क्रोध बड़वानल आग ना चिंगारी ना धुंआ कर देतीसब कुछ ख़ाक है।।

क्रोध बड़वानल आग 
ना चिंगारी ना धुंआ कर देती
सब कुछ ख़ाक है।।
          
क्रोधाग्नि दिखती नहीं 
अंतरमन की ज्वाल द्वेष ,दम्भ, घृणा क्रोधाग्नि का आधार है।

प्रतिशोध ,प्रतिकार क्रोधाग्नि की अस्तित्व ,आत्मा की
ज्वाला विकट विकराल है।।

क्रोध वासना का मद ,मदान्ध 
शैने शैने जलता प्राणी नहीं कोई
इलाज़।             

सुखेंन ,धन्वन्तरि 
नहीं खोज सके चिकित्सा आज 
विज्ञान, वैज्ञानिक क्रोध पर 
शोध नहीं करते क्रोध से क्रोधित
मलते रहते हाथ ।।

मद की माद से क्रोध का उद्भव,
उद्गम विकार क्रोध की धार है।
कही कभी क्रोध की ज्वाला
की लपटों का उठाना अनिवार्य
है।।

मान, अपमान ,अहंकार की चिंगारी
का क्रोध कायर पराक्रम की
लपटों का प्रलय सर्वनाश है।।

क्रोध शिव शंकर अविनासी
का तांडव का रौद्र रूद्र गरल
बिष काल कराल है।।

क्रोध भय भंयकर विकृत
का अवसाद है।
चिंता चिता बेचैनी की धरा 
प्रबल प्रवाह है।।

अदृश्य लपटो में जल जाते
कितने युग ,सृष्टि ,धरा धन्य
भी शर्माती क्रोध ,क्रूर ,काल,
हथियार है।

कंस क्रोध की आग की लपटो
का कृष्णा कंस वंश संघार है।

रावण के अंतर मन की ज्वाला
का पंडित ,ज्ञानी, वीर, धीर
का सर्व नाश मर्यादा का राम है।।

क्रोध कर्म मर्म धर्म दूर्वासा जैसा 
अन्याय अत्याचार भ्रष्ट भ्रष्टाचार का विनाश
विलप्लव भूचाल युग उद्धार परशुराम है।।

कभी क्रोध है काल ,कभी क्रोध
है ढाल. कभी क्रोध है चाल, 
क्रोध कही अनिवार्य है।।

विष्णु ना अपमानित होता
ना क्रोध की प्रतिज्ञा करता
ना होता वर्तमान ना मौर्य वंश
खंड खंड भारत की  अखंड बुनियाद है । 

क्रोधाग्नि जब जल जाती 
निस्वार्थ कर्म की चिंगारी से
लपटों से इसके वर्तमान के
अंतर्मन से उदय ,उदित स्वर्णिम
भविष्य का नव सूर्योदय का 
निर्माण है।।

निष्काम कर्म के धर्म धुरी की
घर्षण चिंगारी पौरुषता की परिभाषा क्रोध युग जनमेजय
का नाम है।।

नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

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