बदलाव मंच मुक्तक

जिंदगी का यारो ये ही  तो एक सत्य है 
      राम नाम सत्य है श्री राम नाम सत्य है 
      सबको पता है सबकी यारो ये ही गत है 
       राम नाम सत्य है श्री राम नाम सत्य है 

       बाँस की अर्थी   पे तूझको   बाँधा जाएगा 
      मरघट की और तेरा अंतिम कारवां जाएगा 
      एक कफन पर ही होगा तेरा    अधिकार है 
      वो भी उतारा जाएगा ये   भी यारो सत्य है 
      राम नाम सत्य है    श्री राम नाम सत्य   है 

     जिनसे तेरा कभी नही सुख दुःख मे भी वास्ता 
     आज उनके ही कंधो पर कट रहा तेरा   रास्ता 
     आँख मूंदी तो तेरा  कोई शत्रु है ना  मित्र     है 
     राम नाम सत्य है श्री राम नाम      सत्य    है 

    मरघट मे बना चबूतरा जिसपर तुझे लिटाया गया 
    तूझको तेरी आखरी  मंजिल तक   पहुंचाया गया 
    धूं धूं कर जली उठी चिता    ये ही आखरी गत है 
    राम नाम सत्य   है    श्री राम नाम   सत्य     है ॥

   हमने तो लिख डाली "लक्ष्य"आज क्या है जिंदगी 
   मर्जी अब तो तुम्हारी यारो केसे गुजारो   जिंदगी 
   लेकिन फिर भी याद रखना जीवन  यही सत्य है 
    राम नाम सत्य है   श्री राम नाम      सत्य     है ॥ 
 

                          निर्दोष लक्ष्य जैन  धनबाद
 आदरणीय दीपक क्रांति जी मैं क्षमां चाहूँगा की कल मैं उपस्थित नहीं हो पाया इसके पीछे अपरिहार्य कारण थे जिसको नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता था।जिसके लिये मैं क्षमां प्रार्थी हूँ मैं इस तथ्य  को भलीभांति जनता हूँ की किसी सूचीबधकार्यक्रम निर्धारित कार्यक्रम में अनुपस्थिति बेहद अजीब स्तिति होती है शायद कल
ऐसा ही हुआ है मैं बेहद अफ़सोस के साथ आपकी मानसिक भावो का आदर करते हुये क्षमां प्रार्थी हूँ।और विनम्रता पूर्वक अनुरोध्
करता हूँ की मै पुरे विश्वास से इस प्रकार की भाविष्य में न हो दृढ़ प्रतिज्ञ रहूंगा।                  

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
[27/06, 11:06] Ranjan: जहां हमको पहचान बढ़िया मिली 
 लोगों में लोग यहां श्रेष्ठ है
 मंच नहीं घर है यह
 जहां हर सदस्य को इज्जत दिया जाता
संचालक है जिसका दीपक
 क्रांति
जहां हर कवि खुद में महान सा है
यहां डफली की तरह हर कवि बजते डम डम
यह बदलाव मंच उर्फ बम बम ही है

रंजन कुमार,मुजफ्फरपुर बिहार
 जहाँ से तुम चले जाओ ,शहर वो छोड़ देते हैं ।
सजे घर के गुलाबों को ,पल में तोड़ देते हैं ।।
दिखे ना दूर तक रस्ता ,मिले ना घर कहीँ तेरा ।
तो यादों के किनारों से ,हकीकत जोड़ देते हैं ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश )
Ranjan: मन ही तो है जो
 मन में मन मार कर बैठा रहता है 
मन पर ऐसा प्रतिबंध लगा कि मन मन के रास्ते जाए

रंजन कुमार, मुजफ्फरपुर बिहार

दीपक है आशाओं का अंदाज़
सूरज चाँद का ।
वर्तमान में हर लम्हे का
है अभिमान।।
बिरसा मुंडा ,दसरथ मांझी
आज युवा प्रेरणा के गौरव
मान।।
दीपक की ज्योति ,ज्वाला 
युग के अंधेरो का उजाला
अपनी हर लौ से जग को 
नव चेतना की जागृति का
मतवाला ।।                        

दीपक कर्म क्रांति
का शंखनाद ,युग गूँज अनुगूंज
भविष्य दिनकर के
सौर्य, प्रभाकर से सम्मानित दुनिया।।

मुझे गर्व है मैं भी सम्मानित हूँ
प्रकाश ,पराक्रम के दीपक
की  उजियारे में ।                   

मेरी भी दुनियां
में पहचान बनी है युग काल के धारा और धरातल मेरे नाम की
पहचान बानी।।

बदलाव साहित्यिक संगम (बम)साहित्यिक सांस्कारिक सामाजिक क्रांति के जयघोष को मंच को नमन  एवम् 
समस्त टीम कपिल गुप्ता जी, अमित राज जी एवम् ससक्त  नेतृत्व दीपक क्रांति जी का कोटिशः आभार साधुबाद।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
हम तो करते  सुबह शाम 
            सबकॊ राम राम राम ।
       सबकों अपना  ये पेगाम  
          भज लो .राम राम राम । 
       सबकी बिगड़ी बनाए राम 
            जप लो राम राम राम ॥ 
       हम तो लिखते सुबह शाम 
           यारों  राम राम राम  ॥ 
       सीता राम राम राजा राम राम ! 
            सबकों राम राम राम ॥ 
       सबकों नही थी फुर्सत 
           दिन रात   काम ही काम 
       भूल गए थे  हम सब 
            भगवान राम का नाम ।
         टी बी में रामायण आई 
              याद आगए फिर राम !॥ 
        जप लो राम राम राम 
        भज लो राम राम राम    ॥ 
        
      संकट में अब दुनियाँ भाई 
              याद आए बस राम  ॥ 
         भज लो राम राम  राम 
             जप लो राम राम राम ॥ 
        दुनियाँ के सब रिश्ते झूठे 
                 झूठा तेरा   नाम 
       सच्चा है तो एक ही भाई 
                 बस राम का ही नाम ॥ 
         जप लो राम राम राम  ॥ 

       हम तो करते सुबह शाम 
...... ..  मोबाइल से ये काम 
.  ........सबकों राम राम राम ॥ 

                           निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद


ब्रह्मानंद गर्ग: आँखों में पानी आया जाने क्यों।
फिर वो याद आया  जाने  क्यों।

कोई तङप सी है निगाह में, 
दिल में दर्द आया जाने क्यों।

 खामोश राहों में कोई नहीं,
तन्हाईयों में सिमटा वजूद जाने क्यों।

कोई कसूर तो नहीं बताया,
फिर रास्ता बदला उसने जाने क्यों।

कभी हाथ पकङ के चला था सूजल,
आज उसने भुलाया जाने क्यों।

सुजल

कृष्णा सेन्दल तेजस्वी: *आज का मुक्तक*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*इस जहां की भागम भाग में रिश्ता टूट न जाए।*


*हाथ पकड़ कर रख  कहीं साथ छूट न जाए।।*


*मोहब्बत की बातें  दिल्लगी करते रहो उससे।*


*वरना  तुम्हारा  प्रिय साजन कहीं रूठ न जाए।।*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*कृष्णा सेन्दल "तेजस्वी"*
    *राजगढ़ (धार)मप्र*
  *(८४३५४४०२२३)*
मुक्तक
दिनांक: 27/06/2020
दिन: शनिवार

