पर्यावरण दिवस प्रतियोगिता काव्य संग्रह

गिता विशेष के  निर्णायक मंडली टीम का हार्दिक स्वागत.. अभिनन्दन 🙏
बलराम राष्ट्रवादी,अद्भुत तत्सम कवि अमेठी, उत्तर प्रदेश, 
शैलेन्द्र सिंह 'शैली',वरिष्ठ कवि हरियाणा 
कमल कालू दहिया, संस्थापक उदय कमल 
अभिषेक कुमार,आई ए एस अध्येता सह समाजसेवी 
एन के सरस्वती, संपादक इ-अग्रसर पत्रिका 
नंदिता रवि चौहान, वरिष्ठ कवयित्री, राजस्थान 
रशीद अकेला, उपाध्यक्ष बदलाव मंच 
संजय कुमार विश्वास, उपसचिव, बदलाव, मंच 
दीपक पंकज, उपाध्यक्ष, बदलाव मंच
के.जे  गढ़वी,सम्पादक हालार टुडे (गुजराती)
शशिभूषण वरिष्ठ कवि
डॉ.सुनील कुमार परीट 
मुख्य सम्पादक राष्ट्रीय साझा-संकलन "कहता है मन मेरा"

इंजीनियर बीके रंजे श राय ' रत्न'
राजौरा, बेगूसराय, बिहार
६२०३७९०११२
ranjeshkumar904@gmail.com
दिनांक:५ जून, २०२०
विषय: विश्व पर्यावरण दिवस
विद्या: कविता
शीर्षक: वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं

 *वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं* 

आओ वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं,
दूषित होने से पर्यावरण को बचाएं।
करिए संरक्षण पर्यावरण का,
होगी हरियाली पृथ्वी पर्यावरण में।।

आइए हम वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं
पर्यावरण को दूषित होने से बचाएं
आइए हम सब मिलकर मनाएं विश्व पर्यावरण दिवस आज।।

वृक्ष है तो वृष्टि है,
वृक्ष है तो सृष्टि है।
चींटी हो या हाथी,
वृक्ष है सबका साथी।।

आइए हम वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं
पर्यावरण को दूषित होने से बचाएं
आइए हम सब मिलकर मनाएं विश्व पर्यावरण दिवस आज।।

वृक्ष की पूजा, होते हैं वृक्षों में सर्वेश्वर का वास,
वृक्ष पर आवास, होते हैं विहंगों पंखेरों के वास।
वृक्ष से औषधी, मिलती हैं फल फूल और पत्ती से,
फिर क्यों करते हैं, कटाई वृक्षों की?।।

आइए हम वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं
पर्यावरण को दूषित होने से बचाएं
आइए हम सब मिलकर मनाएं विश्व पर्यावरण दिवस आज।।

वृक्ष हैं हमारे अमूल्य धरोहर,
वृक्ष के बिना न जीना है संभव,
वृक्ष देती है समृद्धि और खुशहाली,
देती है वृक्ष फल फूल और आहार ।।

आइए हम वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं
पर्यावरण को दूषित होने से बचाएं
आइए हम सब मिलकर मनाएं विश्व पर्यावरण दिवस आज।।

यह रचना स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित है। सर्वाधिकार सुरक्षित है।

इंजीनियर बीके रंजे श राय ' रत्न'
राजौरा, बेगूसराय, बिहार
 प्रकाश मधुबनी, बिहार।
अब नही तो कब 
तुम अपना कर्तव्य निभाओगे।
अपने कर्म के बल पर फिर से
 कब ये धरा सजाओगे।
 
अपने नास्तिक मन मे 
आस्तिक भाव कब जगाओगे।
आखिर कबतक इन बेजुबान को
 मार कर अत्याचार यू सताओगे।

कब तुम अपने निर्दयता को मारकर।
अपने अन्तः मन से अहंकार को निकालकर
कब आखिर कब तुम मानवता दिखाओगे।

चारों ओर मचा हाहाकार ,
चैन से फिर क्यों सोते हो।
कहि महामारी कहि भूकंप आये।
फिर क्यो तुम असहाय बन यू रोते हो।
ये तो बतादो भटके को राह दिखादो।
कब तक अपना किया भगवान पे टालोगे

नदी नाले सुख रहे है 
 बृक्ष के मन भी दुख रहे है। 
ये तो बता दो परमेश्वर को समझा दो 
आँखों पे बंधी पट्टी कब निकालोगे।
नशे में मद में चूर हुए हो 
फिर ये धरा कैसे सम्हालोगे।


ईस्वर ने सब जीवो में 
 तुम्हे जो संज्ञान दिया।
आज वो भी सोचता होगा 
क्यो बेफिजूल का तमका महान दिया।
सारी दुनियां में दहशत फैलाया
इस दहशत से कब तुम इन्हें बचाओगे।


जो किया सो भोग रहे हो। 
सन्तुलन का बीज अब खोज रहे हो।
उजाड़ा है जो दुनिया तुमने
क्या सच में उन्हें लगाओगे।

सोचो जरा ये गौर से 
अपने अतः मन के ठौर से
डींगे  मारते हो बड़े बड़े 
क्या तुम करके दिखाओगे।
बिलख रही है  धरती तुम्हारे कारण 
क्या तुम इन्हें फिरसे हसाओगे।

मेरी मानो ख़ुदको पहचानों
कब तक केवल बात बनाओगे।
जीव जीवस्य जीवनम ही सत्य है
क्या अब भी नही इन्हें बचाओगे।


किससे सीखा है कहाँ लिखा है
जो तुम इन्हें सताते हो।
कहि मारते हो इन जीवों को
व मृत्य शरीर पे सेल्फी खिंचाते हो।
कब तक आखिर कब तक 
मानवता को नोच नोंचकर कर  खाओगे।

उठो करो  इनका सम्मान।
क्योकि इनके जान से ही है हममें  इंजीनियर बीके रंजे श राय ' रत्न'
राजौरा, बेगूसराय, बिहार
६२०३७९०११२
ranjeshkumar904@gmail.com
दिनांक:५ जून, २०२०
विषय: विश्व पर्यावरण दिवस
विद्या: कविता
शीर्षक: वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं

 *वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं* 

आओ वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं,
दूषित होने से पर्यावरण को बचाएं।
करिए संरक्षण पर्यावरण का,
होगी हरियाली पृथ्वी पर्यावरण में।।

आइए हम वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं
पर्यावरण को दूषित होने से बचाएं
आइए हम सब मिलकर मनाएं विश्व पर्यावरण दिवस आज।।

वृक्ष है तो वृष्टि है,
वृक्ष है तो सृष्टि है।
चींटी हो या हाथी,
वृक्ष है सबका साथी।।

आइए हम वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं
पर्यावरण को दूषित होने से बचाएं
आइए हम सब मिलकर मनाएं विश्व पर्यावरण दिवस आज।।

वृक्ष की पूजा, होते हैं वृक्षों में सर्वेश्वर का वास,
वृक्ष पर आवास, होते हैं विहंगों पंखेरों के वास।
वृक्ष से औषधी, मिलती हैं फल फूल और पत्ती से,
फिर क्यों करते हैं, कटाई वृक्षों की?।।

आइए हम वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं
पर्यावरण को दूषित होने से बचाएं
आइए हम सब मिलकर मनाएं विश्व पर्यावरण दिवस आज।।

वृक्ष हैं हमारे अमूल्य धरोहर,
वृक्ष के बिना न जीना है संभव,
वृक्ष देती है समृद्धि और खुशहाली,
देती है वृक्ष फल फूल और आहार ।।

आइए हम वृक्ष लगाएं वृक्ष बचाएं
पर्यावरण को दूषित होने से बचाएं
आइए हम सब मिलकर मनाएं विश्व पर्यावरण दिवस आज।।

यह रचना स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित है। सर्वाधिकार सुरक्षित है।

इंजीनियर बीके रंजे श राय ' रत्न'
राजौरा, बेगूसराय, बिहार
[05/06, 10:59] +91 80844 91137: ##प्रकृति के #हनन पर मेरे लेखन✍️
द्वारा प्रस्तुतिकरण!!
##HINDI__##POETRY!!!!

**आओ वृक्ष को बचा ले**

इस जग का कल्याण कर
प्रकृति पर एक एहसान कर
कांपती अब यह भू_,घरा
बचा ले इसकी वजूद को
उठा ले तू कुदाल को
अपने श्रम का दान कर

क्यों पेड़ों को तुम काट रहे हो
मौत को क्यूं तुम बांट रहे हो
मानव जाति के सीढ़ी को
आने वाले एक पीढ़ी को
उसपर अपना बस एक उपकार कर
अब मिलकर एक हुंकार भर

हर डाल को काटा गया
टुकड़ों में है बांटा गया
कुछ पौधों को रोप लो
मंडराते खतरे को रोक दो 
तुम्हें प्रकृति की हरियाली का वास्ता
चुन लो पौधारोपण का रास्ता
आ मिलकर एक व्यापार कर
अपने श्रम का दान कर

पौधारोपण की नारों से
जंगल के उस किनारों से
विश्व के करोड़ों लोगों की जुबान पर
अपनी उस ऊंची मकान पर
कुछ टहनियों को जोड़ दो
पर्यावरण को एक नई मोड़ दो

प्राणवायु अब जहर बन गई
तेरी ये कैसी नजर बन गई
तू प्रकृति का जंगल डूबा रहा
धरती को क्यूं श्मशान बना रहा
 आज एक प्रयास कर
अपने श्रम का दान कर

