वो निर्मोही हुई

कुछ पंक्तियाँ - वो निर्मोही हुई..... 

 रात  थी  कायनात  सारी  सोई  हुई
 हाथ  लगी  तस्वीर   तेरी  खोई  हुई

 कहने  को  तो  बस तेरी तस्वीर थी
 उसमें थी कुछ पुरानी यादें बोई हुई

 तेरे तन की बू लिपटी हुई कागज में
 कितनी बातों में से बात ये कोई हुई

अब बिस्तर पे मेरे,सलवटें दिखती नहीं
रखता हूं  हर वक्त  चादर  धोई  हुई

वो दिख गई चलती सड़क-चौराहे मुझे
मायूस थी,और आंख भी थी रोई हुई

मैंने तो उसको,खुली किताब समझा
थी मगर इतनी कौल^अंदर छुपोई हुई.(वादे )

"उड़ता"वैसे शर्मायी आटे सी लोई हुई 
और नज़रें फेर ली वो ऐसी निर्मोई हुई.



स्वरचित मौलिक रचना 

द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
झज्जर -124103 (हरियाणा)

संपर्क +91-9466865227



Badlavmanch

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