व्यायाम के रूप अनेक, चाहे शरीर हो या मन।
देख शरीर के जोड़-तोड़,खुश होते देख काया।।
मोह में इसके फंसे नर-नारी, हर होता भ्रम-माया।
छोड़ के जाना इस संसार को,सारा तज इस जग।।
 
डा0 उमेश सिंह
बैंगलोर, कर्नाटक
umeshsinghkavi@gmail.com
मुक्तक सृजन 
विषय - अदावत (शत्रुता )
तिथि - 27जून 2020
वार - शनिवार 
मात्राभार  - 22

चलो  फिर  से  करलो  मुहब्बत  की  बातें ।
भुला  दो   वो  सारी   अदावत   की  बातें ।
करम कुछ करो जिससे लौट आए बचपन -
थी  कितनी  हँसी वो  शरारत  की  बातें ।

प्रतिभा स्मृति 
दरभंगा (बिहार )
 मुक्तक - बाल मन 

1
जो दुनिया सिखाती है वो मे सीखता हूं
जो दुनिया दिखाती है वो मे देखता हूं
सही गलत का फ़र्क मुझे नहीं मालूम
जो दुनिया सिखाती है वो मे करता हूं

2
हर एक बात मुझे सही लगती है
हर एक बात मुझे नई लगती है
जो मुझे समझ नहीं आता वो मे पूछता हूं
हर एक बात मुझे अधूरी लगती है

        - मेहुल दाहोदी

 अन्शु प्रिया अग्रवाल: व्यक्तित्व में स्वयं के अपने आत्मबल जगाएँ,
खुद को समिधा बनाकर आहुति बन जाएँ!
स्वार्थ ,क्षुद्रता बिसराकर धर्म धारण करें हम-
कदम अपने राष्ट्र हित के लिए बढ़ाएँ ।।

****************

अंशु प्रिया अग्रवाल 
मस्कट ओमान
स्वरचित एवं मौलिक 
****************
बेटी     मुक्तक             

   माँ की धड़कन पिता की जान होती है बेटी 
    वेदना   नही       वरदान    होती है  बेटी 
    रोशन  करेगा   बेटा एक   ही कुल    कॊ 
    दो दो  कुल   की     शान    होती है  बेटी .॥ 

          कहते है लोग बेटी है पराई 
       माँ बाप के रग रग में है समाई 
        फिर में केसे मान लूँ बेटी है पराई 
          बेटी तो है माँ बाप की है परछाई    ॥ 

   दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती का अवतार है बेटी 
    जीवन का करती   उद्धार   है        बेटी 
     आस्था और सम्मान   होती है     बेटी 
    भार नहीँ  जीवन   का सार होती  है.बेटी ॥ 

        पल पल  साथ   होती है          बेटी 
         सुख हो या दुःख साथ होती है बेटी 
          कभी राधा कभी सीता होती है बेटी 
.        हो यदि दर्द  हमें तो रोती     है  बेटी ॥ 

     हमारा मान सम्मान अभिमान है बेटी 
     आँगन की    फुलवारी   है        बेटी 
      जीवन की   खुशहाली   है        बेटी 
       निर्दोष का लक्ष्य और जान है   बेटी ॥ 

      ईश्वर का वरदान है बेटी 
        ईश्वर की ही देन है बेटी 
       ईश्वर का आँचल है बेटी 
        जीवन भर सुख देती बेटी ॥ 

                  निर्दोष लक्ष्य जैन 
                 ... धनबाद
[27/06, 16:01] +91 99365 05493: सम्मानित संपादक महोदय
               बाल का धारा संकलन
                     सादर नमन
रचना का शीर्षक-
              स्वच्छ हमारा है उद्देश्य
        ---------------------------------
सबसे प्यारा मेरा देश
सबको देता हूं संदेश
सर पै टोपी रंग बिरंगी
अधरों पर है मीठी बोली
मैं सच कह रही हूं
स्वच्छ हमारा है उद्देश्य
सबसे प्यारा मेरा देश

सांसो में तूफान रखता
वाणी पर मैं संयम रखता
सब धर्मों का पालन करता
नहीं किसी से रखता द्वेष
सबसे प्यारा मेरा देश

मां का करता पूरा मान
वतन पर है जां कुर्बान
दुश्मन थर-थर कांपते हैं
जब धारण करता अग्निवेश
सबसे प्यारा मेरा देश

जब जब मैंने ललकारा
दुश्मन पीठ दिखा भागा
हम तम का करते हैं ग्रास
रचते हैं हम नव इतिहास
सबसे प्यारा मेरा देश

हर बार उजाड़ा उसने
हर बार बताया हमने
हमने कभी न मानी हार
मेरा श्रम पर है विश्वास
सबसे प्यारा मेरा देश

------------------------------
मैं घोषणा करता हूं कि यह कविता मौलिक स्वरचित है
भास्कर सिंह माणिक
       (ओज कवि एवं समीक्षक)
कोंच,जनपद -जालौन, उत्तर- प्रदेश -285205
मोबाइल नंबर-9936505493
[27/06, 16:02] +91 88752 13775: बेटी क्या है
---------------------------
ईश्वर की उपहार है बेटी
सुबह की पहली किरण है बेटी
नए नए रिश्ते बनाती है बेटी
जिस घर जाए उजाला लाती है बेटी

घर की चहल- पहल है बेटी
जीवन में खिला कमल है बेटी
कभी धूप गुनगुनी सुहानी
कभी चंदा शीतल है बेटी

एक मीठी सी मुस्कान है बेटी
यह सच है कि मेहमान है बेटी
उस घर की पहचान बनने चली
जिस घर से अनजान है बेटी

पापा की जान है बेटी
घर की लक्ष्मी है बेटी
दादा - दादी की लाडली है बेटी
परिवार की शान है बेटी 

देवालय में बजते शंख की ध्वनि है बेटी
देवताओं के हवन - यज्ञ की अग्नि है बेटी
खुश नसीब है वह जिनके आंगन में है बेटी
जग में तमाम खुशियों की जननी है बेटी

स्वरचित लेख ,,,,,🙏🙏🙏🙏


ओ पी मेरोठा हाड़ौती कवि
बारां राजस्थान 
मोब :- 8875213775
[27/06, 16:10] डॉ सत्यम भास्कर भरमरपुरिया: यार तेरा आना

महफिल होती है जवाँँ,
यार तेरे इक आने से,
शाकी को भी शिकायत है तुझसे,
बस तेरे इक मुस्कुराने से,

गजब का जादू है,
गले तेरे लग जाने मे,
ऐसा कोई नशा नहीं जमाने मे,
जो महक है तेरे याराने मे,
फिका है हर जाम कोई,
जाकर देखा हर मयखाने मे,

चर्चे हैं हर तरफ नाम के तेरे,
कारवां गुजर गया आजमाने मे,
मुकर्रर था तेरा मिलन,
इस नाचीज़ को अपना बनाने मे,
इल्म है इतना की.
कायम रहे ये ताजगी सदा,
नशा न उतरे ता उम्र कभी,
यारों के आशियाने मे,
यूं तो गिले भी हैं, शिकवे भी,
पर वो तासीर नहीं पैमाने मे,

