*ग़ुरूर था अश्कों को भी अपने वजूद का,
वो भी गिर गये अब इंसानों के मानिंद..*
रुसवाई मिलती है इश्क़ में..
रूह कहाँ सम्भलती है इश्क़ में..
हुईं बर्बाद इश्क़ में न जाने कितनी ही ज़िंदगियाँ...
फिर भी मिटा न पाईं तहरीर-ए-इश्क़ को पाबंदियाँ...
*दीपक क्रांति*
Badlavmanch
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