क्यूं पर्यावरण को रुला रहे हो?
दर्द उसका बढ़ा रहे हो
अपना एक फर्ज निभाओ ना
पेड़ _पौधे  लगाओ ना
आओ अब वृक्ष को बचा लें
चल आज एक काम कर
अपने  श्रम का दान कर 
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
    ✒️दीपक कुमार "पंकज"
मुजफ्फरपुर (बिहार), हिंदी शिक्षक सह कलमकार✍️!!!!!!
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
[05/06, 11:05] +91 87579 31954: मै रंजन कुमार(मुजफ्फरपुर, बिहार) से
शीर्षक- पर्यावरण
दिनांक-,5-6-2020
जन्म तिथि-15-10-2002
Email I'd- ranjankumar15102@gmail.com
  
 विद्या- कविता

__
 पृथ्वी का आवरण,जो है पर्यावरण
   हो रहा अब इसका हरण
जिससे दूषित हो रहा वातावरण
 जीव जंतु भी मर रहे
   जीने का तो पता नहीं 
लेकिन लोग साठ के उम्र में
       अपनी जान गंवा रहे
हमें पर्यावरण बचाना है
   अपने आप को साफ़, सुथरा और
   स्वच्छ बनाना है।

पृथ्वी का जान छीन रहा
   इसमें न कोई जात धर्म, 
   नहीं देश कोई इकलौता
ये सोचने वाले दूसराें की छोड़
सिर्फ अपना हीं जाल बुन रहा
    पर्यावरण हमारी जान,ये सोच
    अपनी जान बचानी है
दूसरा कुछ भी सोचे,हमको पेड़ लगानी है
और दुनिया को इसके फायदे के बारे में
अच्छी-अच्छी बात बतानी है
  हमें पर्यावरण बचाना है
  पड़ोसियों को साफ़, सुथरा और 
स्वच्छ रहने को बताना है।

जनसंख्या पर नियंत्रण चाहिए
हम दो हमारे दो हमें अपनाना हैं
  जल का दुरुपयोग न कर
   इसको कृषि और अच्छे कार्य में लाना है
मिट्टी के कटाई में रोक लगाकर
   इसकी पकड़ को मजबूत बनाना है
स्वछता के अभियान को हमें
पूरी दुनिया में फैलाना है
  हमें पर्यावरण बचाना है,
देशी- विदेशियों को साफ़ सुथरा और
          स्वच्छ बनाना है

पर्यावरण दूषित के कारण
कई बीमारी उभर रहा
  पहले जैसी पीढ़ियों वाली ताकत
  अब किसी के शरीर में कहाॅऺं रहा
खाद बढ़ रही,जहर बढ़ रहा
बढ़ रहा संसार खाई कि ओर
   जाने अंजाने में सब अपने लिए
रहा गड्ढा खोद
कौन समझाए किसको, सबको
 ईद का चांद नजर आ रहा
जब उत्पन्न होता बीमारी जैसे कोरोना
तब लोगों के मुंह से निकलता आहा
  हमें पर्यावरण बचाना है
अपने आप को साफ़, सुथरा और 
  स्वच्छ बनाना है।

 ये आपदा विपदा नहीं,
  सब भ्रष्ट युग का अपभ्रंश है
पर्यावरण संरक्षण क्या होता
   अब किसको आवत है
एक दिन जरूर दूर भागेगा कोरोना
  जब हम स्वछता को अपनाएंगे
घर में रहेंगे, स्वच्छ रहेंगे
 पेड़ लगाएंगे,मस्त रहेंगे
    हमें पर्यावरण बचाना है
हमें कारोना से खुद बचकर,
 दूसरों को भी बचाना है।

आज पर्यावरण दिवस है 
  सभी लोग कसम खाएंगे
कम-से-कम आज एक
  पेड़ जरूर लगाएंगे
कोरोना के साथ सभी बीमारी को
  इस दुनिया से दूर भागाएंगे
हम पर्यावरण बचाएंगे।
[05/06, 11:06] +91 99228 74972: प्राण वायु इनसे मिलता है , 
जनजीवन इनसे खिलता है ।
इनकी तरुणाई पर ही 
निर्भर है सबकी तरुणाई ।
पेड़- पौधे ना मत काटो भाई ।

मधुर मीठे फल मिलते है , 
और प्यारे फूल सुरभित ।
इनका सारा जीवन ही ,
सृष्टि को होता है अर्पित ।
थके हुए राही को भी , 
यह तो छाया देते है भाई ।

जड़ नही यह भी है चेतन , 
इनमें भी होता है संवेदन ।
ना इनपर कुल्हाड़ी चलाओ , 
ना इनको आरी से कटाओ ।
इनकी रक्षा में ही है , 
हम सबकी है भलाई ।
पेड़ - पौधे ना काटो भाई ।
----- डॉ .जयप्रकाश नागला , 
      नान्देड़ ,  महाराष्ट्र 
सर्वाधिकार सुरक्षित 

पर्यावरण दिवस पर बदलाव की ओर से आयोजित काव्य गोष्टि के लिये कविता सेंड कर रहा हूँ । 
मोबाईल में कुछ गड़बड़ी होने के 
कारण मैं आडियो या वीडियो नही भेज पाऊंगा । प्लीज़ , स्वीकार करें । धन्यवाद 🙏🌹
[05/06, 11:15] +91 79039 10108: वृक्ष है संजीवनी
वृक्ष है संजीवनी हमारी वसुंधरा की हैं शान
धरती को स्वर्ग बनाते, जैसे ईश्वर का वरदान
प्राणवायु देते भरते हर जीव-जन्तु में जान
वृक्षों की शाखाओं पर बसते खग के प्राण
चमन में फूल खिलते महकते घर बगवान
वृक्ष है वसुंधरा के हरीतिमा के आभूषण
धरती को सुख देते दूर करते प्रदूषण
अन्न, औषधि, लकड़ी रबर, गोंद, कागज , 
मशाले, कपास, फल-फूल का देते अक्षय दान
फल, फूल, सब्जी संग देते स्वच्छ हवा प्रदान
विविध सामग्री देना वृक्ष की है पहचान
जीवन में वृक्ष लाते चेहरे पर मुस्कान
स्वयं जहरीले कार्बन डाइऑक्साइड पीते 
शिव की महिमा सदृश्य है अद्भुत एहसान
ऐसी सुन्दर वसुधा पर है  हमें अभिमान
अपनी वसुधा की रक्षा कर सकूँ है ये अरमान
पर आधुनिकता के पथ में है  कई  व्यवधान
करना होगा हमसब को  समस्या का समाधान
क्योंकि वृक्ष है संजीवनी धरा की है आन- बान
ग्लोबल वार्मिंग से बचने का करना है निदान
हर प्राणी पौधे लगाए करे पर्यावरण का कल्याण
वृक्षों के गहनों से सजे धरा जारी है दिव्य अभियान



स्व-रचित :अश्मजा प्रियदर्शिनी पटना बिहार
[05/06, 11:23] +91 99349 63293: ✍🏻🌵✍🏻🎄✍🏻🌿✍🏻🎄✍🏻🌵✍🏻

पर्यावरण दिवस पर मेरी रचना ~

*------ जीना जरूरी हैं तो पर्यावरण बचाना होगा -----*

जीवन मे जीना हैं तो ,
वृक्षारोपण जरूरी हैं ,
वृक्ष नहीं तो मानव जीवन का ,
अस्तित्व मिटना मजबूरी हैं ,

पर्यावरण संरक्षण के लिए ,
सबको जागरुक करना होगा ,
जीवन मे जीना हैं तो ,
आगें मिलकर आना होगा ,

जनसंख्या विस्फोटक स्थितियों से ,
स्वयं को बचाना होगा ,
अगर हम नहीं चेते तो ,
जीवन लेकर जाना होगा ,

पर्यावरण दिवस के अवसर पर ,
हम सभी को कसम खाना होगा ,
वायुमण्डल को बचाना होगा तो ,
हमें पेड़-पौधा लगाना होगा !

~ रुपेश कुमार©️
चैनपुर, सीवान, बिहार

✍🏻🌴✍🏻🌲✍🏻🌳✍🏻🌲✍🏻🌴✍🏻
[05/06, 11:27] गद्वी: जल जहर, जमीं भी जहर हो गई
 यहां धुंआ धुंआ हर लहर हो गई
पेड़ उखाड़ दिए,पहाड़ गाड़ दिए
मेरी बस्ती बस पत्थर पत्थर हो गई
क्षय के दर्द सी दुनिया, मर्ज हर द्वार
बेनूर बच्चे जवानी अस्थि पिंजर हो गई
आग आग दिन, राते भी अंगार जैसी
बेमौसम बारिश, जमीं बंजर हो गई
चिलम सी चिमनियां, फूंके कंपनियां
गाड़ियों की ध्वनियां, घर घर हो गई
राम तेरी हर गंगा अब मेली हो गईं
हर झरण जहर, नदियां गटर हो गईं
एसिड वर्षा आंतक, तूफान की त्रासदी
जीर्ण ओज़ोन कवच, बाढ़ कहर हो गई
गंगा मैली हुई, शराब से हाथ धो रहे है
कायनात, गंगाजल,नहीं सेनेटाइजर हो गई
Kj गढ़वी
तन्त्री/ मालिक: हालर टू डे डेली न्यूज़ पेपर

तन्त्री/मालिक हालार टू डे  डेईली न्यूज़ पेपर
[05/06, 11:31] +91 99228 74972: प्राण वायु इनसे मिलता है , 
जनजीवन इनसे खिलता है ।
इनकी तरुणाई पर ही 
निर्भर है सबकी तरुणाई ।
पेड़- पौधे ना मत काटो भाई ।