बस इतना इल्म रहे,
बरकरार रहे ऐ यार तेरी यारी,
सत्यम की दुआ है या रब,
आवे न किसी गैरत के बहकावे मे।

डॉ सत्यम भास्कर भ्रमरपुरिया ✍
 डायरेक्टर आयुस्पाईन हास्पिटल दिल्ली.
[27/06, 16:23] +91 95602 05841: यदि तुम जानते ही नही
 मुझे तो नराजगी कैसी।

यदि तुम अपना मानते
 ही नही तो अदायगी कैसी।

 देखकर भी नजर घुमा लेते हो
 तो मुझे इतना बता दो तुम।

फिर तुम्हारे जिंदगी में 
मेरी मौजूदगी कैसी।

प्रकाश कुमार
मधुबनी बिहार
[27/06, 16:28] नेहा जैन: कहते हैं मानव जन्म मुश्किल से मिलता है
तो क्यों फिर यह इतना सस्ता है
आत्म हत्या हल नही मुश्किल का
क्यो कोई और विकल्प तू नही चुनता है
नेहा जैन
[27/06, 16:29] डॉ सत्यम भास्कर भरमरपुरिया: मौकापरस्ती का आलम ये है कि, 
वो खुद को बड़े चालाक समझते हैं, 
हमारी ही गली से गुजरने से परहेज़ करते हैं, 
हमें शिकवा नहीं है जमाने से, 
वो खुद से ज्यादा हमारी ही खबर रखते हैं। 😃😃
भ्रमरपुरिया ✍
[27/06, 16:32] +91 98355 51769: मुक्तक 

 *वतन* 
14
सारा चमन हमारा है
 सारा गगन हमारा है
 सारे माला के मोती 
 हिंदुस्तान हमारा है

16 
 साथ-साथ सब मिलजुल आएँ
 आओ झूमें नाचें गाएंँ
 लाल खून हम सबका भाई
  सारे  चलो एक हो जाएंँ

 आज हमारा कल भी अपना
 देखे मन अच्छा सा सपना 
खुशियाँ हरदम आँगन आए
 *वतन* का नाम हरदम जपना
स्वरचित
*मीनू मीना सिन्हा*
राँची
[27/06, 16:35] +91 98986 93535: होंठो कीं खाँमोशिया तुम नहीं समजो गें
आँखो क़े अश्कों बारिशे तुम नहीं समजो गें
क़भी क़भी समजलेते हों हर ग़ैर ज़रूरी बातें
जज़्बातों कॅ माइने तुम नहीं समजो गें

अगर तस्सवुर में भी रख दे साँसे हथेलियों पर
साथ रहक़र भी हमारी कहानी नहीं तुम समजो गें 
जर्रे जर्रे में ईश्क़ खुश्बू बन कर
कब मासूम फूलों ने दी कुर्बानी तुम नहीं समजो गें  

-Nik
[27/06, 16:36] +91 70706 54034: मंदिर मंदिर क्या करता तू 
                    मन कॊ मंदिर बना ले  रे 
     प्रभु कहते है मन मंदिर बना 
                      उसमे मुझ कॊ बेठा ले रे 
     मंदिर मंदिर क्या करता तू 
                        मन कॊ मंदिर बना ले रे ॥ 
   क्रोध मोह माया अहम छोड़ 
                          सद राह अपना ले  तू 
   मंदिर मंदिर क्या करता तू 
                             मन कॊ मंदिर बना ले रे । 
   दीन दुखी की पीड़ा हर ले 
                               उनके कष्ट मिटा दे  तू 
   मंदिर मंदिर क्या करता तू 
                              मन कॊ मंदिर बना ले तू । 
   सत्य अहिंसा दया धर्म पर 
                                जीवन अर्पण कर दे तू 
   मूक निर्ह असहाय प्राणी का 
                              दुःख दर्द समझ ले   तू 
  मंदिर मंदिर क्या करता तू 
                            मन कॊ मंदिर बना ले  तू । 
  बूढ़े बुजुर्गों की सेवा कर 
                       सदा   उनका मान रखना तू 
  आचार्य मुनि श्री के चरणों मे 
                       सदा अपना शीश झुकाना तू 
   उनकी दैनिक चर्या देख 
                          समता भाव अपनाना    तू 
    मंदिर मंदिर क्या करता  " लक्ष्य" 
                            मन कॊ मंदिर बना ले   तू ॥ 

                 निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद 
          ...........
[27/06, 16:52] +91 73520 42440: मुक्तक.                                      वजूद है गर जिन्दा तो जीना सीखो।                                    करते  हो बन्दगी तो सर झुकाना सीखो ।।                                 कोई दिखावा ताम,झाम होते हैं बे असर।।।                                   मानेगे वो जरूर सलीके से मनाना सीखो।।।।                                 

किसी गरीब को मुक्द्दर का हाल मत कहना।                              किसी के माल को अपना माल मत कहना।।                              मिली है दौलत तो दौलत का एहतराम करो।।।                        कहर खुदा का जो आये तो चाल मत कहना।।।। 

मो ताहिर अंसारी शौकत 
जामतारा झारखणड
[27/06, 16:55] +91 94196 31374: **बात**

बात करने आए ना आए
 हम बात करते हैं
दूसरों के घर की बातें
दिन रात करते हैं
झरोखों मैं घुसा कर कान
दूसरों के राज़ सुनते हैं
अपनी बात छुपाने का ना जाने
 क्या-क्या अंदाज रखते हैं
आज हम दूसरों के घर की इज्जत
 से खेलते हैं
हर गली चौराहे में वही
राग बघारतें हैं
लेकिन यह दुनिया तो
इंसानों की है यारों
हम जो बोते हैं वही
फसल उतारते हैं
दूसरों की बेटियों की बातें दिल
खोल के करते हैं
जब वही मुसीबत आ जाए घर में
टूटी हुई नैया की तरह
डोलते  हैं
हम क्यों नहीं समझते हैं
यह जो जिंदगी में हमारी
घटता है
कुछ और नहीं अपने ही कर्मों का
फल मिलता है
चार पैसे क्या आ गए घर में
कोई बड़ा नहीं बनता
किस तरह का किरदार निभाता है वह
जमाना सालों तक नहीं भूलता
 कठिन परिस्थितियों में तो अपने भी
दूर हो जाते हैं
गैर तो क्या सब मिलकर बर्बादी का
जश्न मनाते हैं
 किसी का गिरेबान देखने की अगर होती
हममें में ताकत
इस हमाम में है सब एक जैसे
दुनिया को बता देते
बस इतनी सी बात याद रखो यारों
अगर आज डूबे हैं, कल तुम्हारी बारी
है प्यारो
इतिहास गवाह है भगवान भी ना बच पाए
हम तो अदने से इंसान हैं यारों।

कल्पना गुप्ता /रत्न
[27/06, 16:57] +91 88752 13775: 🙏🙏🙏

हमसे वह आंख मिला कर चली  गयी
जीवन का प्रेम बनाकर चली गयी
हर पल निहारता रहूं मैं बस उसी को
जादू ऐसा मेरे पर करके चली गयी


