चीज में कुछ उम्दा ही ढूंढ लेता हूँ अक्सर
फर्क नही पड़ता तुम चहो तो भले मुझे नकारते रहना।
जीवन के कहानी का मैं तो एक चरित्र हूँ।
मैं ऊपर वाले के द्वारा बनाया छोटा सा चित्र हूँ।
तुम भले मेरा शरीर को देखों बाहर से भला
मैं अंश हूँ उस परमात्मा का तभी अन्तः करण से पवित्र हूँ।
© *प्रकाश कुमार*
*मधुबनी,* बिहार
Badlavmanch
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