मधुर मीठे फल मिलते है , 
और प्यारे फूल सुरभित ।
इनका सारा जीवन ही ,
सृष्टि को होता है अर्पित ।
थके हुए राही को भी , 
यह तो छाया देते है भाई ।

जड़ नही यह भी है चेतन , 
इनमें भी होता है संवेदन ।
ना इनपर कुल्हाड़ी चलाओ , 
ना इनको आरी से कटाओ ।
इनकी रक्षा में ही है , 
हम सबकी है भलाई ।
पेड़ - पौधे ना काटो भाई ।
----- डॉ .जयप्रकाश नागला , 
      नान्देड़ ,  महाराष्ट्र 
सर्वाधिकार सुरक्षित 

पर्यावरण दिवस पर बदलाव की ओर से आयोजित काव्य गोष्टि के लिये कविता सेंड कर रहा हूँ । 
मोबाईल में कुछ गड़बड़ी होने के 
कारण मैं आडियो या वीडियो नही भेज पाऊंगा । प्लीज़ , स्वीकार करें । धन्यवाद 🙏🌹
[05/06, 11:37] +91 98355 50524: ' आओ जिंदगी से बातें करें'
आओ जिंदगी से बातें करें।
नीम की छांव तले, तुलसी के पौधे संग,उकताहट भरी दोपहरी में,आओ जिंदगी से बातें करें।
   उन्मुक्त जीवन के बंधन तोड़,विलासिता से परे हटके, अपनों की तस्वीरों में,आओ जिंदगी से बातें करें।
     संवेदनहीन वेदना संग, कश्मकश की बेबसी में, दरिचों से झांककर,आओ जिंदगी से बातें करें।
   भय से लिपटे जिस्म को,आवास के एकांत में, खयालों को जुंबिश देकर,आओ जिंदगी से बातें करें।
    दूर बैठे अपनों संग, आंखों की नमी पोछकर,एक प्याला चाय संग,आओ जिंदगी से बातें करें।
     उम्मीदों के आंचल में,एक कली स्वर्णिम कल की,बरगद की कामना में,आओ जिंदगी से बातें करें।
     मौन की गूंज में,कलरव के नाद संग, अफरा तफरी के दौर में,आओ जिंदगी से बातें करें।
    कर स्वीकार कर जोड़ अनुरोध,ना खड़ी हो राह में अवरोध,अब विषाणु(कोरोना) को हराकर,आओ जिंदगी से बातें करें। 
       रचनाकार - कस्तूरी सिन्हा,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड।
मोबाइल नंबर -9835550524
         ( कलाकार,साहित्यकार,एंकर,सिंगर)
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर बदलाव मंच को समर्पित है मेरी यह रचना🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
[05/06, 11:45] +91 79031 15001: विश्व पर्यावरण दिवस 
कवि सम्मेलन सह प्रतियोगिता द्वारा:- बदलाव मंच

नाम :-स्वाति सहाय
शहर:- रांची( झारखंड) प्रतिभागी क्रम संख्या:- 11
दिनांक :-5 जून 2020
विषय विश्व पर्यावरण दिवस विद्या:- कविता
शीर्षक:- कोरोना महामारी

महामारी करोना 

बेहद संवेदनशील हो जाती हूं| कोरोना से मरते लोगों की तस्वीर जब सामने  पाती हूं|
 कभी सोचती हूं क्या मंजर है और फिर खुद से तसल्ली भरी बातें कर जाती हूँ|

वक्त नाजुक माहौल गमगीन ,उस पर इंसानियत की तोहीन|

 लोगों को समझाने हर दिन नए योद्धा सामने आते हैं|
अलग-अलग भेष में न जाने कितनी बार समझाते हैं,फिर भी कुछ अपनी मनमर्जी कर ही जाते हैं |

क्या यह फर्ज तुम्हारा नहीं क्या यह फर्ज हमारा नहीं ? की आओ साथ मिलकर लड़े, वक्त की पुकार सुनी नहीं या अपना फर्ज गवारा नहीं?

 चलो करे सम्मान उनका  जिन्होंने किया करोना के खिलाफ युद्ध का आगाज |

लड़ रहे जो हमारी खातिर क्यों न करें उन पर नाज?

 इस मुश्किल भरे दौर में वे लोग ही तो सहारा है, अपनी परवाह छोड़कर जिन्होंने देश को संवारा है| 

इन दिनों कुछ तस्वीर दिल का सुकून चुराती है ,और ना जाने क्यों कभी-कभी किनहीं और आंखों की नमी मेरे आंखों से भी छलक आती है|

 वक्त कभी ऐसे भी बदलता है ,हां किसी ने सच ही कहा है वक्त पर कहां किसी का जोर चलता है|

 युद्ध स्तर की तैयारी है फिर भी समस्या तो भारी है इस जंग में जीत अपनी हो सुनिश्चित करना अब हमारी जिम्मेवारी है|
[05/06, 12:17] +91 8340 794 930: बदलाव मंच
05/06/2020

पृथ्वी की अपनी चाहत है 
 सबका ये संतुलन बनाए
 शीतलता है समाई इसमें
 क्यों तू छेड़े आग लगाए 
मानव ही भोगी लोभी  है 
लालसा पे न नियंत्रण पाएं
 अपने सुख के लिए ऐ पापी 
क्यूं जीवन को ऐसे सताए 
छोड़ दे भाव हिंसा  घृणा का
 सहिष्णुता  हृदय से अपनाए
 भाव रखें करुणा औ प्रेम का
 प्रकृति से जो ले चौगुना लौटाएं
 सद्भावना की राह चले सब 
आओ  आशा दीप जलाएं
 अगला चरण क्या हो अपना 
 क्षमा मांगे प्रकृति से और 
एक एक सब वृक्ष लगाएं 
चंदा करती कर जोड़ प्रार्थना
जीवन भर सेवा का प्रण लें
 पृथ्वी का संतुलन बनाएं।

रजनी शर्मा चंदा,रांची
[05/06, 12:38] +91 97093 83083: 05 June 2020
" प्रकृति "  
--------------   

मैं  तेरी  आँगन  की  दुल्हन 
सहस्त्र  युगो  से   बनी   हुई  । 
तुम   मेरे  दिल   के   स्वामी 
नाता  को  शर्मसार  कर  रहे । 

मेरे   क्षमता  का  सीमा  क्या 
तुम भली- भांति भी जान रहे । 
रह  रह  कर   तुम   घाव  देते 
ठहर   ठहर   मैं    छांव   देती । 

श्रृंगार   जब   मैं    करती   हूँ 
लोलुपता  तेरी  बढ  जाती   है । 
जीर्ण   शीर्ण    कर   देते   हो 
कुपित   हो   मैं   रूठ   जाती । 

उपकार   जब   मैं   करती  हूँ 
अहंकार   तुम्हारे   बढ    जाते । 
मैं     सागर    की    लहरें   हूँ 
तुम      अग्नि    के   गोले    हो । 



रचनाकार  :  विकाश चतुर्वेदी  
रचना स्वरचित एवं मौलिक व सर्वाधिकार सुरक्षित है ।
[05/06, 12:48] +91 86308 48970: *पर्यावरण और परिंदे* 



प्रदूषित पर्यावरण , प्रथ्वी पर परेशान परिंदे।
सूखती  सरिताएं  शब्द सुप्त  संताप परिंदे ।।

सैलानी बनकर पक्षी दूर देश से अब आते ना ।,
भर कर भावों में नित नृत्य दिखाते ना ।,
क्रूर  इन्सान  की नीयत कब बदलेगी जानें। 
काटने में गर्दन बेजुबानों की ये ना माने ,
निर्भय होकर उड़ते ,अब नीचे आते ना प्यास बुझाने।,
इन्सान की तरह अपना कभी ना खोते ईमान परिंदे,

 अलग अलग बोली, अलग श्रंगार होते थे।
चहचाते थे ची चुन अलग धुन ,अलग तार होते थे।
ना था ये उष्मायन, सुर प्रकृति के गुंजार हुआ करते थे।
होती अटखेली नित्य प्रणय निवेदन निशब्द प्यार हुआ करते  थे।
कार्बन सल्फर  ऑक्साइड  के  ना शिकार हुआ करते  थे।

भाव भर भावना में भरसक भ्रांति मान परिंदे।

मिट ती हरियाली,  चहुं ओर  काल विचरता है।
अम्ल  वर्षण में, ओजोन निष्कर्षण में जीवन दम भरता है।
रंगो में रंगी धरती  भरी  थी विविधता  से।
खतरे में पड़ी प्रकृति मानव की विभीषका से।
टूट रहे हैं तार जीवन के मानव रूपी निकृष्ट ता से।
घूट रहे हैं,अब धरती की शान परिंदे।

  बन  ढेर प्रथ्वी प्लास्टिक और पालीथिन का ।
जल कुंभी कहीं कांग्रेस घास,सांस मुश्किल मीन का।
पानी में घुलता विष ,खाना भी  नहीं शुद्ध ।
विकाश के लिए  विनाश करें मानव प्रबुद्ध।
होड़ में शक्ति की प्रथ्वी बन गई आयुध।
गौरैया गायब घरों से ,जो थे घर की जान परिंदे।

मौलिक रचना
एल एस तोमर तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादाबाद यूपी
[05/06, 12:57] +91 88752 13775: प्रकृति पर इंसानों का कब्जा
......................................