ओ पी मेरोठा हाड़ौती कवि
  बारां राजस्थान 
मो.- 8875213775
[27/06, 17:01] +91 95602 05841: औरो से बात कर लिया करो 
मैंने क्या मना किया है।

जिसे चाहे साथ ले लिया करो
मैंने क्या मना किया है।

होगी तुमको महफ़िल में रहने 
की चाहत तो रह लिया करो
मैने क्या मना किया है।

तुम आओ जाओ मुझे कोई फर्क
 नही पड़ता जख्म दिया कुरेद भी दो 
मैंने क्या मना किया है।

प्रकाश कुमार 
मधुबनी, बिहार
[27/06, 17:51] +91 95721 05032: 🌾   मुक्तक🌾
             **************
निज स्वार्थ में बल क्या  होगा ?
एकता बिना अटल क्या होगा  ?
प्रेम  श्रध्दा  विश्वास   बिना  -
कविबाबूराम विमल क्या होगा ?
*************************
बाबूराम सिंह कवि
[27/06, 18:23] +91 95721 05032: 🌾   मुक्तक🌾
             **************
निज स्वार्थ में बल क्या  होगा ?
एकता बिना अटल क्या होगा  ?
प्रेम  श्रध्दा  विश्वास   बिना  -
कविबाबूराम विमल क्या होगा ?
*************************
बाबूराम सिंह कवि
[27/06, 18:27] +91 95721 05032: 🌾   मुक्तक🌾
             **************
निज स्वार्थ में बल क्या  होगा ?
एकता बिना अटल क्या होगा  ?
प्रेम  श्रध्दा  विश्वास   बिना  -
कविबाबूराम विमल क्या होगा ?
*************************
सत्य में झूठ गरल क्या  होगा  ?
छल कपटों का फल क्या होगा ?
प्यार ,एकता मिठ वाणी  बिन -
शान्ति सुख अचल क्य होगा  ?
*************************
बाबूराम सिंह कवि
[27/06, 18:46] डॉ सत्यम भास्कर भरमरपुरिया: तुम ओठों से कलम न दबाया करो, 
हमारी गजलें बिगड़ जाया करती है, 
यूँ सरेआम निगाहें न उठाया करो, 
मेरे कविताओं को शिकायत हो जाया करती है.
भ्रमरपुरिया✍
[27/06, 18:51] +91 94347 58093: बदलाव मंच
मुक्तक प्रतियोगिता
दिनाँक-२७-६-२०२०
शीर्षक-"प्रेम दीवानी राधा"
पूर्णिमा की मधुर चाँदनी रात सुहानी
श्रीकृष्ण संग बैठी श्रीराधा प्रेमदिवानी
अपलक निहारें दोनों एक दूसरे को
आज प्रेम की लिखेंगे फिर नई कहानी

दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता
रचना मेरी अपनी मौलिक रचना है।
दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता
[27/06, 18:51] +91 99770 45540: ( १ )
चीन को सबक सिखाना होगा
मुल्क की ताकत दिखाना होगा
क्या रखा है इन समझौतों पर
एक बार तो मजा चखाना होगा।

                ( २ )
" बदलाव" मंच कुछ तो खास है
        सबके दिलों के आसपास  है
यूं ही लोग ऐसे तारीफ नहीं करते
         यहां सबके सब झक्कास हैं।
 
             - एस के नीरज
               ( हास्य - व्यंग कवि)
[27/06, 18:51] +91 91778 12373: बदलाव मंच
इंजीनियर बी. के. रंजे श राय "रत्न"
दिनांक:27 जून,2020

 *मुक्तक* 

इम्तिहानो का यह कैसा जोश है
कि अब एहसास भी खामोश है
कहीं गलतियां हुई होगी मदहोश  में
परिस्थिति इम्तहान लेने लगी जोश में,
जीवन के एहसास भी अब खामोश में।

आओ होश में रंजेश,
कभी इम्तिहान को न आने दो जोश में,
स्व स्थिति में स्थित हो पास करो इम्तिहान में,
तुम न आओ कभी आगोश में,
हो जाएगी जीवन का एहसास जोश में,
फिर पाओगे इम्तिहान को खामोश में।

इंजीनियर बीके रंजेश राय रत्न
[27/06, 19:03] रूपा व्यास्व: नमन 'बदलाव मंच'🙏
विधा-मुक्तक सृजन
दिनांक-27-06-2020
वार-शनिवार
मुक्तक-

*एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है हमें ।*
*कठिन कठिनाइयों से भले ही लड़ना है  हमें ।*
*यूं लड़ाकू कह के मुझको तुम  बदनाम न करो,*
*योद्धा बन के ही जीवन में आगे बढ़ना है हमें ।।*

नाम-रूपा व्यास  
पता-'परमाणु नगरी'रावतभाटा, जिला-चित्तौड़गढ़(राजस्थान)
*मौलिक व स्वरचित*
           -धन्यवाद-
[27/06, 19:06] +91 95721 05032: 🌾मुक्तक 🌾
*************************
नजर जादुई चित चतुर नरम भाव 
नोक -झोक नखरा मिलाये हो मालिक। 
नवों रस अंग -अंग सु-ढंग से पीरो के, 
सुघर रुप अइसन सजाये हो मालिक। 
नत होइ करके हरदम करना नमन 
निति -नियम में निमन बताये हो मालिक। 
सार दुनिया का भर नाम नारी देइ, 
अति अनमोल जग को बनाये हो, मालिक। 
*************************
बाबूराम सिंह कवि
[27/06, 19:11] Kamlesh Kumar Gupta: एक हीं पंक्ति में कहा गया चमत्कारिक या उद्देश्यपूर्ण  वाक्य ।
पद्य में एक दुसरे से तारतम्यता अनिवार्य ना होते हुये भी सार्थक संदेश का बोध ही मुक्तक है।
[27/06, 19:13] Kamlesh Kumar Gupta: ब्रह्मानंद गर्ग:
 मुक्तक में 4 चरण ही होते हैं। 
सम मात्रिक। 
पहला, दूसरा और चौथा चरण सम तुकांत।
 "मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षम: सताम्"
 एक हीं पंक्ति में कहा गया चमत्कारिक या उद्देश्यपूर्ण  वाक्य ।
पद्य में एक दुसरे से तारतम्यता अनिवार्य ना होते हुये भी सार्थक संदेश का बोध ही मुक्तक है।

कमलेश कुमार गुप्ता
[27/06, 19:14] +91 99365 05493: मुक्तक-
मन को विमल बनाओ आकाश तो करो
पुर्णेन्द्र भी खिलेगा विश्वास तो करो
गंगा स्वमेव आ जाएगी फिर से काट पात्र में
श्रद्धा भक्ति लगन को रैदास तो करो
------------------------------
तुम आस्था के दीप जलाओ तो जानूं
दिली कालिख को मिटाओ तो जानूं
अपनों की चाहत तो सब किया करते
आप गैरों को अपना बनाओ तो जांनू
---------------------------------
मैं घोषणा करता हूं कि यह दोनों मुक्तक मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक ओज (कवि एवं समीक्षक)
कोंच,जनपद -जालौन,उत्तर -प्रदेश-285205
मोबाइल नंबर-9936505493
[27/06, 19:20] +91 78692 18525: मुक्तक......
ज़ह् न से हम कवि हैं हम निराली
आन रखते हैं//
बड़ों के वास्ते दिल में बहुत सम्मान रखते हैं//
वतन के दुश्मनों की जान लेना भी
हमें आता,
कलम के हम सिपाही दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं//

