अम्बर पर रचा स्वयम्बर,
वसुधा गायें प्रणय- गीत।।
नृत्य करे मोदित-मयूर ।
पावस -ऋतु आयें झूमत।।
अब लगी मिलन की प्यास।
ग्रीष्म तपन से तड़पत तन।।
मुझें पिया मिलन की आस।
प्रखर-वेग से बरसें जलधर।।
अम्बर प्रेम सुधा बरसायें।
सर-सरिता बहे तल ऊपर।।
जल पुरित तोड़े तट-बंधन।
चित करें तृप्त शीतल समीर।।
गरज-गरज घन तड़ित तड़पाये।
करें पावन निःश्वास मधुर बयार ।।
चंचल चित चपला चमकायें।
गुंजित भ्रमर बोलें अब दादुर।।
आक्रोशित ब्योम विद्दुत चमकायें।
आमोद मनायें नव -पल्लव-दल ।।
रह-रह जंजीरा शोर मचाये।
अचला ओढ़ बदन हरियाली चुनर।
सजनी तन श्रृंगार सजायें ।।
विरहन धरा विरह वेदना वेदित।
सावन आये जिया जलायें ।।
खिलें सुमन बिहँसे उपवन।
मधुकर मधुर रस-पुष्प चुरायें।।
पुष्प अलंकार से वसुधा पुरित।
दामिनी दमक दर्पण दिखलायें।।
हर्षित झूम-झूम के गायें दादुर।
वसुधा-गगन मिलन अति भाये।।
सृष्टि छवि अनुपम अति सुंदर।
सौंदर्य अमोल अतुलनीय अनोखा।।
क्षण-क्षण घन मेघ-पुष्प बरसायें।
नयनों में लाज की लाली लेकर।।
मन झूला झूल-झूल के कजरी गायें।
झूम-झूम पावस ऋतु आयें।।
स्वरचित और मौलिक :-समाप्त-:
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका-शशिलता पाण्डेय
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