नदियों के बहाव को रोक दिया फिर उन पर बाँध बना डाले ,
जगह - जगह बहती धाराएँ अब बन के रह गई हैं गंदे नाले,
जब धाराएँ सुकड़ गई तो उन सब की धरती कब्जा ली,
सीनों पर फ़िर भवन बन गए छोड़ा नहीं कुछ भी खाली
अच्छी वर्षा जब भी होती हैं पानी बाँधो से छोड़ा जाता है,
वो ही तो फ़िर धारा के सीनों पर भवनों में घुस जाता हैं
इसे प्राकृतिक आपदा कहकर सब बाढ़-बाढ़ चिल्लाते हैं ।
मीडिया अफसर नेता मिलकर तब रोटियां खूब पकाते हैं।
मानव धर्म छोड़ दिया , अब राक्षस धर्म अपनाया है ।
काट- काट कर शीश पेड़ के, पैसे बहुत कमाया है ।
जिसने पाला पोषा हमको , और सचा, स्वरूप दिया
 बर्बादी में उसके लगा हुआ है मानव अहंकारी आज का

ओ पी मेरोठा हाड़ौती कवि
छबड़ा जिला बारां (राज०)
Mob: 8875213775
[05/06, 13:13] शिवांगी मिश्रा: *आज की रचना का विषय--: प्रकृति,पर्यावरण और महामारी*


*बचा लिया है रूप प्रकृति का ।*
*आके इस महामारी ने ।।*
*पर्यावरण को घेर लिया था*
*जनसंख्या इस भारी ने ।।*

आज सुखद और स्वच्छ बहुत है
प्रकृति की डाली डाली 
कल - कल कर नदियाँ बहती है 
हो कर के ज्यों  मतवाली
दूर प्रदूषण किया प्रकृति से 
टेके घुटने लाचारी ने ।।

*बचा लिया है रूप प्रकृति का ।*
*आके इस महामारी ने ।।*

जीवन का आधार प्रकृति है 
साँसों को नव नित धार मिले 
मन उपवन पावन होता है 
स्वास्थ्य के अनुपम पुष्प खिलें 
माना संकट बढ़ा दिया है
आके इस महामारी ने पर.....
काम किया ऐसा जैसे हो 
लिया जन्म प्रकृति हित अवतारी ने ।।

*बचा लिया है रूप प्रकृति का ।*
*आके इस महामारी ने ।।*


स्लोगन--: 
*पर्यावरण सुरक्षित है तो मानव तभी सुरक्षित है ।*
*काल रूपी ये बना प्रदूषण नरसंहारी भक्षित है ।।*

स्वरचित.....
शिवांगी मिश्रा
[05/06, 13:30] +91 72549 05905: किसकी प्रशंसा करूं-----??? बतलाव मंच की, रचनाकारों की, रचनाकारों की रचनाधर्मिता की या बेहतरीन संचालक की या सुव्यवस्थित संचालन व्यवस्था की--?
 दिल गदगद हो गया आज के आयोजन में सभी लोगों की समर्पित भावनाओं को देखकर। सचमुच यह आयोजन सफलता की उच्चतम शिखर पर है। सभी सहयोगियों को अनंत शुभकामनाएं और हार्दिक आभार
🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲
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[05/06, 13:50] +91 72549 05905: साहित्य सृजन एक अनंत यात्रा है इस यात्रा पर वर्षों से अनवरत चलता रहा हूं --- सीखता रहा हूं।

 आज *बदलाव मंच* द्वारा पर्यावरण दिवस पर आयोजित कवि सम्मेलन सह प्रतियोगिता हेतु उपस्थित सभी कलमकारों का हार्दिक अभिनंदन, हार्दिक जोहार🙏

           वस्तुतः पर्यावरण दिवस सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी संवेदनाओं से जुड़ा विषय है। इस विशेष अवसर पर मुझे मुख्य अतिथि बनाकर दीपक क्रांति जी ने मेरे विद्यार्थीपन को सुदृढ़ किया है। इस पुनीत अवसर पर पर्यावरण के प्रति सच्ची आस्था रखने वाले योद्धा श्री दीपक क्रांति जी का तहे दिल से शुक्रिया। साथ ही साथ समस्त प्रतिभागियों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयां।
💐💐💐💐💐💐💐💐
 आज बदलाव मंच पर मैं एक विद्यार्थी के रूप में उपस्थित रहूंगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह हमारी साहित्य की यात्रा में एक मील का पत्थर साबित होगा। अंत में पुनः सभी रचनाकारों को अनंत शुभकामनाएं।
🌹🌹🌹🌹🌹

       ----- *शशिकांत "शशि"*
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[05/06, 13:56] +91 88272 71176: कविता की शीर्षक -
*पर्यावरण संरक्षण*

आओ मिलकर करे विचार,
कैसा होगा कल का संसार l

बढ़ती आबादी ने मचाई बर्बादी हैं,
कटे पेड़ उजड़ी हरी भरी वादी हैं l

बिगड़ा संतुलन बढ़ा प्रदूषण,
सूखा बाढ़ विपदाऐं भीषण l

सूखे स्रोत सुखी नदियां निर्झर,
सुखी खेती वर्षा पर निर्भर l

आओ मिलकर पेड़ लगाये हज़ार,
फ़ूलों से महक उठे सारा संसार l

तभी हमारी जीवन की खुशहाली हैं,
जब हमारी पृथ्वी हो जाय हरियाली हैं l

पर्यावरण की आनंद ही होली दिवाली हैं,
खुशियो से झूमने लगे मतवाली है l

पर्यावरण है तो हम है,
प्रदूषण मे चारों तरफ ग़म ही ग़म है l

आओ सब मिलकर प्रण करे,
दिल खोल कर पर्यावरण संरक्षण करे l
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
*खेमराज साहू "राजन" दुर्ग, छत्तीसगढ़*
[05/06, 14:01] +91 70680 92884: *पर्यावरण*

हरा भरा हो अपना उपवन
    नील हरित हम दृश्य बनाएं
शस्य श्यामला धरती अपनी
      आओ पर्यावरण बचाएं

चारो ओर है खूब प्रदूषण
    मानव काट रहा जंगल वन
वायु बह रही बहुत विषैली
     क्षीण हो रहा मानव का तन
समय आ रहा यह कह कर
     हम सब कोई कदम उठाये
आओ पर्यावरण बचाये

मोटर कार का न करे प्रयोग
    पग पग पर चलने पर जोर दे
थैला रखे कपड़े के 
   पालीथीन को छोड़ दे
जग में हम ये बात फैलाये
   हरा भरा हो उपवन अपना
आओ पर्यावरण बचाए

*रचयिता*
श्रेया द्विवेदी
सहायक अध्यापक
कौशाम्बी
[05/06, 14:10] +91 6201 033 450: नाम: सूरज कुमार महतो
कविता का शीर्षक: महामारी (कोरोना के बाद क्या हो सकता है और नहीं हो सकता है)






यह कैसा माहौल है चारों और छाया।
यहां तो हर तरफ है बस मौत का साया।।
ना जाने किस कर्म के फल स्वरुप,
पूरे विश्व में यह महामारी आया ।।
क्या इस महा संकट के सामने इंसान टिक पाएगा ?
या फिर इस महामारी के साथ इंसान का वजूद ही मिट जाएगा।।

बाजारों में कोई शोर नहीं,
शांत पड़े खेलों के मैदान,
और सड़कें भी हो गई है एकदम सुनसान।
क्या सब कुछ ठीक कर पाएंगे हम इंसान ?
या फिर बंद के बंद पड़े रह जाएंगे बाजारों के सारे दुकान ।
और सड़कें भी हो जाएगी एकदम गुमनाम ।।

बंद पड़े हैं सारे मंदिर और मस्जिद ।
मानो एकदम चुप हो गए हैं अल्लाह और भगवान ।
नहीं मनाए जा रहे हैं कोई पर्व और त्योहार ।।
बहुत कष्ट दिया हमने अपनी प्रकृति को,
क्या यह प्रकृति का ही कहर है जो हम सब पर बरसा है ?
या फिर यह हमारे कर्मों का ही है परिणाम,
जिसकी सजा भुगत रहे हैं आज सारे इंसान।

कुदरत भी खेल रहा है या अद्भुत खेल।
अभी तो कम हो रहा है प्रदूषण ।
और शुद्ध हो रहा है वातावरण  ।
क्या इस शुद्ध वातावरण में सुरक्षित हो पाएगी हमारे देश की बेटियां?
जैसे खुले आकाश में आजाद उड़ते परिंदे 
या फिर से इनका जीना मुश्किल करेंगे कुछ इंसानी दरिंदे ।

अभी तो मौत के साए में जी रहे हैं हर पल ।
 क्या यही अंत है इस दुनिया की?
या फिर नए उजाले के साथ आएगा एक नया कल।।

इस घोर कलयुग में हो गई है संकटों की बरसात
क्या इस महामारी के बाद होगी एक नए युग की शुरुआत ?
या फिर वही धर्म और मजहब के नाम पर एक दूसरे से ही लड़ बैठेगा इंसान ।।
[05/06, 14:10] +91 97097 71436: पर्यावरण सांसो का नाम 

जिस तरह तुम आज इस नए जमाने में
 नए टेक्नोलॉजी से प्यार करते हो  
 उसी तरह पर्यावरण से भी प्यार कर लो।

शायद भूल रहे हो इस टेक्नोलॉजी के जमाने में  
पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा  रहे हो ।

आज नए-नए टेक्नोलॉजी का आविष्कार 
हो रहा है और पर्यावरण वहां खत्म हो रहा है ।

जहां जिस तरह जनसंख्या का वृद्धि हो रहा है
 वहीं पर्यावरण का उतना ही नाश हो रहा है ।

सब अपनी सुख - सुविधा को देखने में लगा है
 वहीं पर  पर्यावरण का नाश करता जा रहा है। 

 इसे कोई नहीं देख रहा है थोड़ा इससे भी प्यार
 जता लो इस पर्यावरण से को भी अपना लो ।