बृंदावन राय सरल सागर मप्र
मोब..७८६९२१८५२५
[27/06, 19:23] +91 98355 51769: मुक्तक 

   शीर्षक *कशिश*
14 
  दिलों में बसने की कशिश
   अम्बर छूने की ख्वाहिश
    ऐ खुदा ,अब सुन लो जरा 
    है यही तुझ से गुजारिश 

12
   हो न किसी से रंजिश 
   हो न कोई भी खलिश
   ऐ खुदा सुन लो जरा 
   नेमतों की कर बारिश 

14
    रहें न मेरे दिन गर्दिश
    कामयाब हो हर कोशिश
    ऐ  खुदा,अब सुन लो जरा
     रहूंँ मैं रौशन चतुर्दिश 

14
    हों चौपट सारे साजिश 
    यही मेरी एक नालिश
     ऐ खुदा,अब सुन लो जरा 
      करूँ नाम हरदम जुंबिश

      ©® स्वरचित
    *मीनू मीना सिन्हा*
       राँची
[27/06, 19:24] डॉ सत्यम भास्कर भरमरपुरिया: मु. मुखड़ा
क्. क्रमशः
त. त्वरित
क. काव्य
भ्रमरपुरिया✍
[27/06, 19:34] +91 78692 18525: बदलाव मंच...मुक्तक
दि२७/६/२०२०
पराये दर्द को सीने में पालकर देखो//
तुम अपनी आँख से आंसू निकाल
कर देखो//
मिलेगा पुण्य तुम्हें सारे तीरथों का सरल,
किसी का गिरता हुआ घर सँभाल कर देखो//
  बृंदावन राय सरल सागर मप्र
मोब..७८६९२१८५२५
[27/06, 19:36] दीपक क्रांति: ‘मुक्तक‘
‘अग्निपुराण’ में मुक्तक को परिभाषित करते हुए कहा गया किः
”मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षमः सताम्”
अर्थात चमत्कार की क्षमता रखने वाले एक ही श्लोक को मुक्तक कहते हैं.
महापात्र विश्वनाथ (१३ वीं सदी) के अनुसार ’छन्दोंबद्धमयं पद्यं तें मुक्तेन मुक्तकं’  अर्थात जब एक पद अन्य पदों से मुक्त हो तब उसे मुक्तक कहते हैं. मुक्तक का शब्दार्थ ही है ’अन्यैः मुक्तमं इति मुक्तकं’ अर्थात जो अन्य श्लोकों या अंशों से मुक्त या स्वतंत्र हो उसे मुक्तक कहते हैं. अन्य छन्दों, पदों ये प्रसंगों के परस्पर निरपेक्ष होने के साथ-साथ जिस काव्यांश को पढने से पाठक के अंतःकरण में रस-सलिला प्रवाहित हो वही मुक्तक है- ’मुक्त्मन्यें नालिंगितम.... पूर्वापरनिरपेक्षाणि हि येन रसचर्वणा क्रियते तदैव मुक्तकं’
’मुक्तक’ वह स्वच्छंद रचना है जिसके रस का उद्रेक करने के लिए अनुबंध की आवश्यकता नहीं। वास्तव में मुक्तक काव्य का महत्त्वपूर्ण रूप है, जिसमें काव्यकार प्रत्येक छंद में ऐसे स्वतंत्र भावों की सृष्टि करता है, जो अपने आप में पूर्ण होते हैं। मुक्तक काव्य या कविता का वह प्रकार है जिसमें प्रबन्धकीयता न हो। इसमें एक छन्द में कथित बात का दूसरे छन्द में कही गयी बात से कोई सम्बन्ध या तारतम्य होना आवश्यक नहीं है। कबीर एवं रहीम के दोहे; मीराबाई के पद्य आदि सब मुक्तक रचनाएं हैं। हिन्दी के रीतिकाल में अधिकांश मुक्तक काव्यों की रचना हुई। इस परिभषा के अनुसार प्रबंध काव्यों से इतर प्रायः सभी रचनाएँ “मुक्तक“ के अंतर्गत आ जाती है !

 

आधुनिक युग में हिन्दी के आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसारः -‘मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है ।
लोक प्रचलित मुक्तक-लोकप्रचलित मुक्तक का संबंध उर्दू साहित्य से है । गजला के मतला के साथ मतलासानी चिपका हुआ हो तो इसे मुक्तक कहते हैं । मुक्तक एक सामान मात्राभार और समान लय (या समान बहर) वाले चार पदों की रचना है जिसका पहला , दूसरा और चौथा पद तुकान्त तथा तीसरा पद अतुकान्त होता है और जिसकी अभिव्यक्ति का केंद्र अंतिम दो पंक्तियों में होता है !
समग्रतः मुक्तक के लक्षण निम्न प्रकार हैं -
१. इसमें चार पद होते हैं
२. चारों पदों के मात्राभार और लय (या बहर) समान होते हैं
३. पहला , दूसरा और चौथा पद में रदिफ काफिया अर्थात समतुकान्तता होता हैं जबकि तीसरा पद अनिवार्य रूप से अतुकान्त होता है ।
४. कथ्य कुछ इस प्रकार होता है कि उसका केंद्र विन्दु अंतिम दो पंक्तियों में रहता है , जिनके पूर्ण होते ही पाठक/श्रोता ’वाह’ करने पर बाध्य हो जाता है !
५. मुक्तक की कहन कुछ-कुछ  ग़ज़ल के शेर जैसी होती है , इसे वक्रोक्ति , व्यंग्य या अंदाज़-ए-बयाँ के रूप में देख सकते हैं !
जैसे-
आज अवसर है दृग मिला लेंगे. 212 222 1222
प्यार को अपने आजमा लेंगे. 212 222 1222
कोरा कुरता है आज अपना भी
कोरी चूनर पे रंग डालेंगे.
-श्री चन्द्रसेन ’विराट’
किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है  1222 1222 1222 1222
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है   1222 1222 1222 1222
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है    1222 1222 1222 1222
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है      1222 1222 1222 1222
-कुमार विश्वास      मुफाईलुन

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है, 1222 1222 1222 1222
मगर धरती की बेचैनी को, बस बादल समझता है  1222 1222 1222 1222
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ तू मुझसे दूर कैसी है   1222 1222 1222 1222
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है.’ 1222 1222 1222 1222
-कुमार विश्वास
भाव थे जो शक्ति-साधन के लिए, 2122 2122 212 फाइलातुन फाइलुन
लुट गये किस आंदोलन के लिए ?
यह सलामी दोस्तों को है, मगर
मुट्ठियाँ तनती हैं दुश्मन के लिए !
-षमषेर बहादुर सिंह
रदीफ
रदीफ़ अरबी शब्द है इसकी उत्पत्ति “रद्” धातु से मानी गयी हैद्य रदीफ का शाब्दिक अर्थ है ’“पीछे चलाने वाला’” या ’“पीछे बैठा हुआ’” या ’दूल्हे के साथ घोड़े पर पीछे बैठा छोटा लड़का’ (बल्हा)। ग़ज़ल के सन्दर्भ में रदीफ़ उस शब्द या शब्द समूह को कहते हैं जो मतला (पहला शेर) के मिसरा ए उला (पहली पंक्ति) और मिसरा ए सानी (दूसरी पंक्ति) दोनों के अंत में आता है और हू-ब-हू एक ही होता है यह अन्य शेर के मिसरा-ए-सानी (द्वितीय पंक्ति) के सबसे अंत में हू-ब-हू आता है ।
उदाहरण -
हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
- (दुष्यंत कुमार)
 मुक्तक के प्रथम, द्वितीय एवं चतुर्थ पंक्ति के अंत के षब्द या षब्दांष एक ही होना चाहिये । अर्थात इन तीनों पंक्ति में रदिफ एक समान हो किन्तु तीसरी पंक्ति रदिफ मुक्त हो ।
जैसे-
आँसुओं का समंदर सुखाया गया ,
अन्त में बूँद भर ही बचाया गया ,
बूँद वह गुनगुनाने लगी ताल पर -
तो उसे गीत में ला छुपाया गया !
................. ओम नीरव.

काफिया
अरबी शब्द है जिसकी उत्पत्ति “कफु” धातु से मानी जाती है । काफिया का शाब्दिक अर्थ है ’जाने के लिए तैयार’ ।  ग़ज़ल के सन्दर्भ में काफिया वह शब्द है जो समतुकांतता के साथ हर शेर में बदलता रहता है यह ग़ज़ल के हर शेर में रदीफ के ठीक पहले स्थित होता है  जबकि मुक्तक पहले, दूसरे एवं चौथे पंक्ति में ।
उदाहरण -
         हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
         इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
         मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
         हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए दृ (दुष्यंत कुमार)

आँसुओं का समंदर सुखाया गया ,
अन्त में बूँद भर ही बचाया गया ,
बूँद वह गुनगुनाने लगी ताल पर -
तो उसे गीत में ला छुपाया गया !
................. ओम नीरव.
रदीफ से परिचय हो जाने के बाद हमें पता है कि प्रस्तुत अशआर में चाहिए हर्फ़-ए-रदीफ है इस ग़ज़ल में “पिघलनी”, “निकलनी”, “जलनी” शब्द हर्फ -ए- रदीफ ‘चाहिए’ के ठीक पहले आये हैं और समतुकांत हैं

बहर- मात्राओं के क्रम को ही बहर कहा जाता है ।  जिस प्रकार हिन्दी में गण होता है उसी प्रकार उर्दू में रूकन होता है ।
[27/06, 19:38] Kamlesh Kumar Gupta: ब्रह्मानंद गर्ग:
 मुक्तक में 4 चरण ही होते हैं। 
सम मात्रिक। 
पहला, दूसरा और चौथा चरण सम तुकांत।
 "मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षम: सताम्"
 एक हीं पंक्ति में कहा गया चमत्कारिक या उद्देश्यपूर्ण  वाक्य ।
पद्य में एक दुसरे से तारतम्यता अनिवार्य ना होते हुये भी सार्थक संदेश का बोध ही मुक्तक है।

कमलेश कुमार गुप्ता
[27/06, 19:38] +91 73898 93049: नमन ""बदलाव मंच""
मुक्तक प्रतियोगिया

विधा -मुक्तक 
दिनाँक-27/6/2020
 वार-शनिवार

आज का मुक्तक

ढूंढा हैं मैंने तुमको कहाँ जुदाई में
आसमां,जमी,गज़ल और फिर रुबाई में
तुम मिले हो वही आज "नीतू" के अंदर
मन से डूबे हुए जाने किस गहराई में।
🌹🌹🌹नीतू राठौर🌹🌹
[27/06, 20:42] +91 70706 54034: मुसलमान मुसलमान मुसलमान 
अपना        पक्का हे     इमान 
दिल  मे बसता         हिंदुस्तान 
डरता   हमसे          पाकिस्तान 
मातृ भूमि  से करते  हम  प्यार 
वंदन  करते    पाँच पाँच    बार 
देखों    माथे      के     निशान 
दिल   मे   बसता       हिंदुस्तान 
मुसलमान  मुसलमान मुसलमान 

            निर्दोष लक्ष्य जैन    धनबाद
[27/06, 20:50] +91 99993 20528: बदलाव मंच प्रतियोगिता हेतु मुक्तक काव्य
प्रकार- स्व:रचित एवं मौलिक
प्रेषिका-डॉ. लता (हिंदी शिक्षिका), नई दिल्ली
                     (1)
खून का नहीं रिश्ता, पर है दोस्ती अटूट,
सच हो रिश्ते भले ही, न दोस्ती है झूठ,
सब मिले न मिले तो कोई गम नहीं,
दोस्त तुम न मिले, तो हम जाएंगे टूट।
                     (2)
सबको सम्हालती आई नारी, पर उसके अस्तित्व का क्या,
पाई उसने दैवी की संज्ञा, पर इंसानियत का क्या
आज भी है मोहताज़ , पिता और पति के नाम की,
ज़माना बदलने वाली पूछती है, ज़माने की सोच का क्या
[27/06, 20:56] +91 70706 54034: मंदिर अपना मस्जिद अपनी 
अपना ही    गुरुद्वारा       हे 
किस मिट्टी  कॊ अलग करूं 
जब   सारा   देश  हमारा  हे 
              निर्दोष लक्ष्य जैन
[27/06, 21:04] +91 70706 54034: जाती ऊंची बोली ऊंची 
ऊंचा अपना भेष    हे 
इन सबसे तो बढ़कर भाई 
अपना  प्यारा देश   हे 
                  निर्दोष लक्ष्य जैन
[27/06, 21:09] +91 94586 89065: सुना था देश में अपने ,
सदा तहजीब मिलती है ।
हुआ अब देश गैरों का ,
यहाँ हर चीज़ बिकती है ।।
न मिलता है ,दुआओं ,याचनाओं,सादगी का पल ।
यहाँ परिवार ,घर-घर में ,नयी तरकीब मिलती है ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
[27/06, 21:22] +91 70706 54034: देखा होगा कभी अपने 
ऐसा भी इंसाफ नही हे 
छोटा  करे  तो पाप कहलाए 
बड़ा करे तो पाप नही हे 
           निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद
[27/06, 21:25] +91 99580 45700: *बदलाव मंच प्रतियोगिता हेतु मुक्तक*

शीर्षक- *आशा*
(1)

माया ने घेरा है मन को 
मन ने पकड़ा है इस तन को
मन गागर रह जाये रीता
आशा बहलाये जन जन को।।

(2)

कहीं प्रेम नद सूख न जाये
प्रेम गगरिया छलक न जाये
कर लो अब रब से प्रीती
आशाओं के महल बनाये।।

*वंदना सोलंकी*मेधा*©स्वरचित
नई दिल्ली
[27/06, 21:25] +91 70706 54034: नया भारत बनाना हे 
            