जिस तरह खुशियां के लिए आसान सुविधा को
 अपनाते हो उसी तरह इसको भी अपना लो ।

प्रकृति अपनी सुंदर हरियाली की तरह ये 
आपके जिंदगी में भी हरियाली ला देगा  ।

अपने फूलों की खुशबुओं की तरह आपके भी
 जिंदगी में खुशबू ही खुशबू भर देगा। 

 आज हम सब को यह प्रण लेना चाहिए कि 
पर्यावरण की रक्षा करेंगे औरों को भी सलाह देंगे ।

रूपक कुमार
 भागलपुर
🌲🌳🌴🌱🌿☘️🍀🎍🎄🌵🎋🍃🌾🌻
[05/06, 14:20] +91 75499 02005: कवि हेमंत कुमार बेगूसराय बिहार से 
स्थान बदलाव मंच 
विषय पर्यावरण 
शीर्षक  अच्छा था मर जाने में 

यूं तरस तरस कर जीने से 
भू तापस को पीने से 
अच्छा था मर जाने में 
पर जी रही है तू 
किस ख़्वाब को पाने में 

आग कितनी लहक रहा है
 तेरा तन मन झुलस रहा है 
इतनी अग्नि पी जाती है
 किस ख्वाब को पाने में 
अच्छा था मर जाने में
 पर जी रही है तू 
किस ख़्वाब को पाने में

 आदम का तन पिघल रहा है गरल राज विष उगल रहा है
 किंतु ऐसे अटल खड़ी हो 
किस ख्वाब को पाने में 
अच्छा था मर जाने में
 पर जी रही है तू
 किस ख़्वाब को पाने में 

जी धन्यवाद
[05/06, 14:27] +91 89290 26480: प्राकृतिक संरक्षण

प्रकृति का नित होता दोहन,
पल पल होती धरती विरान।

कल-कल बहती निर्मल नदियां,
अब हुई विषेली इनकी धारा।

जन जीवन तब होता प्रभावित,
प्रकृति लेती जब रूप विकराल।

वायु प्रदुषण ने किया देखो,
मानव जीवन पर प्रहार।

निरंतर वृक्षों के कटाव से,
होता अस्त-व्यस्त जीवन आज।

तेज धूप गर्मी विकराल,
अब न मिलती पेड़ो की छांव।

नदी तलाब कुओं का पानी,
हुआ सुखकर आज विरान।

निरंतर बढ़ते तापमान से,
होता ग्लेशियर में पिघलाव।

प्रकृति संरक्षण के लिए आओ 
दे अपना अमूल्य योगदान।

ताकि बचा सके हम,
संपूर्ण प्रकृति को आज।

प्रकाश(मौलिक रचना)
[05/06, 14:37] +91 75971 94287: पर्यावरण दिवस पर समर्पित मेरी रचना 🌹घनाक्षरी🌹
🌹।।प्रकृति।।🌹
छलनी धरा का सीना
मुश्किल सभी का जीना,
       कफस में है मानव,
              अवनी बचाइए।

 आया है विनाश द्वारे 
पग न बहि पखारे,
जीवन का आधार है,
   सांसों को बचाइए।

निशब्द हवा उदास,
सुनो कह रही खास,
ये दंभ को मिटाकर,
     सृष्टि को बचाइए।

साक्षात हुआ प्रलय,
 कैसा है मन अमय,
बिखरी  है संवेदना ,
      चिंतन बचाइए।
  
पूर्ण भूमंडल पर,
हुआ है प्रचंड वार,
   है एकांत उपस्थित ,
           सृजन बचाइए।
       🌹 मधु वैष्णव "मान्या"🌹जोधपुर
[05/06, 14:39] +91 99311 55262: *पर्यावरण दिवस*
आओ मिलकर वृक्ष लगायें ।
हम अपना पर्यावरण बचायें ।
कितने इसके शीतल छाया ,
हरे भरे हैं पत्ते इसके ,
आओ मिलकर  वृक्ष लगायें।
हम अपना पर्यावरण बचाएं।।
 पछियों का रैन बसेरा इनमें  ।
इन्हीं के कारण हम जीवन में ।
फूल फल और हवा सुगन्धित ।
इन्हें देखकर कोयल  गाये ।
आओ मिलकर वृक्ष लगायें।
हम अपना पर्यावरण बचायें ।।
भौरे इनसे रस लेते हैं ।
हम मानव सांसे लेते हैं।
वैध इनसे हैं दवा बनाते ।
जानवर इनसे भोजन पाये।
आओ मिलकर वृक्ष लगायें।
हम अपना पर्यावरण बचायें।।
यदि इनको हम काटेंगे ।
छाया  कहां  से  लाएंगे ।
दर्द  इन्हें  भी  होता  होगा ।
इंसानियत का मिसाल दिखायें ।
आओ मिलकर वृक्ष लगायें।
हम अपना पर्यावरण बचायें ।।
       धन्यवाद

नाम - *मुनीश कुमार वर्मा*
(पत्रकार एवं साहित्यकार)
पोस्ट - जरीडीह बाज़ार
जिला - बोकारो, पिन - 829114
(झारखण्ड)
मो - 7061348061, व्हाट्सएप – 9931155262
ई-मेल- munishverma755@gmail.com
[05/06, 14:54] +91 95329 48851: विकास की व्यथा 
___________________

चहुँ ओर नदियाँ सूखती । 
चहूँ ओर झीलें खो गयीं ॥ 
बिन नीर तड़पती मछलियां हैं पूछती 
विकास की कैसी ये गति हो गयी ॥ 

चहूँ ओर दूषित है हवा । 
चहूँ ओर दूषित है फिजां ॥ 
पर्यावरण पर गिरती बिजलियाँ हैं पूछती 
विकास की कैसी ये गति हो गयी ॥ 

चहुँ ओर घटते बाग है 
चहुँ ओर बरसती आग है 
चहुँ ओर तपती ये  धरा है,  पूंछती 
विकास की कैसी ये गति हों गयी ॥

चहुँ ओर खिसकते हिमशिखर 
चहुँ ओर पिघलते ग्लेशियर 
चहुँ ओर सिसकती  जिंदगियां है , पूछती 
विकास की कैसी ये गति हों गयी ॥ 

         विशाल चतुर्वेदी "उमेश "
                 जबलपुर
[05/06, 15:03] +91 99554 62785: वृक्ष की फरियाद
                     -नारायण पोद्दार
    खूब  काटे, अब  न  काटें, कटने से  बचाइए ;
       चाहे  जैसे  भी  हो,  एक  वृक्ष   लगाइए ।
मैं न रहा,फिर तू न रहेगा,जग सारा मिट जाएगा ;
धरती पर कोहराम मचेगा,आग गगन बरसाएगा।
रूठेंगे  जब  मौसम  सारे  तो  क्या होगा बताइए?
       चाहे  जैसे  भी  हो,  एक  वृक्ष लगाइए !

एक दिन  ऐसा भी आएगा, सांस  नहीं ले पाओगे, 
 व्याधियां  नव    नित  बढ़ेगी,
                            उपचार  कहां  कर पाओगे!
सर्वस  खो  जाएगा  जिस दिन,
                               पछता  तक  ना पाओगे।
आज  जिसे  हंसकर  खोया,
                                    कल  आंसू बहाओगे।
वह  दुर्दिन  आने से  पहले , धरती को  बचाइए ।
      चाहे  जैसे  भी हो,  एक  वृक्ष  लगाइए !

मैंने पूछा -बरखा रानी, इतना क्यों तुम रूठ गई ?
जल आंखों में भर कर बोली- ताकत मेरी टूट गई।
जो लाताथा खींच मुझे,उसका ही सफाया हो रहा;
प्रकृति का उपहार मनुष्य के हाथों जाया हो रहा।
  मेरे वजूद से वजूद आपका, वजूद ना मिटाइए।
      चाहे  जैसे  भी हो , एक  वृक्ष लगाइए !

तन  को जैसे  प्राण  चाहिए, प्राण  को  जलवायु ;
जलवायु को वृक्ष चाहिए , वृक्ष मनुष्य  की आयु ।
मानव अपने हाथों से ही अपनी आयु  काट  रहा ,
लिए हाथ में जाम जहर का प्रदूषण  है बांट रहा । 
    नीलगगन  में  प्रदूषण  का  अब्र न फैलाइए ।
       चाहे  जैसे भी  हो , एक  वृक्ष लगाइए !

-नारायण पोद्दार ,
नारायणपुर, जामताड़ा,
 झारखंड।
[05/06, 15:18] ब्रह्मानंद गर्ग: *पर्यावरण_बचाएँ*

विश्व में ये संदेश फैलाएँ..! 
हो सुरक्षित पर्यावरण संकल्प दोहराएँ..!! 