      आओ  साथी     आओ आओ 
                     आओ साथी आओ आओ 
     मिलकर कदम से कदम मिलाओ 
                     आओ साथी  आओ आओ 
      राम रहमान      तुम भी आओ 
               जोसफ तेज सिंग तुम भी आओ 
       मिलकर कदम से कदम मिलाओ 
                  एक साथ  सब मिलकर गाओ 
      देश धर्म पर बलि बलि     जाओ 
                   प्यारा     भारत देश   हमारा 
      दुनियाँ कॊ तुम    ये समझाओ 
                   हम  हे  अमन     चेन के राही 
      सत्य अहिंसा  धर्म     हमारा 
                  देश  हमे हे जान    से प्यारा 
      हम से तुम   ना   टकराना 
                चाइना तुम   ये समझ हे जाना 
     कर देंगे   सर्वनाश   तुम्हारा 
                   बचे ना कोई नाम लेने वाला 
     पाक तुम भी  समझ ये जाना 
                     हिंदुस्तान   हे बाप तुम्हारा 
     नेपाल तेरे भी पर निकले हे 
                   दुबक जा गीदड़ अपने घर मे 
      तू भी पीस जाएगा पगले 
                    इस       चाईना के चक्कर मे 
     आओ साथी  आओ आओ 
               मिलकर कदम से कदम  मिलाओ 
     दुनियाँ  कॊ ये तुम    समझाओ 
                        हमसे तुम  ना       टकराओ 
      आओ " लक्ष्य" मिलकर  गाओ 
                      मात्र भूमि पर बलि बलि जाओ 
   
                 निर्दोष लक्ष्य जैन   धनबाद 
                       25।6।2020
[27/06, 21:26] +91 98261 26384: 2122 2122 212 
यूँ  भी  उसने   बरगलाया   देर तक
आने  की  कहकर न आया देर तक

उनकी खातिर तो ये ठहरी मसखरी
इस  अदा  ने  दिल दुखाया देर तक 

कुछ  मुरादों  के  मुकम्मल  के लिए 
दर ब दर  मैं  सर  झुकाया  देर तक

की  बड़ी शिद्दत से  कोशिश बारहा 
पर  न  उसको  भूल  पाया देर तक

साथ  सुनते  थे  कभी जो गीत हम 
अब  मै  तन्हा  गुनगुनाया  देर तक

बस   जरा  सी   देर   आने  में  हुई
मां  ने  घर  में  जी  उठाया देर तक

कुछ हुनर  सिखला  दिये थे बापू ने
जिंदगी  में   काम   आया   देर तक

दर्द   को  भी  दर्द  जब  होने  लगा
देख  कर   मैं   मुस्कुराया   देर तक

झूम कर बरसे हैं बादल आज फिर 
छप्परों   ने   घर   बचाया   देर तक

एक  है   ओढ़ू  बिछाऊं  क्या  करूँ
भीगे   चादर   ने   रूलाया  देर तक

कुछ    तमन्ना   आरजू    उम्मीद में 
घिर  के  दिल ये छटपटाया देर तक
[27/06, 21:31] +91 99770 45540: बाबू मर गए वेतन के लिए
बाबा मर गए  तन के लिए
कुछ जतन उनके लिए भी कर लो
जो रोज मरते हैं वतन के लिए ।

                             -नामालूम
[27/06, 21:31] +91 94196 31374: **सच**

सच सच कह कर
फैलाया ऐसा जाल
हर शह को बना
तिजारत
बना रहे माल
गरीब के घर जाकर 
कभी पूछा हाल
छीन के रोटी का निवाला
उतारे सब की खाल।
कैसे बनाएं नोट
कौन सी चले चाल
इस झूठ रूपी कुएं में
रखा है सच का पर्दा डाल।
हर नई स्कीम की
होती अच्छी देखभाल
देखभाल करने के बहाने
रखे हैं रिश्तेदार पाल।
बचपन से जिसे समझते
करिश्मा, निकला जंजाल
हेरा फेरी झूठ फरेब से
हुआ सच का दरिया लाल।
बेटियों का तो जीना हुआ दुबर
आता रोज़ काल
हर बालिका विकास का है
एक जैसा हाल।
दोहरा चरित्र जीने वालों को
आए देखते सालों साल
ना आज तक आया कोई ऐसा
जो सके इसे टाल।
कहते हैं कलयुग है यह
हुए बुद्धि से कंगाल
एक ही बहादुर काफी है
जो उतारे ऐसे भेड़ियों की छाल।
दूध से मक्खी की तरह निकालना
पड़ेगा सच का बाल
अपनी ही भारत मा, चांटा जिसको भी लगे
होता अपना ही गाल।

कल्पना गुप्ता/ रत्ना
[27/06, 21:57] +91 94586 89065: कभी इन्सान बनने को ,
प्रभु अवतार लेते हैं ।
किसी को दर्द देते हैं ,
किसी को प्यार देते हैं । ।
मदद को सामने आता,
जो दिल से बेसहारों की,
नजर मुस्कान से भरकर,
वो पल में तार देतें हैं । ।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज "
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
[27/06, 22:04] +91 94586 89065: कहीं कोई तरसता है,
कहीं जम के बरसता है ।
हमारे घर का दरवाजा ,
खिडकी को तरसता है ।।
बिलखते भूँख से बच्चे ,
दिलाते याद रोटी की ।
कन्ही मंदिर बने मस्जिद ,
हमें क्या? फर्क पड़ता है ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ ( उत्तर प्रदेश )
[27/06, 22:08] +91 95602 05841: मैं सब कहूँगा यदि जानो तो।
तुम्हे दिल मे रखूँगा यदि मानो तो।
मैं ये नही कहता की तुम मेरे गुलाम बन जाओ
 किन्तु शर्त यही है मुझे ठीक ठीक पहचानो तो।
प्रकाश कुमार 
मधुबनी,बिहार
[27/06, 22:11] +91 98261 26384: 2122 1122 1122 22
हमने देखीं हैं  उन आंखों से  टपकती हसरत
ना मुकम्मल  सी   सरेराह    लरजती  हसरत

उम्र  बच्चों  के लिए  जिसने  खपा दी अपनी 
हमने उस बाप की  देखी है सिसकती हसरत
[27/06, 22:15] +91 95602 05841: तबियत बिगड़ जाए तो कारण ख़ुदसे पूछ लेना।
रिस्ते टूट जाये तो कारण ख़ुदसे पूछ लेना।
यहाँ सब कुछ जानते हुए लोग नही बताते।
यदि अबकी हालात में उलझ जाए
तो कारण ख़ुदसे पूछ लेना।
प्रकाश कुमार
मधुबनी बिहार
[27/06, 22:20] दीपक क्रांति: कहीं कोई तरसता है,
कहीं जम के बरसता है ।
हमारे घर का दरवाजा ,
खिड़की को तरसता है ।।
बिलखते भूख से बच्चे ,
दिलाते याद रोटी की ।
कहीं मंदिर या बने मस्जिद ,
हमें क्या फर्क पड़ता है ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ ( उत्तर प्रदेश )
[27/06, 22:23] +91 95721 05032: 🌾मुक्तक 🌾
*************************
जीव आदमी के देह निक 
 पा ग इल बा ,
ज्ञान उजियाऱ सुन्दर समा ग इल बा। 
इ ह मोक्ष के दुआऱी संसार कहेला, 
बात असल काहे इ भूला ग इल बा। 
*************************
मोह लालच में मन अझुराइल रही, 
अपने स्वारथ में हरदम सनाइल रही  ।
तब आदमी के देह इ बेकारे नू बा, 
मान आदर में अपना भूलाइल रही 
*************************
बाबूराम सिंह कवि
[27/06, 22:28] +91 94586 89065: !! मन-मुग्धता !!
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ज्ञान का भंडार है,
हिंदोस्तां का प्यार है ।
एकता का सूत्र-बन्धन ,
शब्द ही संसार है ।।
जान लो और मान लो ,
मन मुग्धता पहिचान लो ।
हिन्दी हमारी शब्द शक्ति,
दिव्यतम उपहार है ।।

डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
[27/06, 22:31] Kamlesh Kumar Gupta: चाय की चुस्कियां लेते 
सर्द हवाओं के बिच
मन मचल उठा है 
बसंत के आगमन पर 
क्या कहूँ मैं हुक्मराओं से
तड़पता युवा सड़क पर 
शर्म नहीं आंखों में 
लगी आग है सिने में
जलते अंगारो से खेलती सत्ता 
दंगाईयों को गले लगाती है
जम्हुरियत आज पुछ रही 
कबतक इतिहास दोहराओगे
मानवता को तुम तार-तार कर ही 
क्या तुम ,अपनी राजनीति चमकाओगे
संभल जाओ ऐ हुक्मराओं 
पानी सर से उठ चुका है 
जम्हूरियत के गलियारे से 
आन्धी अब उठ चुका है 
         स्वरचित "कमलेश कुमार गुप्ता "(निराला)
[27/06, 22:33] +91 95602 05841: बदलाव हो रहा है होने दो।
आवाज बुलंद हो रहा है होने दो।
बुराई के दलदल में तो फँसे पड़े है सब यहाँ।
आज नए दिन का उत्थान हो रहा है
होने दो।
प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार
[27/06, 22:33] Kamlesh Kumar Gupta: एक सार्थक कवि मन से निकली आवाज़ को शाब्दिक अर्थ प्रदान कर प्रभावशाली रचना का कीर्तिमान स्थापित करता है
[27/06, 22:35] Kamlesh Kumar Gupta: बीतता वर्ष पुछ रहा , राष्ट्रवादी विचारधारा से 
फिर तुम नयी शतरंजी बिसात न चलना 
नूतन वर्ष के प्रारंभ में 
लोकतंत्र को मजबूती देना 
असहिष्णुतावादियों से
बीतता वर्ष पुछ रहा , राष्ट्रवादी विचारधारा से 
फिर तुम न दंगे भड़काना 
नुतन वर्ष के प्रारंभ में 
लोकतंत्र को सुरक्षित रखना 
लोकतांत्रिक हत्यारों से 
बीतता वर्ष पुछ रहा , राष्ट्रवादी विचारधारा से 
फिर तुम नयी शतरंजी बिसात न चलना 
नूतन वर्ष के प्रारंभ में 
लोकतंत्र को परिपक्वता देना
विरोधाभासी विचारधारा से,भ्रामक दुसप्रचारों से 
              नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं।       (कमलेश कुमार गुप्ता)
COPYRIGHT RESERVED
स्मृतियों के झरोखे से 
29 दिसंबर रेल यात्रा के दौरान
[27/06, 22:40] +91 87654 30655: आज मंच पर स्वरचित मुक्तक समस्त समर्पित साहित्य कारों को नमन और माँ सरस्वती का वन्दन करते हुए प्रेषित।
               (1)
देते हैं विश्वास को धोखा, मिस्टर नटवरलाल ।
जिसने किया भरोसा उनपर, ठगा उन्हें हर हाल ।
चेहरे पर चेहरा वह बदले, धोखे से कर लिया यकीन ।
एतबार मसीहा समझ किया, निकला वह जी का जंजाल ।
               (2)
मिनट, मिनट में रंग बदलते, गिरगिट भी शरमा जाये ।
बीसो उंगली घी में रहती, चौबीस घंटे जश्न मनाये ।
कदम, कदम पर चकमा देकर, मिला रहा मिट्टी में सबको ।
माया से मक्कारी मिलकर, भ्रामक पर एतबार जताए।
         (3)
निगल लिया विश्वास समूचा, गफलत में है दुनियादारी ।
अब फरेब के धंधे से, फल फूल रही नफरत से यारी ।
विध्वंसक भ्रम की ऑधी ने, उडा दिया खम्भा यकीन का ।
एतबार नहीं अब अपनो पर भी, सुलग रही दिल में चिन्गारी ।
स्वरचित डा अजीत कुमार सिंह झूसी प्रयागराज मोबाइल नं 8765430655
[27/06, 22:42] जीत: बचपन के खेल खिलौने आबोहवा में नशा कुछ इस क़दर था गिरते थे मिट्टी में तो लगता था मलमल बिछा है।❤️
[27/06, 22:48] +91 95602 05841: पूछ बैठा तुम्हे अपना समझकर
यही मेरी गलती है।

सुध ले बैठा दिल की हिस्सा समझकर यही मेरी गलती है।

मैं खफ़ा नही होता तुम खफ़ा रहते हो सुनो अबतो लगने लगा है

अनजान शहर में तुम्हे अपना मान बैठा,यही मेरी गलती है।
प्रकाश कुमार 
मधुबनी बिहार
[27/06, 22:53] Kamlesh Kumar Gupta: अर्पण है तुम्हे प्रेम समर्पण
राग में अनुराग का सम्बन्धन
परिणय के पावन सूत्र में 
सस्नेही अभिनंदन
जीवन के मांझी तुम
प्रीत के अनुरागी तुम
प्रीतम मेरे बैसाखी तुम
[27/06, 22:53] +91 95721 05032: सुधरी समाज क इसे नजर घुमाइ, 
लिखे से पहिले तनी गौर जमाइ। 
आपस के प्यार संसार मेंबनल रहे-
छोडी़ के बिसमता समतामें आइ।
बाबूराम सिंह कवि
[27/06, 22:54] +91 94162 37425: भाई  कह  करता  रहा,  देख   घात  संगीन।
धोखा  देता  आ  रहा,  कायर  कपटी  चीन।
कायर  कपटी  चीन,  भरम में देख भोंकता।
रखता  मन में  पाप,  पीठ  में  छुरा  घोपता।
सुणो  भारती आज,  कह  रही  धाप्पो  ताई।
लातों   के   ये  भूत,  बात   ना   माने   भाई।

                  - भूपसिंह 'भारती'
[28/06, 00:07] Ekta Poet Banka Bihar: हम तो वो नाचीज़ हैं,जिसे तुम आसानी से हासिल कर नहीं सकते, 
ये उम्मीद करना भी व्यर्थ है  क्योंकि तुम पर हम ऐतबार कभी कर नहीं सकते।
हमें मालूम है कि तुम चुका नहीं पाओगे हमारी वफाओं का मोल, 
हमारे आंगन में तुम कभी खुशबू बनकर बिखर नहीं सकते।

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