वैश्विकरण के इस दौर में, 
काटे जा रहे वृक्ष हर छोर में, 
निज स्वार्थ मानव करता हानि, 
प्रत्येक प्राणी को ये बात समझाएँ, 
हो सुरक्षित पर्यावरण संकल्प दोहराएँ.., 
विश्व में ये संदेश फैलाएँ...।

प्राणवायु देते पेड़ जीवन का आधार है, 
ईंधन,औसधी देते प्रकृति का श्रृंगार है, 
वसुधा के हरित आँचल यही, 
रूप धरा का वृक्ष ही सजाएँ,
हो सुरक्षित पर्यावरण संकल्प दोहराएँ..., 
विश्व में ये संदेश फैलाएँ..।।

रखते संतुलन प्रकृति में पेड़ सदा ही, 
होते मेघ आकर्षित आती बरखा तभी, 
मत काटो पेड़ बड़े अनमोल है, 
शुद्ध हवा मिले आओ पेड़ लगाएँ, 
हो सुरक्षित पर्यावरण संकल्प दोहराएँ..,
विश्व में ये संदेश फैलाएँ..।।

फैल रहा प्रदूषण हर ओर धुँआ धुँआ, 
करतूतों से मानव की ओजोन भी क्षीण हुआ, 
घुटने लगी है सांसें जीवन की, 
महत्ता पर्यावरण की सबको समझाएँ, 
हो सुरक्षित पर्यावरण संकल्प दोहराएँ.., 
विश्व में ये संदेश फैलाएँ..।।

कुदरत का कहर बरस रहा संभल पर कहाँ रहे, 
नित रोज आती मुसीबतें असमय ही मर रहे, 
कभी तूफान तो कभी महामारी आती, 
है जो ये इशारा कुदरत का समझ नहीं पाए, 
हो सुरक्षित पर्यावरण संकल्प दोहराएँ.., 
विश्व में ये संदेश फैलाएँ..।।

घट रहे जंगल निरह जीव भटक रहे, 
आतताइयों के हाथों फिर भी कहाँ बच रहे, 
बेज़बान गंवाते जान दया मगर आती नहीं, 
अभी भी समय है 'सुजल' आओ संभल जाएँ,
हो सुरक्षित पर्यावरण संकल्प दोहराएँ.., 
विश्व में ये संदेश फैलाएँ..।।

ब्रह्मानंद गर्ग "सुजल"
जैसलमेर(राज)

*सर्वाधिकार_सुरक्षित©*
[05/06, 15:26] +91 94196 31374: बदलाव मंच को मेरा नमन 🙏🙏🙏

नाम   कल्पना गुप्ता जम्मु से
विषय पर्यावरण
दिनांक 5जून 2020


*पर्यावरण*

कुदरत आजकल भेज रही पैगाम
रख वातावरण को साफ सुथरा
छोड़ दे सब, कर पहले यही काम।

रुक रही तेरी सांस है
टूट रही जीवन के प्रति आस है
मचा हर ओर हाहाकार क्यास है।

यह काला धुआं लाया किसने
वातावरण को ज़हरीला बनाया किसने
जिंदगी लग रही जुआ, रुक रहे श्वास हैं।

आज कानों में आवाज़ सुनाई देती नहीं
लगता है सब गूंगे बहरे हो गए यहीं
डीजे हार्न और मशीनों ने कर दिया सत्यानास है।

हिमालय से भी ऊंची चोटियां
प्लास्टिक और गंदगी से बन गई
विषैले कीटाणुओं से हवा भी ज़हरीली हो गई
ताजी हवाओं से हरी भरी जगह ना दिखती आसपास है।
मनुष्य ने कुछ भी ना छोड़ा 
नदियों नालों में डाल के गंद
जीव जंतुओं के जीवन में डाला रोड़ा
प्रदूषित जल से नहीं उगती अब घास है।

मनुष्य हो रहा कितना मजबूर
पीने का पानी लेने जाता दूर-दूर
गंदे पानी में ही ढूंढता जीवन
और बुझाता प्यास है।

चिकित्सालय हैं भरे पड़े
कहीं चमकी, कहीं डेंगू और कहीं कोरोना से लोग मरे
सांसें हुई भारी, आंखों से कम दिखे
कौन कितना बीमार ना इसका एहसास है।

अरे बेचारो देश के प्यारो, जीना है अगर तुम्हें
पर्यावरण बचाओ, प्लास्टिक की उठाओ अर्थी
उसे जड़ से भगाओ, वृक्ष लगाओ
पानी बचाओ, पानी मे ना रसायनिक तत्व मिलाओ
धुंए को करो दूर, ना खुद को करो मजबूर
शुद्ध अगर वातावरण होगा
चेहरे पर मुस्कान, आंखों में सपने
धरती पर स्वर्ग का एहसास होगा।

कल्पना गुप्ता/ रतन
[05/06, 15:28] +91 70706 54034: उठो नव खून के वीरों 
                 तुम्हे अब जाग जाना है 
         तुम्हे गंगा ने पुकारा है 
              तुम्हे जमुना ने ललकारा है 
         हिमालय से भी यही  
                     संदेशा      आया   है    
        तुम्हे अब जाग जाना है 
                    तुम्हे अब जाग जाना है   
        वतन अपना बचाना  है 
                     प्रकृति कॊ बचाना   है 
 

      पर्यावरण बचाना     है 
                     तुम्हे घर घर मे जाकर 
       सोतो कॊ   जागना   है     
                    हर व्यक्ति एक एक  पौधा 
       घर घर मे लगवाना  है   
                     तुम्हे अब जाग जाना है 
      पर्यावरण  बचाना    है 
                       कही तुम बरगद लगवाओ 
     कही पीपल उपज वाओ   
                         घर घर नीम लगवाओ 
       प्रदूषण कॊ  भगवाओ 
                           पर्यावरण कॊ बचाओ
      गुलजार भारत बनाओ ॥ 

                         फलों के बाग लगवाओ 
     कही गुलशन तुम सजवाओ 
                          नए उपवन बनाओ तुम 
     कही मधुबन सजाओ  तुम 
                            पर्यावरण कॊ बचाना है 
     नया गुलशन बनाना   है ॥ 

    ऋषि मुनियों ने ललकार है 
                          माँ गंगा ने पुकार है 
     मोदी ने भी     हुंकारा है 
      ..                  पर्यावरण कॊ बचाना है ॥ 

     ये संभव हो नही सकता 
                जब तक युवा ना जागेगा 
    असंभव कुछ भी नही यारो 
    ...             युवा जब जाग जाता है 
    पर्यावरण कॊ बचाना है 
                   स्वच्छ भारत बनाना है ॥ 

     संस्कृति कॊ बचाना है 
                नए नए पौधे लगाना है 
     नया भारत बनाना है 
                  हमे अब जाग जाना है 
      पर्यावरण बचाना है 
                   प्रदूषण कॊ भगाना है ॥ 

     निर्दोष ने ये ही गाया है 
                   मोदी ने भी समझाया है 
      भारत माता ने दोहराया है 
                     हमे अब जाग जाना है 
     पर्यावरण बचाना है 
                        पर्यावरण बचाना  है   ॥ 

            निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद
[05/06, 15:29] +91 70078 21513: बदलाव 
===========(
दिनांक  5-6-2020
दिवस  शुक्रवार 
विषय   विश्व पर्यावरण दिवस 
शीर्षक   प्रकति   
विधा   कविता 

मैं हूँ तुम्हारी स्वजन, कर लो मेरा संरक्षण 
मैं प्रकति तुम्हारी हूँ 
हमधरती के अंकुर आज तुम्हारे बीच खड़े 
धूप में कैसे चलोगे, ज़ब पाँव तुम्हारे जले 
मैं धरती का श्रंगार 
मैं प्रकति पुम्हारी हूँ 

पर्यावरण गर  शुद्ध, हृदय में बची मैं सांस हूँ 
मुझसे मिलता ज्ञान तुम्हें, मैं वर्षा का हथियार हूँ 
कर लो मेरा अभिनन्दन बंदन 
मैं प्रकति तुम्हारी हूँ 
मुझसे तुम्हारी औषधि बनती, होते ज़ब तुम बीमार 
त्राहि त्राहि जग में होंगी, बिन मेरे होगा हाहाकार 
मुझसे मिलती तुमको शक्ति अपार
मैं प्रकति तुम्हारी हूँ 
हिमखंडो के पिघलन की परिणिति 
ऊष्मा कम करने को वृक्ष सृजित 
मुझसे सकारात्मक ऊर्जा मिलती 
सारे ग्रहों की शांति मुझे से ही होती 
मुझे  से मिलती तुमको शक्ति अपार 
मैं प्रकति तुम्हारी हूँ 
बुद्धि विपर्यय विनाश काले 
सिद्ध कर रहा मानव 
जितना मुझसे लिया 
उतना कर्ज उतारो तुम 
दान करो पौधों  का भण्डार 
मैं प्रकति तुम्हारी हूँ 
 
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
अध्यापिका 
बेसिक विभाग 
जनपद  हरदोई 
उ. प्र.
[05/06, 15:34] +91 82105 25557: हिन्दी कविता- चलो प्राण प्यारी |
चलो प्राण प्यारी धरती दोनों छोर घूमा दूँ |
रखते जो शीतल धरती दोनों धुर्व दिखा दूँ |
मानव से बड़ा वैज्ञानिक ईश्वर सारा जहां बनाया |
जिंदा रहे हम तुम सारे पर्यावरण संतुलन बनाया |
चलो प्राण प्यारी बिगड़ा धरती शोर सुना दूँ |
बर्फ पिघल उत्तरी दक्षिणी धुर्व सागर मे आती |
बनके वास्प रूपधर बादल जगत बरस जाती | 
चलो प्राण प्यारी सागर लहरों झूला झूला दूँ |
बरसे बादल बृक्ष सभी उनको बहुत रिझाते |
बरसे कैसे मेघा बृक्ष कही नजर नहीं आते |
चलो प्राण प्यारी निर्झर झरनो अब नहला दूँ |
पर्वत पहाड़ो झर झर झरने नदिया बहती थी |
देख घटाए मोर थिरकते चिड़िया चहकती थी |
चलो प्राण प्यारी सुरीली कोयल राग सुना दूँ |
सूखे ताल नदी नाले कुआ पानी रसातल गया |
प्यासे कंठ सभी त्राहिमाम पानी धरातल हुआ |
चलो प्राण प्यारी ओस बुंदों प्यास बुझा दूँ |
कल कारखानो कचड़ा नदी नाले जहर मिलाने लगे |
गंदा काला बदबूदार पानी गाँव शहर पिलाने लगे |
चलो प्राण प्यारी शुद्ध नारियल पानी पीला दूँ |
तुम सुंदर धरती अंबर सुंदर तेरा प्यार कम नहीं|
फूल भवरे तितलियाँ एक दूजे तेरे बिन हम नहीं |
चलो प्राण प्यारी जल ही जीवन सबको समझा दूँ |

श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,
मोब /वाहत्सप्प्स -995550928
[05/06, 16:20] +91 87267 89364: नमन मंच 🙏🌹🙏
विषय - पर्यावरण
विधा - छंद मुक्त

धरती मां जो पहने ओढ़े
उसे आवरण कहते हैं।
            इन्हीं आवरण से सजी धरा को
                 पर्यावरण कहते हैं।।

खो न जाए ये आवरण
अब तो संभल जा मानव।
           गौरैया जैसे चली गई
           कोयल भी जाने वाली है।।
गंगा भी तो मैली हो रही
यमुना भी तो काली है।
      रख लो रख लो ध्यान इन्हींका।
      सब जीवन देने वाली है।।

वो दिन हमसे दूर नहीं
मानव हम मजबूर सही।
           बिजली पानी के तुम साथ
            सांसो का बिल भरना आज।।

एक बात ये गांठ बांध लो।
शजर लगालो शजर बचालो।
         अपना भी कुछ फर्ज निभालो
         अपनी धरा को खूब सजा लो।।

स्वरचित।.                    अर्चना झा
अप्रकाशित।.                जयपुर
[05/06, 16:43] +91 91620 71196: महामारी पर अपनी कविता
...................................
हम जीत के लिए अग्रसर है
...................................
सम्पूर्ण विश्व मे कोरोना का कहर है
बीमारी से विश्व मे मुश्किल सा डगर है
अभी ना जाने  कितना लम्बा सफ़र है

कोरोना का ये कैसा सफ़र है
हम जीत के लिए अग्रसर है

ये कैसा दौर जिंदगी में आया है
चारों औऱ  संक्रमण का ही साया है
पूरी दुनिया घर मे ही समाया है
ये ना जाने किसका जहर है

कोरोना का ये कैसा सफ़र है
हम जीत के लिए अग्रसर है

दुनिया भी इस चुनौती से लड़ रही
कंही पर मौत भी मौत का शहर ढूंढ़ रही
अख़बारों में बस इसकी ही ख़बर है

कोरोना का ये कैसा सफ़र है
हम जीत के लिए अग्रसर है

भले अब कोई कुछ कहता नहीं
भारत भी इससे अब अछूता नहीं
हमारी दूरियां ही इसको हराएगी
भले ही मुश्किल सा ये डगर है

कोरोना का ये कैसा सफ़र है
हम जीत के लिए अग्रसर है

सौरभ सिन्हा।
जिला:- दुमका
राज्य :- झारखण्ड
[05/06, 17:04] +91 98513 10119: माँ शारदे को नमन 🙏🏻
सम्मानीय बदलाव मंच सादर नमन 🙏🏻

पर्यावरण 

मत काटो मुझे पेड़ करे पुकार। 
मुझ से ही वसुंधरा में है बहार। 
अगर पेड़ काट कर ले जाओगे। 
तो धूप में छाया कहाँ से पाओगे। 
जीवन को रेगिस्तान बना दोगे। 
हरियाली को तुम तरस जाओगे।
आसमान में धुँआ होगा घनघोर। 
कितना प्रदूषण होगा चारों ओर। 
बिन पेड़ों के भूखे नंगे भटकोगे। 
अपनी करनी का फल भोगेगे।
हम अगर अभी भी नहीं चेतेंगे।
अपना जीवन तबाह कर लेंगे।
पेड़ लगाओ जीवन बचाओ। 
हरियाली से खुशहाली पाओ।
वृक्ष वर्षा का अनूठा है सम्बंध। 
 लगाओ वृक्ष बचाना है जीवन। 
प्रकृति का अद्भुत है यह खेल। 
पेड़ों से वर्षा का है देखो मेल।
प्रकृति दे रही हमे यह संदेश। 
पेड़ों से जीवन बनेगा विशेष। 
पर्यावरण स्वच्छ रखना होगा। 
हमे प्रकृति से प्रेम करना होगा। 
नई पीढ़ी का भविष्य है सुधारना। 
वृक्षारोपण अभियान है चलाना। 
हर खुशी के मौके पर पेड़ लगाएंगे। 
उपहार स्वरुप पेड़ ही लेकर जायेगे। 
वृक्षों से देश सशक्त और सुंदरता। 
बीमारियों का नाश पेड़ों से होता। 
वृक्ष है ओषधि और अमूल्य धन। 
पर्यावरण संरक्षण सुखी जनजीवन। 


कलावती करवा "षोडश कला"
कूचबिहार
पश्चिम बंगाल
[05/06, 17:14] +91 82716 59903: क़लम धनी शब्दशिल्पियों से सुसज्जित 'बदलाव मंच'के पटल पर पेश करता हूं अपनी एक कविता :-

*कैसी विपदा आन पड़ी है*
*मुश्किल में मुस्कान पड़ी है*

*छीन गई है रोज़ी-रोटी सबकी*
*आफत में अब तो जान पड़ी है*

*अवसाद में जीवन डूब गया है*
*घर  - गृहस्थी  वीरान पड़ी है*

*भटक रहे सड़कों पर निर्धन*
*अखबारों में झूठी'शान'पड़ी है*

*कौन सगा है, कौन यहां अपना*  
*समय के दर पे पहचान पड़ी है*

*इलाही भेज दे खैरात ज़रा सी*
*भूखी बिटिया बेजान पड़ी है*

*कैसी विपदा आन पड़ी है*
*मुश्किल में मुस्कान पड़ी है*◆

   *-मुमताज़* *हसन*
[05/06, 17:33] +91 94612 87867: डाः नेहा इलाहाबादी दिल्ली
     ९८९११०५४६६
 विधा  गीत ग़ज़ल मुक्तक हाइकु और बहुत कुछ 
        आज का विषय 
        (  महामारी  )

ख़ौफ़के मारेआँसू पलपलबहते है।
मौत के साए में देखो हमरहते हैं।।

 छूट रहे  हैं  रिश्ते  सारे  धीरे धीरे ,
मौत के वाहक बनेहै सारे धीरे धीरे,
पास आने पर लोग यहाँ अब डरतेहैं ।। 
                  मौत के साए में देखो हम रहते हैं।। 

कोरोना का देखो कैसा कहर है जारी, 
जैसे  शहरों  पर  होती  है बम बारी, 
अपनो की आँखों से आँसू छलके  हैं।। 
                  मौत के साए में देखो हम रहते हैं।। 

क्या  जाने  कल  किस  की बारी आएगा, ,
 चीख किसी की अब तो सुनी न जाएगी, 
इन आँखों में स्वप्न नहीं अब पलते हैं।। 
                      मौत के साए में देखो हम रहते हैं।। 

खु़दा यहाँ पर जो भी खुद को कहते थे, 
मद में  चकनाचूर यहाँ  पर  रहते  थे ,
घुटनों के बल आज यहाँ पर चलते हैं।। 
                       मौत के साए में देखो हम रहते हैं।। 

डाः नेहा इलाहाबादी
[05/06, 17:43] +91 93320 29419: पर्यावरण

 आओ हम सब पेड़ लगाएं ,
बसंती निर्माण में ।
हरा-भरा प्रकृति को बनाए ,
सुंदर फूलों से सजाएं ।पतझड़ बहुत हो चुका अब
तक ,
अरे !विश्व उधानों में । प्लास्टिक का प्रयोग करके ,
कर दिया नष्ट धरा उपवन में । हां, जहरीली हवा प्लास्टिक की ,
बेशक बहुत मगरूर है ।हरी-भरी उपवन को ,झुलसा ने को क्रूर है ।
हरियाले उपवन पर उसने ,
मनमाना विषवमन किया ।तालाबों और झरनों से उसने,
मीठे रस को सुखा दिया ।लेकिन अब रसधार बसंती ,
मचल रही युगप्राणों में ।आओ हम सब पेड़ लगाए ,
बासंती निर्माण में ।

सीता देवी राठी
कूचबिहार
पश्चिम बंगाल
[05/06, 17:45] दीपक क्रांति: प्रदूषण का कैक्टस 


मरुस्थल बनती ये धरती 
अश्रुपूर्ण नेत्रों से कहती ।

चारों दिशाओं में 
प्रदूषण के कैक्टस।
मंडराते रोष के बादल 
बरसाते घोर असंतोष।।

धुआँ आतंक का साम्राज्य
कर रही  विलाप धरा आज।।

मानव में संवेदना शून्य ,
हर रिश्ते का हुआ है खून ।
वृक्षहीन होती प्रकृति 
बनती जा रही जर्जर परती।।

भाव शून्य होती मनुष्यता
अधोगामी अपनाती बर्बरता ।।

ओजोन में बढ़ता छेद,
दिलों में बढ़ता मतभेद ।
मन प्रदूषित ,भाव प्रदूषित ,
मानवीय हर विचार कलुषित।

सूख चुकी करुणा प्रेम की फुहार।
आत्मीय भावनाओं की मीठी बौछार।।

सूख गए आम, 
फल -फूल एवं अंजीर ।
नदियों में बढ़ने 
लगा तेजाबी नीर ।।

हिंसा अन्याय कर रही तांडव।
क्यों बने हम द्रुत क्रीड़ा पांडव ?

सृष्टि कर रही चीत्कार।
फैला कोहराम हाहाकार।।
आकाश धरती सब हुए विषाक्त।
हर हृदय संदिग्ध विषाद।

क्या नहीं कटेंगा कँटीले, प्रदूषण का कैक्टस ?
नहीं मिटेगा मानवीय ,मूल्यों का ह्रास?

प्रकृति रूपी द्रौपदी की 
आह सुनाई नहीं देती 
लुटती सभ्यता की करुण 
पीड़ा दहला नहीं जाती।। 

चेतना के कृष्ण क्यों सुप्त है आज? 
कर्म प्रवर्तक क्यों विवश लाचार?


नहीं आएगी हरियाली 
प्रकृति के बहारों में।
आत्मीयता की गंगा इन 
पिपासु मानव कंठो में।।

अंशु प्रिया अग्रवाल 
मस्कट ओमान
स्वरचित मौलिक अधिकार सुरक्षित
[05/06, 17:51] +91 94612 87867: सर्वप्रथम माँ शारदे को वंदन करते हुए 'बदलाव मंच' के सभी पदाधिकारियों व महानुभावों को प्रणाम  कर, मैं रूपा व्यास,'परमाणु नगरी'रावतभाटा, राजस्थान की धरती से,अपनी स्वरचित कविता आप सभी के अवलोकनार्थ प्रस्तुत करना चाहती हूँ, जिसका शीर्षक है-
                   'पर्यावरण'

पर्यावरण को बचाना है,
पर्यावरण को बचाना है,
ये सब हमने ठाना है।।

वृक्षों को मत काटो तुम,
वृक्षों को मत काटो तुम,
वरना ये प्रकृति हो जाएगी सुन्न।।

प्राचीन समय से पेडों की पूजा की जाती,
प्राचीन समय से पेडों की पूजा की जाती,
'एक वृक्ष दस पुत्र समान '
यह  शिक्षा धर्म ग्रंथों  से आती।।

धरती माँ पुकारें बार-बार,
धरती माँ पुकारे बार-बार,
प्रकृति की रक्षा करो तुम हर बार।।

कभी भूकंप तो कभी महामारी,
कभी भूकंप तो कभी महामारी,
हम सब अपने अपने पर्यावरण के आभारी।।

मत करो तुम जानवरों जैसा व्यवहार,
मत करो तुम जानवरों जैसा व्यवहार,
ऐसे ही मृत न हो जाए हाथी बार-बार।

शुद्ध पर्यावरण अगर तुम्हें चाहिए,
शुद्ध पर्यावरण अगर तुम्हें चाहिए,
तो प्रदूषण कम हो,ये  भी तो सोचना चाहिए।

कहीं तुम हरियाली नष्ट किए जा रहे,
कहीं तुम हरियाली नष्ट किए जा रहे,
आबादी के कारण मकान पे मकान खड़े किए जा रहे।।

हे!मानव अब तो संभल जा,
हे!मानव अब तो संभल जा,
पर्यावरण संरक्षण कर बच जा।।
पर्यावरण संरक्षण कर बच जा।।
              
नाम-रूपा व्यास,
,'परमाणु नगरी' रावतभाटा,जिला-चित्तौड़गढ़ (राजस्थान),पिनकोड-323307

                  
                   -धन्यवाद-
[05/06, 18:02] +91 89290 26480: पर्यावरण

हमारे चारों तरफ है एक सुरक्षा जो आवरण,
इसी का नाम है पर्यावरण,
इसी का नाम है पर्यावरण|

नितान्त आवश्यक है,
जिसका सन् रक्षण,
वो है पर्यावरण,वो है पर्यावरण|

श्वसन प्रक्रिया से लेकर,
खाने-पीने तक,
जो करता है हमारा भरण पोषण
उसका नाम है पर्यावरण,
उसका नाम है पर्यावरण|

पर्यावरण यदि सन्ररक्षित है,
तो हर जीव सुरक्षित है,
जहाँ हुआ इसका हनन,
सन्कट में आ जाएगा,
हर किसी का जीवन|

विवेकशील हे मानव तुम,
इस बहुमूल्य उपहार को सम्भाल लो,
तेरे जीवन का मूल है ये,
इस बात को तुम जान लो|

पर्यावरण को हानी पहुँचा,
तुम बहुत अधिक पछताओगे,
सुख से जीना तो दूर रहा,
शुद्ध वायु में सांस भी ना ले पाओगे|

आओ मिल कर ले, ये प्रण हम सब,
हर दिन पर्यावरण दिवस मनाएगे,
वसुंधरा को शोभित बनाएगे,
पर्यावरण को बचाएगे|

भावना शर्मा
दिल्ली
मौलिक|
[05/06, 18:06] +91 78957 33950: बदलाव मंच के तत्वावधान में आयोजित पर्यावरण प्रतियोगिता हेतु स्वरचित कविता
शीर्षक  -:  चलो बचाएँ अपना देश

चलो बचाएं अपना देश , 
आओ बचाएं अपना देश ।
संस्कृति, प्रकृति औऱ परिवेस ,
चलो बचाएं अपना देश ।।

चिड़ियों को फिर से चहकाएँ ,
फूलों को फिर से महाकाएँ ।
करें हम अपने कर्म विशेष ,
चलो बचाएं अपना देश ।।

ठीक समय पर नही रुके तो ,
दरिया झीलें गर सूखे तो ।
नहीं बचेगा कुछ भी शेष ,
चलो बचाएं अपना देश ।।

पेड़ों को हम क्यों फिर काटें ,
क्यों धरती टुकड़ों में बांटे ।
क्यों फैलाएं आपस में द्वेष ,
चलो बचाएं अपना देश ।।

संरक्षित हो भूमि हमारी ,(मृदा अपरदन)
वायु में ना हो गर्मी भारी ( global warming)
ना हो गैसों का प्रवेश (जहरीली गैसें)
चलो बचाएं अपना देश ।।

प्रकृति को है हमने पूजा ,
की देवों से इसकी तुलना ।
ज्यों ब्रह्मा विष्णु औऱ महेश ,
चलो बचाएं अपना  देश ।।

विष्णु चारग ,  छात्र जीवन
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश
9368433301
[05/06, 19:01] +91 72549 05905: कैसे भूलूंगा मैं ,आज का दिन और आज का पल। 
चंद पलों में महसूस हुआ यूं, जैसे बागों में संदल।।
मिलन हुआ है इस मंच पर, कवियों से बारी-बारी। 
महक उठा है काव्य-बगीचा महक उठी क्यारी क्यारी।।
दीपक की लौ का जलना भी याद रहेगा ।
काव्य ज्योति में संग संग ढलना, याद रहेगा ।।
यह बदलाव है क्रांति की, साहित्य जगत यूं चमकेगा 
काव्य - गंध से ,अपना कविता आंगन महकेगा।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

बदलाव मंच के समस्त समूह को, अनंत शुभकामनाओं सहित---       

       *शशिकांत शशि*
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲
[05/06, 19:16] +91 98280 33519: ✨आप सब हीरे की काबिलियत रखते हो अँधेरे में चमका करो…रौशनी में तो कांच भी चमका करते है.....✨
भाग लेने वाले सभी रचनाकारों को प्रदेश व राष्ट्रीय तुल्य प्रतियोगिता में भाग लेने व बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए हार्दिक-हार्दिक शुभकामनाएं संचालक, संयोजक, प्रस्तुतकर्ता व भागीदार सभी आत्मीय सराहना के योग्य💝 अतुलनीय रहा आज का यह संयोग सभी को कोटि कोटि शुभाशीष व शुभकामनाएं💐✨🙏🏼✨

नन्दिता रवि चौहान 🌹💐🌷
[05/06, 22:39] Ekta Poet Banka Bihar: "विश्व पर्यावरण दिवस" की हार्दिक शुभकामनाएं 
.............................. 
हम सब को केवल एक - एक पेड़ लगाना है, 
पर्यावरण को स्वच्छ और निर्मल बनाना है।
तब ही हो पाएगा इस वसुंधरा का उत्थान,
मांसाहार छोड़ कर शाकाहार अपनाना है।

इसलिए,  आइए... आइए..।
विश्व पर्यावरण दिवस पर केवल एक  पेड़ लगाईए... 
आइए... 

आइए करेंगे हम जब प्रकृति से मित्रवत व्यवहार, 
तब ही दे पाएंगे आगत पीढ़ी को अनुपम उपहार। 
नहीं उपजेगा कोई रोग यहां,न कोई व्यवधान, 
देश के खातिर इतना तो कर लें हम उपकार। 

इसलिए,आइए...आइए... 
विश्व पर्यावरण दिवस पर केवल एक  पेड़ लगाईए, 
आइए... 

प्रदूषण के तपन से अब थर्रा उठा है आसमाँ।
दर्द के कारण  कंप - कंपाने लगी है धरती माँ। 
सूखा - बाढ़, तूफान - महामारी ये चेतावनी कुहराम है। 
वक्त के रहते  सुधर जाएं हम, वरना घातक होगा अंजाम। 

इसलिए, आइए...आइए... 
विश्व पर्यावरण दिवस पर एक  पेड़ लगाइए, 
आइए... 

वक़्त अब आ गया है अपना फर्ज निभांए। 
प्रकृति से नहीं करें मजाक, ऐसी कसम खांए। 
फल-फूल, छांव,देकर हमें बहुत मालामाल किए हैं, 
अब हमारी बारी है प्रदूषण मुक्त वसुंधरा बनांए। 

इसलिए, आइए... आइए... 
विश्व पर्यावरण दिवस पर एक पेड़ लगाइए, 
सुरम्य प्रकृति से आत्मीयता बढ़ाईए। 
आइए.... ।
           ** एकता कुमारी * *

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